बाड़े पर जिओ म्यूजियम भवन के पीछे नशे का कारोबार


– रोज लगता है पियक्कड़ों का मेला, दीवारों को टॉयलेट कर करते हैं गंदा, बूचड़खाने जैसे हालात
ग्वालियर। शहर के हृदय स्थल महाराज बाड़ा पर स्थित विक्टोरिया मार्केट अब जिओ साइंस म्यूजियम की शक्ल ले चुकी है। भारत के पहले जियो साइंस म्यूजियम का उद्घाटन पिछले महीने जगदीप उपराष्ट्रपति धनखड़ और मुख्यमंत्री मोहन यादव ने किया था। यह मार्केट 1910 में बनी लगभग 100 साल से ज्यादा पुरानी है।


विक्टोरिया मार्केट में 35 करोड़ की लागत से तैयार हुआ म्यूजियम अब देश की धरोहर है, लेकिन बढ़िया चमक-दमक और खूबसूरत लाइटों से रोशन इस ऐतिहासिक बिल्डिंग के पीछे खुलेआम नशाखोरी, बूचड़खाने का दाग भी लग रहा है। दरअसल, इस एतिहासिक विक्टोरिया मार्केट भारत की धरोहर जिओ साइंस म्यूजियम तो बना दिया गया, लेकिन इस भवन के ठीक पीछे चल रहे नशे के कारोबार पर अंकुश नहीं लगाया गया। इस धरोहर के इर्द गिर्द कई हैरान करने वाले नजारे रोज दिखाई देते है। म्यूजियम के पीछे दीवारों से लगे हुए रास्ते पर बनी शराब की दुकान के बाहर ही पियक्कड़ों का मेला लगा रहता है। यहां के हालात किसी बूचड़खाने से कम नहीं है। इतना ही नहीं शराब की दुकान पर आने वाले लोग पहले इसी इमारत की सीढ़ियों, जालियों और चबूतरे पर बैठकर जाम छलकाते हैं, फिर वहीं कूड़ा-कचरा और बारदाना इसी इमारत की दीवार के सहारे फेंक जाते है। कई तो ऐसे पियक्कड़ जो इसी एतिहासिक भवन की दीवारों को टॉयलेट कर गंदा कर रहें है।


यहां बता दें कि विक्टोरिया इमारत के पिछली तरफ सिर्फ शराब की दुकान ही नहीं बल्कि यहां पर कई होलसेल दुकान भी बनी हुई है। स्कूल संबंधित स्टेशनरी, छात्र-छात्राओं की कॉपी किताबें और शिक्षकों के एडमिनिस्ट्रेशन का सामान भी यहां होलसेल रेट पर मिलता है। लेकिन यहां की बदहाली और नशाखोरी को देखते हुए लोगों को अब यहां से गुजरने में भी डर लगता है। पूरे रास्ते को नशाखोर घेर कर बंद रखते हैं, गंदगी हद से ज्यादा है। मामले में कई महिलाओं शिक्षक का तो यह भी कहना है कि उन्हें यहां की बदहाली को देखते हुए यह मार्केट और सस्ता ही छोड़ना पड़ा। पर नशाखोरी गंदगी हद से ज्यादा है और यह जगह सुरक्षित भी नहीं है।