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ग्वालियर। शहर के बीचों-बीच बहने वाली स्वर्ण रेखा पर बने 24 पुल हैं। यह शहर की कॉलोनी और बस्ती को जोड़ती हैं। इनमें रियासतकाल के बने पुल की हालात काफी खराब है। कारण, जल संसाधन से लेकर पीएचई और निगम का जनकार्य विभाग इनके देखरेख की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। यह स्थिति तब है जब बीते साल तेज बारिश से मुरार नदी में बाढ़ से हुरावली के पास बनी पुलिया और स्ट्रक्चर बह गया था। इस घटना के बाद भी निगम के अधिकारी स्वर्ण रेखा के इन पुल पर ध्यान नहीं दे रहे है।
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स्वर्ण रेखा 13.65 किलोमीटर एरिया कवर करती है। सबसे ज्यादा दक्षिण और ग्वालियर विधानसभा मे बहाव है। हनुमान बांध से शुरू होने वाली स्वर्ण रेखा नदी का अंतिम पुल लाल टिपारा के पास मौजूद है। पुराने पुल के स्ट्रक्चर में लगे पत्थर और ईंट लटक रही है। ऐसे शहर में 8 से 10 पुल हैं। जहां यदि बारिश में पानी का तेज बहाव आया तो यह टूट या फिर बह सकते हैं। जीवाजी गंज पुल लक्ष्मीगंज, जीवाजी गंज और बहोड़ापुर को जोड़ने वाले इस पुराने पुल की हालात बेहद खराब है। ईंटों से बना स्ट्रक्चर पूरी तरह डेमेज हो गया। ईंट निकलकर लटक रही हैं। 4 स्थानों पर पुल के ईंटें तक निकल चुकी हैं। पानी के तेज बहाव की स्थिति में यह पुल कभी भी टूट सकता है। काजल टॉकीज के पास पुल पर पत्थर के 5 पिलर बना हैं। इनमें से दो पुलों की हालात ज्यादा खराब है। पुल में लगे हुए पत्थर लटक गए हैं। ये पुल छप्परवाला पुल, शिंदे की छावनी पुल और भैंस मंडी के पुलों को जोड़ता है। तारागंज- ढोलीबुआ पुल के नीचे बने स्ट्रक्चर के पत्तर निकल चुके हैं।
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स्कूल पहुंच मार्ग पुल की रेलिंग टूटी हैं। दो पहिया वाहन चालक हादसे का शिकार हो सकता है। नदी गेट पुल की हालत भी बेहद खराब है, बारिश में पानी के तेज बहाव आने के कारण बह भी सकता है। भूरे बाबा की बस्ती पुल ऊपर से वाहनों के चलने लायक है। लेकिन नीचे के हालत खराब हैं। यहां भी पुल के नीचे पिलर टूटे पड़े हैं। जल संसाधन विभाग ने साल 2001 में 4 पुल स्वर्ण रेखा नदी पर बनाए थे। उस पर 17.35 करोड़ की राशि खर्च हुई थी। जल संसाधन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हनुमान बांध से निकलने वाली स्वर्ण रेखा नदी को नगर निगम को साल 2012 में सौंप दिया था।
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