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ग्वालियर। वन भूमि पर कब्जा करना काफी आसान होता जा रहा है, क्योंकि अभी तक वन कर्मियों के पास ऐसे कोई उपाय नहीं हैं, जिससे वह अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ सख्ती कर सकें। हालात यह हैं कि कई बार तो वन कर्मियों को ही पिटकर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके पीछे मूल कारण यह है कि वन कर्मियों के पास हथियार नहीं हैं और कुछ के पास हैं तो उनको चलाने का अधिकार नहीं है। ऐसे में साफ है कि जब स्वयं ही सुरक्षित नहीं हैं तो भूमि को कैसे सुरक्षित बचा सकते हैं।
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अंचल में लगातार वन भूमि पर कब्जे होते जा रहे हैं, जिसके कारण फॉरेस्ट की जमीन कम होती जा रही है। ग्वालियर अंचल की वन भूमि भू माफिया के लिए सॉफ्ट टारगेट बन चुकी है, क्योंकि भू माफिया उक्त जमीन पर आसानी से कब्जा कर लेते हैं और उसको रोकने भी कोई नहीं आता है। हालात यह हैं कि दो दशकों के बीच में ही शहर की 15 पहाड़ियां पूरी तरह से गायब हो चुकी हैं। यह वन विभाग के आला अधिकारी से लेकर प्रशासन के अधिकारी भी देख रहे हैं, लेकिन उसके बाद भी उसको लेकर कोई कार्रवाई न करना यह दिखाता है कि वन भूमि पर कब्जा कराने में हर किसी का सहयोग बना हुआ है। ऐसी स्थिति में वन कर्मियों से उम्मीद की जाए तो यह सही नहीं होगा, क्योंकि उनको जब भी कार्रवाई के लिए भेजा जाता है तो उन्हें पिटकर ही वापस लौटने मजबूर होना पड़ता है।
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यहां बता दें कि गिरवाई थाना क्षेत्र स्थित बारह बीघा कॉलोनी में वन विभाग की जमीन पर अतिक्रमण कर मकान बना रहे दंपती ने वनकर्मियों पर हमला कर सिर फोड़ दिए थे। वन भूमि पर कब्जा कर वहां खेती से लेकर मकान बनाने का काम तेज गति से किया जा रहा है। इसको रोकने के लिए फिलहाल किसी तरह के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। यही कारण है कि शिवपुरी वन वृत में ही 87 हजार हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है और ग्वालियर वृत में 17 हजार हेक्टेयर वन भूमि पर कब्जे हो चुके हैं। यही नहीं ग्वालियर शहर की पिछले दो दशक के बीच ही 15 पहाड़ियां भी पूरी तरह से गायब हो चुकी हैं। वर्तमान में वहां आलीशान मकान बन चुके हैं। खास बात तो यह है कि प्रशासन व सरकार ने वहां सभी तरह की सुविधाएं भी पहुंचा दी हैं।
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