
व्यापार मेला अपनी विरासत बचाने के लिये लगातार संघर्ष कर रहा है, वजह साफ है मेला अब सिर्फ प्रशासन के भरोसे होकर रह गया है। मेला में सरकार लंबे समय से कोई राजनैतिक नियुक्ति नहीं कर पाई है और ना ही बोर्ड बना है। कमलनाथ सरकार के समय जरूर व्यापारी नेता डा. प्रवीण अग्रवाल मेला प्राधिकरण अध्यक्ष बने थे। लेकिन कमलनाथ गिरने के बाद से लगातार मेला का आयोजन प्रशासन के भरोसे है। जिसके चलते मेला ना ही समय पर लगता है और ना ही कोई नवाचार होता है। मेला का प्रसिद्ध दंगल भी अब नहीं होता है। वहीं पशु मेला भी नहीं लगता है। जब तक मेला में बोर्ड नहीं बनेगा और मेला को पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं मिलेगा तब तक मेला कैसे सुचारू रूप से लगेगा। मेला आफिस में पूरा समय कोई अफसर भी नहीं देता है। जिससे मेला लगातार गर्त की तरफ जा रहा है। व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई है। वर्तमान मेला आयोजन की बात करें तो 25 दिसंबर से मेला प्रारंभ होना है और अब तक मेला में कील तंबू तक का पता नहीं है। ऐसे में मेला अपनी विरासत बचाने की लड़ाई में है। सरकार को अब सोचना होगा कि मेला में जल्द राजनैतिक नियुक्ति होना जरूरी हो गया है।

