
ग्वालियर। गरीब मरीज के उपचार में सहायक बनी आयुष्मान योजना को अस्पताल संचालकों ने कमाई का जरिया बना लिया है। इसमें उनका साथ स्वास्थ्य विभाग अधिकारी भी दे रहे हैं, जो नियमों को ताक पर रखकर आयुष्मान योजना में पंजीयन कराने की सहमति अस्पतालों को दे रहे हैं। सांठगांठ से आयुष्मान योजना में पंजीयन कराने वाले अस्पताल अब बिलों में गड़बड़ी कर शासन का पैसा डकार रहे हैं और मरीजों की जान से खिलवाड़ भी कर रहे हैं, क्योंकि इन अस्पतालों में नियमानुसार न तो डाक्टर मौजूद हैं और न हीं नर्सिंग स्टाफ। हकीकत तो यह है कि बेड भी पूरे नहीं है। ग्वालियर में निजी अस्पतालों की लगभग 500 के आसपास पहुंच चुकी है।
अस्पताल आयुष्मान योजना के तहत उपचार देने वालो की अस्पताल की संख्या लगातार बढ़ रही है। अस्पताल संचालक आयुष्मान के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। गड़बड़ी करने वालों में निजी से लेकर सरकारी अस्पताल भी शामिल हैं। पिछले दिनों देखने में आया है कि ग्वालियर के कई अस्पताल ऐसे हैं जो आयुष्मान योजना के तहत गड़बड़ी कर चुके है। जिन्होंने आयुष्मान योजना के तहत शासन को करोड़ों रुपये का चूना लगा दिया। जिनके खिलाफ सरकार ने जांच की और उनके द्वारा लिया गया अधिक भुगतान की रिकवरी के निर्देश भी दिए। शहर में संचालित कई अस्पतालों ने 50 और 100 बेड की अनुमति स्वास्थ्य विभाग से ले रखी है, पर हकीकत में उनके पास कागजों में दर्ज बेड संख्या के बराबर उपलब्धता नहीं है। ऐसे अस्पतालों ने स्वास्थ्य विभाग से अधिक बेड पंजीकृत करा रखे और हकीकत में उनके पास आधी संख्या में भी बेड उपलब्ध नहीं है। इसके बाद भी इन सभी अस्पतालों का आयुष्मान योजना में अलग अलग विधाओं में पंजीयन हुआ है। एक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी की माने तो कोई भी अस्पताल आयुष्मान योजना में पंजीकृत कराने के लिए आवेदन कर सकता है। आवेदन के बाद उस अस्पताल को भौतिक सत्यापन स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जाता है। जिसमें यह देखा जाता है कि अस्पताल जितने बेड के लिए पंजीकृत है उतने बेड मौजूद हैं अथवा नहीं। 20 बेड पर 1 डाक्टर और 5 बेड पर 1 नर्सेस की आवश्यकता होती हैं। इसके बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एनओसी, बायोमेडिकल बेस्ट का निष्पादन, फायर आदि की एनओसी जरुरी है। अस्पताल खुद एक फार्मेट भरकर देता है जो उसके पास स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं। जिस विषय में आयुष्मान चाहते है उस विद्या का विशेषज्ञ उपलब्ध होना चाहिए।
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