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हकीकत बहुत खतरनाक है 

हमारे शहर के अखबार का ये पन्ना हर शहर के अखबार जैसा है जो हमारे देश में स्वच्छता ,बेईमानी और उत्तरदायित्वहीनता को एक साथ रेखांकित करता है। परदशानमंत्री समग्र स्वच्छता अभियान चलवाते हैं लेकिन हमारे बड़े-बड़े अस्पताल गंदगी से बजबजाते हैं ,क्योंकि सफाईकर्मी दो माह से वेतन न मिलने से नाराज हैं ,लेकिन जिम्मेदार कौन है,कोई नहीं जानता ?कैंटीन का ठेका खत्म हो जाता है तो बच्चों को सदा-गला खाना परोसा जाता है लेकिन जिम्मेदार कोई नहीं है ।शहर में दूध और मावा में जमकर मिलावट हो रही है लेकिन किसी के पेट में दर्द नहीं है ,क्योंकि सबको अपनी-अपनी…

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हमारे शहर के अखबार का ये पन्ना हर शहर के अखबार जैसा है जो हमारे देश में स्वच्छता ,बेईमानी और उत्तरदायित्वहीनता को एक साथ रेखांकित करता है। परदशानमंत्री समग्र स्वच्छता अभियान चलवाते हैं लेकिन हमारे बड़े-बड़े अस्पताल गंदगी से बजबजाते हैं ,क्योंकि सफाईकर्मी दो माह से वेतन न मिलने से नाराज हैं ,लेकिन जिम्मेदार कौन है,कोई नहीं जानता ?कैंटीन का ठेका खत्म हो जाता है तो बच्चों को सदा-गला खाना परोसा जाता है लेकिन जिम्मेदार कोई नहीं है ।शहर में दूध और मावा में जमकर मिलावट हो रही है लेकिन किसी के पेट में दर्द नहीं है ,क्योंकि सबको अपनी-अपनी पड़ी है। गरीबों के स्वास्थ्य,बच्चों की सेहत की किसी को चिंता नहीं ,क्योंकि सबके सब राष्ट्र भक्त हैं ।गड़बड़ी करने वाले अपना काम करेंगे लेकिन प्रशासन अपना काम नहीं करेगा ,करेगा तो उसका पेट कैसे भरेगा,सरकार अपना काम करेगी तो उसका पेट कैसे भरेगा ?विधायक का पीटीआई हत्या का आरोपी हो तो उसे बचाया जाएगा ,लेकिन पीड़ित को न्याय नहीं मिलेगा ।सड़कें धुल उगल रहीं हों तो आपको मरम्मत करने के लिए अदालत जाना पड़ेगा सड़क बनाने और उसका संधातन करने वाले आपकी बात सुनेगे नहीं ।हमारी राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था ऐसी है जिसमें कोई उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं है। जिसकी जो मर्जी आये सो करे ।क़ानून,समाज,और देश जाए भाड़ में और भाड़ में जाएँ बच्चे,बूढ़े और औरतें ।हम जब विदेश में बैठकर अपने शहर का अखबार पढ़ते हैं तो सच मानिये की काँप जाते हैं।घर लौटने का न नहीं करता ।अब मुरैना में स्कूल जाते बच्चे का अपहरण कर 20  लाख की फिरौती मांगी जाए तो समझ लीजिये की जो लोग स्वदेश लौटना चाहते हैं उनके मन पर क्या गुजरती होगी?इन तमाम छोटे-छोटे मुद्दों पर हमारे बड़े-बड़े नेताओं को सोचने की फुरसत नहीं। हमारे नेता पुराने गड़े मुर्दे उखाड़ सकते हैं,अपनी नाकामी का बोझ अपनी पूर्ववर्ती सरकारों पर दाल सकते हैं लेकिन खुद कोई जिम्मेदारी लेना नहीं चाहते ।मै पूरी विनम्रता से कहता हूँ की भारत में रहने के लिए दर कर रहना जरूरी है। आप निडर  और निश्चिन्त होकर रह ही नहीं सकते ।अगर आपके शहर का माहौल  मेरे शहर के माहौल से भिन्न हो तो अवश्य बताइये ,ताकि हम नजीर प्रस्तुत कर सकें ।मुझे नहीं लगता कि देश का कोई शहर या कस्बा पूरी तरह से महिलाओं,बच्चों और बुजुर्गों के लिए महफूज है ।सब जगह असुरक्षा है।शहर में तो है ही गांवों में उससे ज्यादा है ।आप माने या न मानें लेकिन समरसता की सारी बातें बेमानी हैं,झूठीं हैं ,निराधार हैं ।हकीकत तो ये है कि हमें कोई सरकार सुरक्षा की गारंटी नहीं दे रही ।हम सब भगवान के भरोसे हैं ।
@ राकेश अचल
हमारे शहर के अखबार का ये पन्ना हर शहर के अखबार जैसा है जो हमारे देश में स्वच्छता ,बेईमानी और उत्तरदायित्वहीनता को एक साथ रेखांकित करता है। परदशानमंत्री समग्र स्वच्छता अभियान चलवाते हैं लेकिन हमारे बड़े-बड़े अस्पताल गंदगी से बजबजाते हैं ,क्योंकि सफाईकर्मी दो माह से वेतन न मिलने से नाराज हैं ,लेकिन जिम्मेदार कौन है,कोई नहीं जानता ?कैंटीन का ठेका खत्म हो जाता है तो बच्चों को सदा-गला खाना परोसा जाता है लेकिन जिम्मेदार कोई नहीं है ।शहर में दूध और मावा में जमकर मिलावट हो रही है लेकिन किसी के पेट में दर्द नहीं है ,क्योंकि सबको अपनी-अपनी…

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