निगम में विसंगति मिली, फिर भी 65 करोड़ का ठेका गुपचुप स्वीकृत कराने की तैयारी, 1510 आउटसोर्स कर्मचारी रखने के लिए किया था टेंडर

ग्वालियर। दो साल तक 1510 कुशल कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखने के लिए विसंगतिपूर्ण टेंडर प्रक्रिया के बावजूद नगर निगम के अधिकारी गुपचुप ठेका पास कराने में लगे हैं। इस ठेके के लिए हरियाणा की कंपनी बिलीव साल्यूशंस सर्विसेज ने 65 करोड़ रुपये का प्रस्ताव दिया, लेकिन सर्विस चार्ज को लेकर विसंगति उत्पन्न हो गई। इसको लेकर जब निगम के विधि विशेषज्ञों से विधिक राय ली गई, तो उन्होंने भी नए सिरे से प्रक्रिया करने का मशविरा दिया। कानूनी राय मिलने पर गत 30 जुलाई को उपायुक्त सामान्य प्रशासन ने इस प्रस्ताव को वापस मांगा, ताकि नए सिरे से टेंडर प्रक्रिया हो सके, लेकिन इसे वापस न करने हुए 31 जुलाई को एजेंडा जारी कर एक अगस्त को एमआइसी के सामने रखकर निर्णय करा दिया गया।
अब जनप्रतिनिधियों को अंधेरे में रखकर परिषद से इसे पास कराने की तैयारी की जा रही है। नगर निगम में तीन तरह के कर्मचारी आउटसोर्स पर रखे जाते हैं। इनमें कुशल श्रमिक यानी मैनपावर, सफाई श्रमिक और सुरक्षा गार्ड शामिल हैं। निगम द्वारा इनके लिए अलग-अलग टेंडर प्रक्रिया की जाती है। परिषद के आदेश के बाद तीनों तरह के कर्मचारी उपलब्ध कराने के लिए ठेका किया जाना था। निगम के अधिकारियों ने गत जून माह में कुशल कर्मचारियों के लिए टेंडर प्रक्रिया की। वहीं सफाई श्रमिक व सुरक्षा गार्ड के लिए भी टेंडर प्रस्तावित थे। कुशल कर्मचारियों के टेंडर में सर्विस चार्ज की शर्तें विसंगतिपूर्ण रहीं और इसी आधार पर बाकी दो टेंडरों की तैयारी थी। इस मामले में गत 19 जुलाई को पत्र लिखकर निगम के वकील एडवोकेट भगवान सिंह बैस से राय ली गई, तो उन्होंने लिखकर दिया कि सेवा शुल्क व निविदा के कुल मूल्य के संबंध में एनआइटी की शर्तें स्पष्ट नहीं हैं। बोली दाता ने अनुमानित मूल्य से कम मूल्य पर प्रस्ताव प्रस्तुत किया है और इसे स्वीकार करने पर भविष्य में दिक्कत हो सकती है। ऐसे में इस प्रक्रिया को टाला जाना चाहिए। निगम अधिकारियों के पास समय से यह कानूनी राय पहुंच गई थी, लेकिन वे इसे छुपा गए और इस टेंडर को स्वीकृति के लिए एमआइसी के पास भेज दिया। एमआइसी की बैठक में भी सदस्यों को कानूनी राय के बारे में जानकारी नहीं दी गई। चूंकि ठेके की राशि 65 करोड़ रुपये है और यह एमआइसी के वित्तीय अधिकार से बाहर है, इसलिए गत एक अगस्त को इसे परिषद को फारवर्ड कर दिया गया।

न्यूनतम 10 प्रतिशत सर्विस चार्ज का नियम, कंपनी ने कम भरा
आउटसोर्स पर कर्मचारी रखने के लिए शासन स्तर पर कलेक्टर रेट की व्यवस्था लागू है। इसमें श्रमिक की योग्यता के हिसाब से उसका मानदेय तय किया जाता है। कोई भी आउटसोर्स एजेंसी इसमें परिवर्तन नहीं कर सकती है। ऐसे में टेंडर में कुशल, अर्धकुशल और अकुशल कर्मचारी के हिसाब से शासन द्वारा तय मानदेय का उल्लेख किया जाता है। इसके अलावा कर्मचारी के वैधानिक देयक यानी पीएफ और ईएसआइ भी वेतन के मान से तय होते हैं, ऐसे में इसमें भी परिवर्तन नहीं हो सकता है। ये दो स्लैब फिक्स होते हैं। टेंडर में एजेंसी के चयन का पैमाना सर्विस चार्ज होता है यानी कर्मचारी उपलब्ध कराने के बदले वह क्या चार्ज करेगी। इसके लिए भी शासन से गत 31 मार्च 2023 को गाइडलाइन जारी हो चुकी है कि कम से कम 10 प्रतिशत सर्विस चार्ज भरना ही होगा, लेकिन यहां कंपनी ने तय गाइडलाइन से कम चार्ज भरा जिसके कारण विसंगति उत्पन्न हो गई।