जीती हुई बाजी को हारना कोई कांग्रेस से सीखे….

ग्वालियर। मप्र के चार सीटों पर हर रिपोर्ट में कड़ी टक्कर बताई जा रही थी। छिंदवाड़ा, राजगढ़,मुरैना और ग्वालियर। विधानसभा चुनावों में उम्दा प्रदर्शन के बाद ग्वालियर लोकसभा सीट पर तो कांग्रेस के लिए काफी संभावनाएं थीं। यह संभावनाएं उस वक्त बढ़ गईं जब भाजपा ने विधानसभा चुनाव में हारे मंत्री भारत सिंह कुशवाह को आचार संहिता लगने के दो माह पहले ही प्रत्याशी बनाकर उतार दिया। चुनाव और पार्टी के विश्लेषकों ने भारत सिंह को कमजोर चेहरा माना। कांग्रेस के पास बढ़िया मौका था फ्रंटफुट पर आकर खेलने का। समय पर प्रत्याशी घोषित करके प्रचार में लीड ले सकती थी, लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उल्ट।
कांग्रेस एक माह तक यही मंथन करती रही कि ग्वालियर से किसे लड़ाया जाए प्रवीण पाठक कि कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार के भाई नीटू सिकरवार। हालात यह थी कि उपरोक्त दोनों सीटों पर सबसे अंत में प्रत्याशी घोषित किए गए। कांग्रेस तब तक आधा चुनाव हार चुकी थी क्योंकि भाजपा ने न सिर्फ चुनावी कार्यालय शुरू कर दिए थे बल्कि बड़े नेताओं का आना-जाना भी शुरू हो गया था। प्रवीण पाठक मजबूत चेहरा था लेकिन जैसे ही उनके नाम की घोषणा हुई कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई भी खुलकर सामने आ गई। जिला अध्यक्ष देवेंद्र शर्मा ने प्रवीण के नाम की खुलकर मुखालफत शुरू करते हुए यहां तक कह दिया कि वह कांग्रेस अध्यक्ष पद से ही इस्तीफा दे देंगे। हालात यह हुई कि जिस प्रवीण के साथ पूरी पार्टी को तुरंत खड़ा होकर दोगुनी ताकत से चुनाव प्रचार शुरू करना चाहिए था उसके स्थानीय एवं प्रमुख नेता ही प्रचार से गायब रहे। कई मोर्चे पर प्रवीण अकेला किला लड़ाते दिखाई दिए। हालांकि कुछ कांग्रेसियों ने कहा कि प्रवीण के एकला चलो नीति के कारण उनके साथ कोई आना नहीं चाहता।
कारण चाहे जो भी हो लेकिन चुनाव में इसका खासा नुकसान पार्टी को हुआ। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री मोहन यादव,पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, अध्यक्ष वीडी शर्मा,ज्योतिरादित्य सिंधिया,नरोत्तम मिश्रा प्रचार कर रहे थे वहीं कांग्रेस प्रत्याशी एक अदद चेहरे की सभा या रैली को तरसता रहा। चुनाव में न राहुल आए न प्रियंका की रैली हुई। कम समय मिलने और कांग्रेस कार्यकर्ताओं की कमी का नतीजा यह रहा कि कई क्षेत्रों में प्रचार के लिए न कैंडिडेट पहुंच पाया न उनकी टीमें। आठ में से जिन चार विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के विधायक थे उनमें से सिर्फ डबरा और ग्वालियर पूर्व ही ऐसी रही जहां से कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त मिल सकी। प्रवीण को सवर्ण चेहरे का लाभ तो मिला लेकिन इस वर्ग की परंपरागत पार्टी भाजपा में भी लगभग आधा वोट बंट गया।

भाजपा की जीत का अंतर कम हुआ
यही कारण है कि 2019 में जो भाजपा पार्टी 1.46 लाख मतों से जीती थी उसकी जीत का अंतर घटकर भी आधा यानी 70 हजार रह गया। हालांकि नगर सरकार पर कब्जा होने के बावजूद शहर ने भी कांग्रेस प्रत्याशी का साथ नहीं दिया। प्रवीण अपनी पुरानी विधानसभा सीट दक्षिण से भी हारे और ग्वालियर विधानसभा से भी। प्रवीण के लिए शक्ति का बंट जाना भी भारी पड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी को सिकरवार परिवार से बड़ी मदद की उम्मीद थी क्योंकि शहर से विधायक और महापौर एक ही परिवार से हैं। सिकरवार परिवार के नीटू को मुरैना से चुनाव मैदान में उतरने से उनकी पूरी टीम ग्वालियर-मुरैना में ही झूलती रही। सीटें दोनों हार गए.. न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम।