साडा में बसाहट अब तक नहीं, नए शहर का सपना नहीं हो सका पूरा

 

(धीरज राजकुमार बंसल)
ग्वालियर। शहर की आबादी बढ़ने के बाद दबाव कम करने के लिए ग्वालियर में भी नया शहर बसाने का सपना देखा गया था। उसकी शुरुआत 1992 में की गई थी, लेकिन 32 साल होने के बाद भी नया शहर बसने का सपना पूरा नहीं हो सका है। कागजों में जरूर करोड़ों की राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन उसके बाद भी बसाहट का कोई अता पता नहीं है। लंबे समय से साडा में कोई राजनैतिक नियुक्ति भी नहीं हो पाई है, जिसके काउंटर मैग्नेट सिटी का काम पूरी तरह से प्रभावित है।
दिल्ली की तर्ज पर ग्वालियर में भी नया शहर बसाने की योजना बनाई गई थी, नए शहर को बसाने की योजना पर अब तक कोई सराहनीय कदम नहीं उठाया गया है। शुरुआत में जरूर लोगों ने प्लॉट खरीद लिए थे, क्योंकि उस समय लोगों को लगा था कि नया शहर बसेगा तो प्लॉट महंगा हो जाएगा और नए शहर में नई सुविधाओं के साथ रहने का मौका मिलेगा, लेकिन प्लॉट लेने वाले अब पछता रहे हैं कि उनका पैसा उलटे फंस गया। यहां बता दें कि नया शहर नए शहर को बसाने का एक सपना करीब तीन दशक पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री स्व. शीतला सहाय ने देखा था। जिसे पूरा करने के लिए प्रदेश सरकार ने विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण साडा का गठन किया था। जनसंख्या दबाव को कम करने नए शहर की बसाहट को लेकर उस समय जो सपना देखा गया था, 32 साल बाद भी वह सपना कागजों में दफन होता नजर आ रहा है। वैसे विशेष क्षेत्र प्राधिकरण के नाम पर शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर नए शहर को बसाने के लिए अभी तक 600 करोड़ों की राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन धरातल पर वहां कुछ भी नजर नही आ रहा है। साडा ने तिघरा क्षेत्र में दो आवासीय सेक्टर में लगभग छह हजार प्लॉट बेचे थे। जिस साडा क्षेत्र में 32 साल में बसाहट कराने में सफलता नहीं मिल सकी, उसके लिए अब मास्टर प्लान बनाकर 2035 के हिसाब से तीन जिलों की जमीन को भी शामिल किया गया है। इसके हिसाब से 427 वर्ग किमी क्षेत्रफल से बढ़कर अब यह क्षेत्रफल 1778 वर्ग किमी हो गया है। अब सवाल यह है कि जिस योजना में 32 साल के अंदर बसाहट नहीं करा सके तो फिर उक्त योजना पर करोड़ों की राशि खर्च करने की क्या जरूरत है?