
ग्वालियर। गर्मी की छुट्टियां शुरू होते ही ट्रेनों में यात्रियों की संख्या में इजाफा हुआ है। लोग छुट्टियां मनाने के लिए आरक्षण कराकर यात्रा कर रहे हैं। यही कारण है कि ट्रेनों में कुल क्षमता से 50 फीसद से अधिक टिकट बुक किए जा रहे हैं। आरक्षण खिड़की से वेटिंग टिकट लेकर यात्री ट्रेनों के स्लीपर कोच में घुस रहे हैं। इसके चलते ट्रेनों के स्लीपर कोच के हालात जनरल से भी बदतर हो चुके हैं। 72 बर्थ के क्षमता वाले एक कोच में 200 तक यात्री घुस जाते हैं। ग्वालियर से गुजरने वाली अधिकतर ट्रेनों में यही स्थिति बनी हुई है।
ग्वालियर से होकर रोजाना नई दिल्ली और भोपाल की ओर से औसतन 125 ट्रेनें गुजरती हैं। लंबी दूरी की ज्यादातर ट्रेनों में स्लीपर की अपेक्षा एसी कोच ज्यादा हैं। ग्वालियर से गुजरने वाली इन लंबी दूरी की ज्यादातर ट्रेनों में 20 जून तक क्षमता से अधिक टिकट बुक हैं। यात्रा के दिन तक वेटिंग टिकटों में बमुश्किल 10 से 12 टिकट ही कंफर्म हो पाते हैं। इसके चलते कई ट्रेनों में वेटिंग टिकट वाले यात्री कोच में फर्श पर बैठकर और गैलरी में लेटकर यात्रा करते नजर आ रहे हैं। कई यात्री गैलरी में टायलेट के पास खड़े होकर यात्रा कर रहे हैं। ग्वालियर से प्रतिदिन औसतन 50 हजार यात्रियों का आवागमन होता है। मई माह में स्कूलों के अवकाश होने के कारण ट्रेनों में भीड़ बढ़ने लगी है। इसके चलते स्लीपर कोचों में भी यात्रियों का चढ़ना मुश्किल हो रहा है। कंफर्म टिकट के अलावा ज्यादातर यात्री वेटिंग टिकट के होने के कारण उनको कोच से उतारा भी नहीं जा सकता। इसके चलते वेटिंग टिकट के अलावा कन्फर्म बर्थ वाले यात्रियों को भी अपनी बर्थ प्राप्त करने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
ट्रेनों में रात के समय यात्रियों की भीड़ बढ़ जाती है। यात्रियों का प्रयास रहता है कि वे रात का समय सोते हुए सफर कर सकें, ताकि अगले दिन का लाभ उन्हें घूमने-फिरने के रूप में मिल सके। इसके चलते ज्यादातर रात की ट्रेनों में टिकट बुक हो रहे हैं। यात्री जब कन्फर्म टिकट लेकर कोच में सवार होने की कोशिश करता है, तो उसे भीड़ में जूझना पड़ता है। कोच में सवार होने पर पता चलता है कि उसकी बर्थ पर किसी और यात्री ने कब्जा कर लिया है। जब वह टिकट चेकिंग स्टाफ को ढूंढता है, तो पता चलता है कि स्लीपर कोचों से स्टाफ ही गायब रहता है। ट्रेनों में भारी भीड़ को देखते हुए टीटीइ भी स्लीपर कोचों में टिकट चेक करने के लिए नहीं पहुंचते हैं।

