परिवहन विभाग के बैरियर अवैध वसूली का बड़ा ठिकाना, धूल खा रहा हाईटेक परिवहन चेकपोस्ट का प्रस्ताव

ग्वालियर। मध्य प्रदेश में गुजरात मॉडल की तर्ज पर परिवहन चेक पोस्ट को बंद करने का साहस सरकार नहीं दिखा पाई है। इन्हें बंद कर हाइटेक चेकपोस्ट शुरू करने का प्रस्ताव करीब पांच महीनों से शासन के पास धूल खा रहा है। प्रस्ताव पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। नतीजा, परिवहन माफिया हावी है और परिवहन बैरियर इनका बड़ा ठिकाना है, जहां अवैध उगाही बेखौफ की जाती है। दरअसल, देशभर के मोटर ट्रांसपोर्ट कारोबारियों के आक्रोश के बाद परिवहन विभाग ने परिवहन बैरियरों को बंद करने का निर्णय लिया था।
तत्कालीन परिवहन आयुक्त एसके झा के निर्देश पर अपर आयुक्त की अध्यक्षता में कमेटी बनी। कमेटी ने रिपोर्ट दी कि मध्य प्रदेश में चेकपोस्ट के स्थान पर वैकल्पिक हाइटेक चेक प्वाइंट की व्यवस्था होनी चाहिए। रिपोर्ट के साथ प्रस्ताव 18 दिसंबर 2023 से शासन के पास लंबित है। बता दें कि हाइटेक चेक पोस्ट के प्रस्ताव में पहले चरण में 40 चेक पोस्ट शुरू करने की अनुशंसा की गई थी और 28 करोड़ का बजट व हजार कर्मचारियों का स्टाफ मांगा गया था। परिवहन विभाग की ओर से छह माह में चेक पोस्टों को बंद कर नए स्वरूप में लाने का दावा किया गया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अन्य प्रदेशों में परिवहन चेक पोस्ट व्यवस्था बंद हो गई है और प्रदेश में ट्रांसपोर्टर्स-आपरेटर अवैध वसूली व परेशानी के मामलों के कारण इसके विरोध में हैं और इसको लेकर उच्च स्तर पर मांग कर चुके हैं। सात अस्थायी चेक पोस्ट विभाग बंद भी कर चुका है, लेकिन स्थाई चेकपोस्ट चालू हैं।
हकीकत में परिवहन विभाग के बैरियर अवैध वसूली का बड़ा ठिकाना है। यहां परिवहन विभाग के आरटीआइ, बैरियर प्रभारी, सिपाही न के बराबर दिखेंगे। बैरियरों पर प्राइवेट युवक ही व्यवस्था संभालते मिलेंगे। इन्हें परिवहन विभाग की भाषा में कटर कहा जाता है। यह वाहनों को बैरियर से कुछ पहले ही रोककर वसूली कर लेते हैं, जिससे कैमरे में न आएं। विभाग के रिटायर्ड अफसरों के अनुसार विभाग के अनधिकृत खर्चे बैरियरों की अवैध वसूली से ही चलते हैं। हाईकोर्ट से विधानसभा तक परिवहन विभाग के बैरियरों की बदनामी पहुंच चुकी है। हाईकोर्ट ने एक याचिका पर तत्कालीन परिवहन आयुक्त मुकेश जैन को तलब भी किया था और बैरियरों पर प्राइवेट स्टाफ को लेकर नाराजगी जताई थी। विधानसभा में भी कांग्रेस की ओर से परिवहन नाकों का मुददा उठाया गया था, जिस पर सरकार स्पष्ट जवाब नहीं दे पाई थी।