
(धीरज बंसल)
विजयपुर चुनाव में भाजपा की पराजय ने दलबदल कराकर चुनाव जीतने की रणनीति को बड़ा झटका दिया है। इससे यह संदेश गया है कि पार्टी के कार्यकर्ता अब बाहरी उम्मीदवारों को स्वीकार नहीं करेंगे।
लोकसभा चुनाव से पहले 30 अप्रैल को रामनिवास रावत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद भाजपा ने छह बार के विधायक रावत को प्रदेश सरकार में वन मंत्री बना दिया गया था। लेकिन, रावत को भाजपा में शामिल करने और उन्हें प्रत्याशी बना जाने का पार्टी के अंदर विरोध शुरू हो गया था। हालांकि, शीर्ष नेतृत्व ने असंतुष्ट नेताओं को मनाने का दावा किया था, लेकिन विजयपुर के परिणाम बताते हैं कि भाजपा नेता और कार्यकर्ता रावत को स्वीकार नहीं कर पाए। भाजपा से पूर्व विधायक सीताराम आदिवासी और बाबूलाल मेवाड़ा भी टिकट के दावेदार थे। लेकिन, उन्हें टिकट नहीं दिया था। ऐसे में अब आरोप लग रहे हैं कि इन दोनों नेताओं ने चुनाव में पूरे मन से काम नहीं किया।
कांग्रेस ने न केवल सही उम्मीदवार चुना, बल्कि जमीन पर भी प्रभावी ढंग से काम किया। कांग्रेस नेता नीटू सिकरवार उपचुनाव की तारीख घोषित होने से पहले ही विजयपुर में सक्रिय हो गए थे। उनके मैनेजमेंट और टीम वर्क के जरिए कांग्रेस ने मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री को हराकर जीत हासिल की। रावत के पार्टी बदलने से उनके समर्थकों और जनता ने इसे पसंद नहीं किया। यह भी हार का बड़ा कारण रहा। भाजपा को विजयपुर की हार का सरकार पर कोई खास असर नहीं होगा, लेकिन रामनिवास रावत को अब मंत्री पद छोड़ना पड़ेगा।

