
(धीरज राजकुमार बंसल)
राजनीति में पद ही सब कुछ होता है, जब तक पद है, राजनीतिक रसूख और जलवा कायम रहता है पर अक्सर पद जाते ही रसूख को खत्म हो जाता है, पूछ-परख भी कम हो जाती है। पद न हो तो पार्टी संगठन के नेता भी दूरी बनाकर चलने लगते हैं। हम बात कर रहे हैं ग्वालियर-चंबल अंचल ही नहीं कांग्रेस की राजनीति के दिग्गज दो वरिष्ठ नेताओं डाक्टर गोविंद सिंह और केपी सिंह की। कांगेस सरकारों में मंत्री और संगठन में विभिन्न पदों पर रहे ये नेता आधा दर्जन से अधिक बार विधानसभा का चुनाव जीते पर एक हार ने उन्हें बेजार सा कर दिया है। वे अब सियासी फलक से ओझल से दिख रहे हैं।
कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं यह दोनों नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं और दोनों का ही राजनीति में खासा रुतबा भी है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह भिंड जिले की लहार विस से लगातार सात बार चुनाव जीतकर विस में पहुंचे और केपी सिंह शिवपुरी जिले की पिछोर विस से लगातार 6 बार चुनाव जीते थे। डॉ. गोविन्द सिंह नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद अपने विस में समय कम दे सके, जिसका परिणाम यह रहा कि उनको 2023 में हुए विसा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, वहीं केपी सिंह को सीट बदलकर शिवपुरी विस भेजा गया, जिसके चलते उनको हार झेलनी पड़ी। एक तरह से कांग्रेस के सालों से मजबूत किले बने दोनों दिग्गज चुनाव समर में पीछे हो गए। विस चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष बदलकर जीतू पटवारी को बना दिया गया था। उसके बाद से ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एक तरह से दूरी बनाकर चल रहे हैं। दोनों दिग्गज नेताओं को शायद संगठन महत्व नहीं दे रहा है। वहीं दोनों नेताओं को विजयपुर उपचुनाव में भी कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। जबकि दोनों नेताओं का अंचल में अच्छा खासा रसूख है।
सियासी पीच से ओझल दिख रहे कांग्रेस के दो दिग्गज

