सिंधिया का बढ़ा कद, अंचल के सांसदों से समन्वय बड़ी चुनौती

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में मध्य प्रदेश के पांच चेहरे हैं। इनमें से दो बड़े चेहरे ऐसे हैं, जिनकी पहचान विकास कार्यों व नवाचार से है। पहला चेहरा शिवराज सिंह चौहान व दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया का है। पूर्व मुख्यमंत्री चौहान की लाड़ली बहना योजना ने प्रदेश में सरकार की वापसी के साथ लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत का आधार प्रदान किया है। वही सिंधिया ने नागरिक उडड्यन के क्षेत्र काफी उपलब्धियां हासिल की हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दूसरी बार दिल्ली में सरकार में शामिल हुए सिंधिया का प्रदेश में कद बढ़ेगा, लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल को विकास के पथ पर ले जाने के लिए तीन अन्य सांसदों से समन्वय उनके लिए बड़ी चुनौती है। इसकी वजह है कि अंचल के तीनों सांसद सिंधिया के विपरीत खेमे से आते हैं। इससे पहले भी सिंधिया को अंचल में ग्वालियर के पूर्व सांसद विवेक नारायण शेजवलकर व गुना शिवपुरी के केपी सिंह के विरोध का सामना करना पड़ा था। मुरैना, भिंड व ग्वालियर के नव निर्वाचित सांसद से आंतरिक खेमेबाजी के कारण सिंधिया की केमिस्ट्री नहीं बनती है। अगर यह केमिस्ट्री और बिगड़ती है तो निसंदेह इसका सीधा असर अंचल के विकास पर नजर आयेगा। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया आंतरिक गुटबाजी से त्रस्त होकर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। सिंधिया को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया के उत्तराधिकारी मानकर गले लगाया। इसके अलावा सिंधिया की छवि शुरु से ही सुलझे राजनीतिक व तरक्कीपसंद के नेता के रूप में रही है। भाजपा नेतृत्व ने सिंधिया को राजनीतिक की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए राज्यसभा के जरिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर नागरिक उड्डयन मंत्रालय का दायित्व सौंपा था।
अंचल के विकास के लिए सिंधिया को नवनिर्वाचित सांसद भारत सिंह कुशवाह (ग्वालियर), शिवमंगल सिंह तोमर (मुरैना), संध्या राय(भिंड) से तालमेल बैठाना बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह तीनों सांसद प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के खेमे से हैं। तोमर फिलहाल सक्रिय राजनीति से दूर हैं, किंतु इन तीनों सांसदों की डोर उनके हाथ में मानी जा रही है। चुनाव के बाद समर्थकों ने तोमर व सिंधिया के बीच दूरी होने के स्पष्ट संकेत भी दिये हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अंचल के लोगों के सामने बड़ा सवाल है कि यह तीनों सांसद अपने-अपने क्षेत्रों में सिंधिया की दखलदांजी को क्या सहजता के साथ पसंद करेंगे? वैसे विकास की दृष्टि से यह सवाल बड़ा आसान है। अगर खेमेबाजी के रूप में इस सवाल को देखेंगें तो बहुत मुश्किल नजर आयेगा।