डॉक्टर प्राइवेट हो या सरकारी उसे सिर्फ पैसे की हवस


ग्वालियर | भारत ही एकमात्र देश है जहां सरकार ने निजी अस्पतालों और प्राइवेट डॉक्टरों को लूट खसोट की खुली छूट दे रखी है। निजी अस्पताल मरीज के इलाज के नाम पर किस तरह मरीज की जेब काट रहे हैं, यह देखने सुनने वाला कोई नहीं है । इलाज के नाम पर खुले आम हो रही लूट में अब सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर भी पीछे नहीं है। डेढ़ दो लाख रुपए महीना वेतन पाने वाले सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों कि पैसा कमाने की हवस खत्म नहीं हो रही ।
ग्वालियर में स्थिति यह है कि सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर प्राइवेट अस्पतालों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सरकार की नीतियों के कारण सरकारी हो या प्राइवेट डॉक्टरों की जेबें तो गर्म हो रही है लेकिन इसका खामियाजा मरीजों को भगतना पड़ रहा है। अगर ग्वालियर में निजी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो गली मोहल्ले में निजी अस्पताल खुल गए हैं। गिनती के चार पांच कमरों में प्राइवेट हॉस्पिटल चल रहे हैं। इन अस्पतालों के पास अपने खुद के कोई डॉक्टर नहीं है। ऐसे में निजी अस्पतालों के संचालक सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की सेवाएं ले रहे हैं। इधर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और सीएमएचओ भी लूट की इस गंगा में अपने हाथ धो रहे हैं। सरकार ने अस्पताल खोलने के लिए कुछ मापदंड निर्धारित किए हैं।
इन मापदंडों का पालन हो रहा है या नहीं इसकी जिम्मेदारी सीएमएचओ पर है। लेकिन सीएमएचओ ही जब प्राइवेट अस्पतालों से हफ्ता वसूली कर रहे हो तो मरीजों को सस्ते दामों पर स्वास्थ्य सेवाएं कैसे उपलब्ध होगी। एक से दो हजार रुपए के लालच में सरकारी अस्पताल के डॉक्टर निजी अस्पताल में भर्ती मरीजों को देखने और उन्हें चिकित्सकीय परामर्श देने के लिए प्राइवेट अस्पतालों के चक्कर काटते हुए देखे जा सकते हैं। कहते हैं कि डॉक्टर भगवान का रूप होता है लेकिन डॉक्टर भगवान तो नहीं लेकिन कसाई जरूर बन गए हैं। जिनके लिए सिर्फ पैसा ही सब कुछ है।