अचलनाथ के गर्भगृह को काला कर रहे हैं श्रद्धा के दीपक

ग्वालियर। सवा तीन करोड़ लगात से नव निर्मित अचलेश्वर मंदिर के गर्भगृह पत्थर की सफाई के बाद एक बार फिर चमकने लगा है। कान्टेक्टर ने मंदिर संचालन समिति के नव निर्मित मंदिर को सुपुर्दगी से पहले तीसरी बार पत्थर की इस शर्त पर कराई है कि वह आगे नहीं करेगा। नवनिर्मित पत्थर के जगह-जगह काला पड़ने का मूल कारण श्रद्धालुओं मनचाहे स्थान पर श्रद्धा के दीप लगाना बताना बताया जा रहा है।
मंदिर संचालन समिति में सेवानिवृत्त न्यायाधीश उच्च न्यायालय एनके मोदी की अध्यक्षता में गठित टीम मंदिर में दीपक व्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए कठोर कदम उठाने से हिचकिचा रही है। समिति ने इस समस्या के समाधान के लिए मंदिर परिसर में दीपकों की बिक्री पर रोक लगाने का प्रयास किया था, लेकिन मंदिर के किरायेदारों से समिति यह व्यवस्था लागू कराने में पूरी तरह के नाकाम रही है। तमाम व्यवधानों के बाद नगर के सनातानियों का अस्था का प्रमुख केंद्र अचलेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य जैसे-तैसे पूर्ण होने को है। मंदिर का निर्माण कार्य कोरोना संक्रमण काल पहले शुरु हुआ था। निर्वाचित न्यास हुए विवाद के मामला कोर्ट तक पहुंचा। न्यायालय ने न्यास को भंग कर फिलहाल मंदिर का संचालन जिलाधीश को सौप दिया। कलेक्टर ने मंदिर संचालन के लिए नई व्यवस्था बनाते हुए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में संचालन मंदिर संचालन समिति गठित कर दी। इस समिति के सचिव एस़डीएम के साथ कोषालय, माफी ओकाफ, नगर निगम व पुलिस अधिकारी है। समिति के प्रयासों से मंदिर का निर्माण कार्य तो पूर्ण हो गया, लेकिन अब मंदिर का रखरखाव के लिए समिति कोई व्यवस्था नहीं बना पा रही है।
मंदिर की पहली और छोटी समस्या श्रद्धालुओं द्वारा लगाये जाने वाले दीपक हैं।वर्तमान में श्रद्धालुओं अपनी इच्छा के अनुसार गर्भगृह के किसी कौने में दीपक लगा जाते हैं। हालांकि लंबे समय से दीपक स्टेंड मंदिर के मुख्य गेट पर रखे हैं।इसके बाद भी दीपक गर्भगृह में ही लगाये जा रहे हैं। जिससे श्रद्धालुओं के कपड़े जलने का खतरा रहता है। मंदिर में दूसरी बड़ी समस्या अचलनाथ की शिवलिंग पर श्रद्धालुओं द्वारा पंचामृत से किये जाने वाला गंगाजल सहित सीधे सीवार में जाता है। इस समस्या का समाधान अब तक मंदिर संचालन समिति नहीं खोच पाई है। मंदिर में प्रतिमाह आठ से दस लाख रुपय की चढ़ौत्री आती है। दानपत्र से ही प्रतिमाह पांच से छह लाख रुपये निकलते हैं। इसके अलावा गाड़ी पूजन का शुल्क सहित खाद्य सामग्री, सहित अन्य सामान चढ़ौत्री के रूप में आता है। मंदिर में प्रतिदिन 200 से 250 लोगों को निशुल्क भोजन श्रद्धालुओं के सहयोग से वितरित किया जाता है।