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कर्नाटक और गोवा में कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे और भाजपा में शामिल होने की खबरों से हैरान होने वाले लोग भावुक हो सकते हैं, लेकिन यथार्थवादी नहीं ।इस भगदड़ के पीछे भाजपा का हाथ बताकर कांग्रेस के नेता अपने जहाज के डूबने की हकीकत से बचना चाहते हैं ।यकीनन जब कोई जहाज डूबता है तो सबसे पहले चूहे जहाज का साथ छोड़ते हैं ।कांग्रेस से भागने वाले विधायक लोकतंत्र के आधुनिक चूहे हैं ,जो राशन-पानी मिलने तक ही एक जहाज में टिकते हैं और जैसे ही जाहज डूबता है छलांग लगाकर भाग निकलते हैं ।
गोवा जैसे छोटे आकार के आरजी में दल-बदल कोई नयी घटना नहीं है।यहां दल-बदल का इतिहास बहुत पुराना है ।कर्नाटक का नाटक भी कुछ इसी तरह का है ।केंद्र में भाजपा की वापसी से कांग्रेस में भगदड़ की प्रक्रिया तेज अवश्य हुई है लेकिन इसे तो होना ही था ,क्योंकि कांग्रेस का नेतृत्व पिछले पांच साल में लगातार कमजोर हुआ है और बीते डेढ़ माह से तो कांग्रेस नेतृत्व विहीन ही है ,इसलिए इस मौके पर भगदड़ की गति न्यारी होना ही थी ।
भाजपा का आकार सुरसा के मुख की तरह बढ़ रहा है फिर भी उसे कांग्रेस के विधायकों की जरूरत है क्योंकि जहां भाजपा सत्ता में आने से रह गयी वहां कांग्रेस से आयातित विधायक ही उसे सत्ता तक पहुंचा सकते हैं ।कांग्रेस में नेतृत्व कमजोर है और भाजपा में नेतृत्व साम,दाम,दंड और भेद में भरोसा करने वाला है।उसे हर हथकंडा आता है और उनका इस्तेमाल करने में भाजपा नेतृत्व को कोई संकोच नहीं है,संकोच होना भी नहीं चाहिए ।राजनीति में संकोच बीते जमाने की बात हो गयी है ।
आपको याद होगा की भाजपा के नए सदर जेपी नड्ढा साहब पार्टी के 22 करोड़ सदस्य बनाकर भाजपा को देश-दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनाना चाहते हैं ।देश में कोई 90 करोड़ वोटर हैं इनमें से अगर 30 फीसदी भी भाजपा के सदस्य हो गए तो भाजपा हमेशा के लिए अजेय हो जाएगी ।एक तरफ भाजपा अजेय होना चाजहती है और दूसरी तरफ कांग्रेस को अपने संगठन की कोई सुध-बुध नहीं है ।पार्टी केवल विचारधारा के आधार पर और कितने दिन जिन्दा रह सकती है। कांग्रेस के पास न पार्टी के विस्तार की कोई वैज्ञानिक आधार वाली कोई योजना है और न नेतृत्व ।इस कारण समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है ।मेरा मानना है कि इस समय कांग्रेस आत्मघात करने में लगी है और कोई उसे बचाने के लिए आगे नहीं आना चाहता ।
मौजूदा राजनैटिक घटनाक्रम के बाद देश में दीगर राज्यों में भी अस्थिरता का दौर शुरू हो सकता है।भाजपा के निशाने पर केवल कांग्रेस शासित राज्य ही नहीं है बल्कि दुसरे दलों की सरकारों वाले राज्य भीहैं। बंगाल में भाजपा की कोशिशें फिलहाल फलीभूत नहीं हुईं हैं लेकिन इसका मतलब ये बिलुल नहीं है कि भाजपा ने बंगाल को अपने एजेंडे से बाहर कर दिया है। जम्मू-कश्मीर पर भी भाजपा की नजर है ।कब कौन शिकार बन जाए कहा नहीं जा सकता ।मैंने बहुत पहले ही कहा था कि ये सब जो आज हो रहा है होकर रहेगा ।अगर ये नहीं होता तो देश की सियासत में नया दौर कैसे शुरू हो पाता ?