Review Overview
सियासत और बीमारी पर लिख-लिख कर अब पस्त हो चुका हूँ ,इसलिए आज इन सबसे हटकर सत्तू पर लिख रहा हूँ .सत्तू कोरोना की तरह ही भारत में पूरी तरह से व्याप्त एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो अपने रूप,रंग और स्वाद में सबसे अलग है .सत्तू सबसे पहले कब बना,किसने बनाया और किसने खाया इस पर न जाते हुए मै सीधी बात करता हूँ .
सत्तू पर किसी एक राज्य का एकाधिकार नहीं है फर भी बिहार वाले इसे अपना राजकीय खाद्य मानते हैं .कहा जाता है की नांद वंश ने इस खाद्य पदार्थ का आविष्कार कराया .कराया होगा,हमें इस पर न उज्र है ,न आपत्ति क्योंकि हमारे बुंदेलखंड में भी सत्तू उतना ही लोकप्रिय और सर्वग्राही है जितना की बिहार में .मै तो देश में जहां-जहाँ गया मायने सत्तू को अलग-अलग स्वरूप में मौजूद पाया .लेकिन मै किसी क्षेत्र विशेष के सत्तू को श्रेष्ठ या सर्वश्रेष्ठ नहीं कह सकता .
मुझे याद है की हमारे ननिहाल में पच्चीस लोगों के परिवार के लिए ग्रीष्म ऋतू में कम से कम एक बोरा चने का सत्तो तो बनता ही था .सत्तू सबको प्रिय था लेकिन हमारी नानी के अविवाहित भाई भगवानदास तो सत्तू के दीवाने थे. भगवानदास हमारे बब्बा होते थे,वे ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे.अपनी बहन के साथ हमारी ननिहाल आये तो फिर यही के होकर रह गए .खेती-बाड़ी में उनका मन रमता था सो हमारे नाना ने कुछ जमीन उनके नाम कर उनका भविष्य सुरक्षित कर दिया था .भगवानदास बब्बा गर्मियों में सुबह -सुबह हाथ-मुंह धोकर आंगन में आते और हुंकार लगते-जीजी ! लाओ सतुआ-बतुआ ताकि खाकर भैंसें लेकर हार निकला जाये.सत्तो के इन्तजार में उनके मुंह में कितना पानी आता ,हमें नहीं पता ,लेकिन वे जब तक सत्तू आता ,उसका बेसब्री से इन्तजार करते थे .
भगवानदास बब्बा को सत्तू के साथ नमक और लाल मिर्च डालकर खाना अच्छा लगता था. वे सत्तू को चाटने के बजाय उसे पीना पसंद करते थे,क्योंकि इससे वक्त भी बचता था और उसका स्वाद भी बढ़ जाता था .बब्बा को यदा-कड़ा सत्तू के साथ शक़्कर भी हासिल हो जाती थी लेकिन ये तब होता था जब उनके ऊपर हमारी बड़ी मामी की महर हो जाये .उस ज़माने में शक़्कर एक नायाब चीज होती थी और केवल अतिथियों के लिए ही उपलब्ध थी. दोयम दर्जे के सदस्य गुड़ से सत्तू का सेवन करते थे .
बहरहाल सत्तू हमें भी उतना ही प्रिय है जितना भगवानदास बब्बा को था. सत्तो के बल पर बब्बा 90 साल तक जिए ,हमारा इरादा भी कुछ ऐसा ही है लेकिन ये कोरोनाकाल है इसलिए जाने दीजिये .हाँ बात सत्तू की चल रही थी .हम जब किशोर थे तो अपने गांव रामपुरा जागीर से अपने जिला मुख्यालय जालौन की मंडी तक अपनी कृषि उपज लेकर बैल गाड़ी से जाते थे .हमारे साथ हमारा चचेरा भाई महेश भी होता था .दादी हम दोनों को रास्ते के लिए सत्तू बांध देती थी.हमें घर पर नमक,मिर्ची और शक़्कर के साथ घी भी मिलता था ,भले ही हम जागीरदार न थे लेकिन हमारे गांव का नाम तो रामपुरा जागीर था .
गांव से शहर तक की कोई ३२ किमी की यात्रा तय करने में बैलगाड़ी को आठ घंटे तो लगते ही थे ,हम रास्ते में लंच के लिए किसी कुएं पर रुकते,नहाते-धोते और फिर सत्तू निकाल कार साफी [गमछे]पर फैला लेते. महेश भाई कुंए से पानी लेकर उसे रोटी के आते की तरह गूंधते और फिर उसकी लोइयां बनाकर हम दोनों उस सत्तू को निगल जाते. रस्ते में कटोरा-थाली लेकर कौन चले ? सत्तू उदरस्थ करने के बाद एक नींद की झपकी और फिर आगे की यात्रा .लेकिन ये सब दशकों पुरानी बात है. अब सत्तू बाजार से आता है वो भी किलो,आधा किलो .घर में बहुत कम लोग सत्तू खाते हैं .
सत्तू खाने का कोई एक सर्वमान्य तरीका नहीं है.देश-काल और परिस्थितियों के हिसाब से इसमें तब्दीली आती है .पहले सत्तू खालिस चने का बनता था. पहले चना भिगोया जाता,फिर सुखाया जाता और फिर भुनने के लिए भाड़ तक भेजा जाता था .लौटकर इस भुने चने को पहले जतलए से डला जाता था और अंत में इसे आते की तरह पीसा जाता था,कोई मिलावट नहीं होती थी लेकिन बाद में जब हमारे चरित्र में मिलावट घुली तो सत्तू में भी जौ,और गेंहूं की मालावत होने लगी वो भी तर्कों के साथ .आमतौर पर आप आप चाहें तो इसका शर्बत के रूप में भी प्रयोग कर सकते है या इसे आटे की तरह गूंथ कर प्याज और आम की चटनी के साथ भी खा सकते हैं। गैस्ट्रोइंट्रोटाइटिस से पीड़ित लोगों को सत्तू जरूर खाना चाहिए। चने और जौ के सत्तू को बराबर मात्रा में मिला कर आप इसका सेवन कर सकते हैं .
हमारी बेटियां बता रहीं थी की अब निरंतर आविष्कारों के चलते सत्तू से कम से कम 265 तरिके के पकवान बनाये जाने लगे हैं. बिहारी भाई सत्तू को लिट्टी में मिला लेते हैं,पराठा भी बनाकर खा लेते हैं ,हमारे रेल मंत्री रहे लालू जी ने तो सत्तू का शर्बत ही बिकवा दिया था .जानकार कहते हैं कि इसे पानी के साथ मिलाकर पीने से शरीर को फायदा कई तरह के फायदे होते हैं। खाली पेट सेवन करना ज्यादा लाभदायक है। चने के सत्तू में अधिक मात्रा में प्रोटीन मिलती है जो लीवर की समस्या को दूर करती है।सत्तू का सेवन करने से न सिर्फ मधुमेह जैसे रोग ठीक हो जाते हैं बल्कि व्यक्ति को मोटापे से भी निजात मिलती है,लू से बचा जा सकता है,रक्त की कमी को दूर किया जा सकता है .सत्तू की इन विशेषताओं के समर्थन में मेरे पास कोई शोध रिपोर्ट नहीं है ,मै तो बुजुर्गों के तजुर्बे के आधार पर ये सब कह रहा हूँ .
चूंकि मै सत्तू से प्रेम करता हूँ इसलिए आपको सावधान भी करना अपना धर्म समझता हूँ ,सो बता रहा हूँ कि चने के सत्तू ज्यादा न खाएं बल्कि इसमें जौ मिला लें। चने का सत्तू गैस बनाता है।जिन्हें स्टोन है वह सत्तू खाने से बचें क्योंकि इसमें कैल्शियम काफी होता है।सत्तू को खाते समय बीच में पानी नहीं पियें । खाने के बाद पानी पिएं।दिन में एक या दो बार से अधिक सत्तू बिलकुल न खाएं।
सत्तू खाना आपके सेहत के लिए गर्मियों में वरदान होता है लेकिन इसे सर्दियों व बरसात में कम से कम खाना चाहिए।
मेरे हिसाब से सत्तू इस देश का सर्वहारा खाद्य पदार्थ है ,इसका चरित्र न कांग्रेस जैसा है और न भाजपा जैसा ,ये समाजवादी है ,किसी के भी साथ सुकून के साथ रच-पच सकता है .इसलिए यदि आप अपने आपको राष्ट्रवादी कहते हैं तो सबसे पहले आपको सत्तूवाद का समर्थन करना चाहिए .आप जब कभी गर्मियों में नाचीज के घर पधारें तो सत्तू का सेवन अवश्य करें,जी न जुड़ा जाये तो कहियेगा.
@ राकेश अचल