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ग्वालियर। पुस्तक मेला में आठ स्कूलों द्वारा गणवेश और पाठय पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराये जाने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने ऐसे स्कूलों और वेंडर्स को नोटिस जारी किया है। लेकिन मजे की बात यह है कि स्कूलों को पूर्व में ही गणवेश व पाठयपुस्तकें उपलब्ध करवाने के निर्देश दिये गये थे। फिर इन स्कूलों और वेंडर्स के हौसले इतने बुलंद कैसे हो गये कि उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी और प्रशासन के निर्देशों को अनदेखा कर दिया या फिर यह सब सेटिंग का खेल है। जिला शिक्षा अधिकारी ने कैसे इन स्कूलों को पुस्तक मेला लगने से पूर्व अनदेखा किया जिन्होंने अपनी पाठयपुस्तकें और यूनिफार्म को पुस्तक मेला में उपलब्ध नहीं कराया है। जब कुछ छात्रों और उनके पालकों ने इस बात की जानकारी प्रशासन को दी तब यह सारा मामला प्रकाश में आया।
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यहां बता दें कि 22 से 28 मार्च तक शिल्प बाजार मेला परिसर में पुस्तक मेला लगाया गया है। कलेक्टर की पहल पर लगे इस पुस्तक मेला में उचित दाम में पुस्तकें, स्टेशनरी और यूनिफार्म उपलब्ध कराई जा रही है जिससे पुस्तक दुकानदारों से अभिभावक ठगने से बच सकें। लेकिन उसके बाद भी कई प्राइवेट स्कूलों ने मोटा मुनाफा कमाने के लिये पुस्तक मेला में पाठयपुस्तकें, स्टेशनरी और यूनिफार्म उपलब्ध ही नहीं कराई है। जिसकी शिकायत जब छात्रों और उनके पालकों ने कलेक्टर व जिला प्रशासन से की तो उसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने ऐसे आठ स्कूलों और छह वेंडर्स को नोटिस जारी किया है। अब बात यह हजम नहीं हो रही कि जिला शिक्षा अधिकारी को यह कैसे ज्ञात नहीं था कि इन आठ प्रायवेट स्कूलों ने अपना गणवेश पुस्तक मेला में उपलब्ध नहीं कराया है। सबसे पहले इस मामले में कार्रवाई तो जिला शिक्षा अधिकारी पर ही होना बनता है। हालांकि जिला शिक्षा अधिकारी ने कलेक्टर के निर्देश के बाद स्कूलों को नोटिस जरूर जारी किया है, परंतु शिक्षा अधिकारी से पूछना चाहिये कि तीन महीने पहले सूची देना स्कूलों को अनिवार्य है तो जिनकी नहीं आई थी उन्हें मेला शुरू होने से पहले नोटिस क्यों नहीं दिया, अब शिक्षा अधिकारी नाटक क्यों कर रहे है ? शिक्षा अधिकारी की इस हरकत से प्रशासन की फजीहत हुई है। सबसे पहले जिलाधीश को शिक्षा अधिकारी को ही नोटिस देना चाहिए, की कुंभकरणी नींद में वह क्यों सो रहे थे?
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