चौराहों से ट्रैफिक पुलिस हुई गायब, सिर्फ चालानी पर्ची काटते होती है कैमरों में कैद


ग्वालियर। शहर में ट्रैफिक सुधारने के लिए कई बार अभियान चलाए गए, लेकिन यह अभियान फोटो खिंचाने तक ही सीमित होकर रह जाते रहे हैं। हालात यह हैं कि चौराहों से निकलना मुश्किल भरा सफर हो गया है और तमाम कसरत करने के बाद भी बाया मोड़ फ्री नहीं हो सका । इससे समझ सकते हैं कि ट्रैफिक सुधार का अभियान किस तरह से चलाया गया होगा। वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन शहर के चैराहे व तिराहे लालबत्ती के भरोसे छोड़ दिए गए हैं, इससे ऐसा लगता है कि शहर में ट्रैफिक पुलिस के जवान शायद हैं ही नहीं और अगर दिखते भी हैं तो सिर्फ चालानी पर्ची काटते हुए। ट्रैफिक सुधारने के लिए ई रिक्शा के संचालन को कलर कोडिंग के आधार पर दो पालियों में करने का निर्णय लिया गया, लेकिन ट्रैफिक में ज्यादा सुधार नहीं होने पर अब ऑटो को भी क्षेत्रवार चलाने की कवायद की जा रही है।
जिले में वाहनों की संख्या पर नजर डालें तो ग्वालियर के आरटीओ कार्यालय में रजिस्टर्ड वाहन पौने आठ लाख के करीब हैं। इसके अलावा अन्य प्रदेश के वाहन भी शहर की सड़कों पर धड़ल्ले से रफ्तार भर रहे हैं, जिससे यह आंकड़ा 9 लाख के करीब आसानी से पहुंच सकता है। इसके अलावा अन्य जिलों व प्रदेश से शहर में हर दिन आने वाले वाहनों की संख्या अलग है। अब इतने वाहन जब शहर के अंदर सड़कों पर रफ्तार पकड़ेंगे तो समझ सकते हैं कि ट्रैफिक की हालत क्या होगी ? ट्रैफिक सुधार को लेकर कई बार बैठकें हो चुकी हैं और प्रभारी मंत्री भी दिशा निर्देश दे चुके हैं लेकिन उसके बाद भी सुधार कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है। रिक्शा की दो पालियां, फिर भी सुधार क्यों नहीं। शहर में ई रिक्शा की संख्या करीब 12 हजार से ऊपर बताई जा रही है। शहर के ट्रैफिक को बिगाड़ने में ई रिक्शा को मुख्य कारण माना जा रहा था, जिसके चलते ई रिक्शा दो पॉलियों में संचालित करने का निर्णय लिया गया था और उस पर अमल भी शुरू हो गया है, लेकिन दिन में कौन से कलर के ई रिक्शा नड़कों पर चल रहे हैं, उसको देखने के लिए कुछ दिन तो नजर रखो लेकिन अब उसे भुला दिया गया है जिसके चलते कलर कोडिंग व्यवस्था सफल होने में संदेह जताया जा रहा है। इसको लेकर एक कारण यह भी है कि जो ई रिक्शा को चलाते हैं उनको ट्रैफिक केनियम भी नहीं पता है जिसके कारण मनचाहे स्थान पर ब्रेक लगा देते हैं और कभी भी बिना इंडिकेटर दिए मोड़ देते हैं, जिससे जान लगना आम बात तो हो गई है। साथ ही दुर्घटना का भी अंदेशा बना रहता है। अब टो भी ई रिक्शा की तर्ज पर अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से चलवाने की तैयारी की जा रही है ताकि किसी भी तरह यातायात सुचारू हो सके।
शहर में ट्रैफिक सुधर के लिए चौराहों पर सफेद वर्दी में पुलिस का रहना जरूरी माना जाता है, लेकिन बिना ट्रैफिक पुलिस जवान को तैनात किए शहर का ट्रैफिक लालबत्ती के सहारे छोड़ दिया गया है, जिसके कारण जाम के नजारे तो देखने को मिलते ही है, साथ ही बत्ती का भी कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। बायां मोड़ फ्री करने के लिए कई बार अधिकारी निरीक्षण कर दिशा निर्देश दे चुके हैं, लेकिन उसके बाद भी डाय मोड फ्री नहीं हो सका है। शहर का ट्रैफिक पूरी तरह से बदहाल बना हुआ है। सुधार के लिए कई तरह के प्रयोग किए ज चुके हैं, उसके बाद भी अगर ट्रैफिक सुधार नहीं दिख रहा तो प्रयोग करने वाले अधिकरियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे है। ट्रैफेक को कंट्रोल करने के लिए ट्रैफिक जवान पदस्थ हैं, लेकिन उनका उपयोग सिर्फ वाहनों की चालानी कार्रवाई के लिए किया जा रहा है।