रामनिवास चतुर राजनीतिज्ञ, विधायकी बचाने घोषित रूप से भाजपा में और कागजों में कांग्रेस के सदस्य


ग्वालियर। लोकसभा चुनाव के बाद ग्वालियर-चंबल अंचल की ही नहीं प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा सवाल चारों तरफ घूम रहा है। यह सवाल है कि क्या पूर्व मंत्री व विजयपुर विधायक रामनिवास रावत द्वारा चुनाव के मध्य में मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के साथ चुनावी मंच साझा करने से उनकी विधानसभा की सदस्यता जाएगी या फिर बची रहेगी? घोषित रूप से कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा से रिश्ता जोड़ने वाले रामनिवास रावत एक चतुर राजनीतिज्ञ साबित हुए हैं।
क्योंकि दल-बदल कानून के दायरे में तभी आएंगे, जब वे कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे देते हैं। अगर पार्टी उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में प्राथमिकता सदस्यता से निष्कासित करती है तो उनकी विधानसभा की सदस्यता बरकरार रहेगी और वो चाहते भी यही है कि पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई करे। खुले तौर पर सामने से कांग्रेस में छुरा घोंपने वाले रामनिवास रावत के खिलाफ पार्टी कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। इतना अवश्य कह रही है कि अब हमारा रामनिवास रावत से कोई संबंध नहीं है। कांग्रेस दल-बदल कानून के प्रविधानों में उलझकर रह गई। फिलहाल रावत घोषित रूप से भाजपा में हैं और कागजों में कांग्रेस के सदस्य है। विशेषज्ञ एडवोकेट के अनुसार पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी की चुनाव में खिलाफत कर रामनिवास रावत की विधानसभा की सदस्यता से एक ही शर्त पर जा सकती है, जब वे अपनी मूल पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दें। अगर पार्टी अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें पार्टी प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित करती है तो भी उनकी विधानसभा की सदस्यता की बरकरार रह सकती है।