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मध्यप्रदेश में तबादलों की गंगा 

मध्यप्रदेश में तबादलों की गंगा पूरे उफान पर है,आप कह सकते हैं कि खतरे के निशाँ तक आ पहुंची है लेकिन सर्कार है कि उसे इस उफान कि कोई फ़िक्र ही नहीं है .प्रदेश में नयी सरकार बनने के बाद 26  दिसंबर   2018  से शुरू हुआ तबादला परवाह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है.स्थिति ये बन गयी है कि अब प्रशासन और पुलिस का हर अधिकारी एक से अधिक बार तबादले का शिकार बन चुका है .         प्रदेश में पूरे 15 साल बाद सत्ता में आयी कांग्रेस के लिए सरकारी मशीनरी में तबादला करना…

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मध्यप्रदेश में तबादलों की गंगा पूरे उफान पर है,आप कह सकते हैं कि खतरे के निशाँ तक आ पहुंची है लेकिन सर्कार है कि उसे इस उफान कि कोई फ़िक्र ही नहीं है .प्रदेश में नयी सरकार बनने के बाद 26  दिसंबर   2018  से शुरू हुआ तबादला परवाह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है.स्थिति ये बन गयी है कि अब प्रशासन और पुलिस का हर अधिकारी एक से अधिक बार तबादले का शिकार बन चुका है .
        प्रदेश में पूरे 15 साल बाद सत्ता में आयी कांग्रेस के लिए सरकारी मशीनरी में तबादला करना पहली जरूरत और प्राथमिकता थी,शायद इसीलिए मुख्यमंत्री का पद सम्हालते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तबादलों का प्रवाह खोल दिया .शपथ ग्रहण के कुछ ही घंटे बाद इंदौर कलेक्टर निशांत बरवड़े और भोपाल कमिश्नर अविनाश लवानिया के तबादले से शुरू हुआ ये सिलसिला अभी थमा नहीं है .हाल ही में ग्वालियर कलेक्टर भरत यादव को हटाकर सरकार ने तबादलों का नया कीर्तिमान   बना दिया है,इससे पहले प्रदेश में कभी इतने व्यापक पैमाने पर तबादले नहीं हुए .
 अगर हम मध्य प्रदेश राज्य के आंकड़ों की बात करें जिसमें कुल 439 अधिकृत आईएएस  अफसरों की संख्यां में 306 आईएएस अफसर प्रत्यक्ष भर्ती के तहत तैनात होने चाहिए लेकिन केवल 240 आईएएस अफसर हीं तैनात हैं। कुल 133 आईएएस अफसरों की तैनाती पदोन्नति के माध्यम से होने चाहिए लेकिन केवल 101 आईएएस अफसर हीं तैनात हैं। कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में  98आईएएस अफसरों की कमी हैं।और मजे की बात है कि प्रदेश में जितने आईएएस अफसर है उनमें से 80  फीसदी को बदल दिया गया है
प्रदेश में कोई 300  आईपीएस और इतने ही आईएफएस अफसरों में से बहुत कम हैं जो तबादलों की इस बाढ़ में बहने से बच गए .शीर्ष पदों पर आबकारी आयुक्त और परिवहन   आयुक्त को छोड़कर शायद ही ऐसा कोई भारतीय प्रशासनिक सेवाओं का अधिकारी होगा जिसे तबादले की मार न सहना पड़ी हो .किसी का शहर बदला गया तो किसी का संभाग किसी का जिला  ,अगर ज्यादा नहीं हुआ तो एक ही शहर में एक सीट से दूसरी सीट पर पहुंचा दिया गया
मध्यप्रदेश में राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों और राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को भी लगभग पूरी तरह से बदल   दिया गया है .,प्रदेश के 10  संभागों और 50  जिलों में से शायद ही ऐसा कोई जिला या संभाग होगा जिसका मुखिया न बदला गया हो.इस अदला-बदली में कोई मुख्यधारा में वापस लौट आया तो कोई लूप लाइन में चला गया .मैदानी स्तर पर पटवारी और प्रधान आरक्षक स्तर तक के तबादले खुद मुख्यमंत्री की निगरानी में हुए .इन व्यापक तबादलों को लेकर जब कांग्रेस के भीतर ही असंतोष जन्मा तो जिले के प्रभारी मंत्रियों को भी जिलों के भीतर तबादले करने के अधिकार सौंप दिए गए,विधायकों की अनुशंसाओं को भी ध्यान में रखने की हिदायत दी गयी .
व्यापक पैमाने पर  हुए इन तबादलों से पहले से कंगाल प्रदेश के खजाने पर कितना भार पड़ा इसकी चर्चा करना व्यर्थ है क्योंकि ये तो होना ही था ,लेकिन अब सवाल ये है कि क्या इतने बड़े पैमाने पर तबादलों के बाद भी प्रदेश सरकार की कार्य संस्कृति में कोई प्रभावी तब्दीली आ पाएगी .समझा जाता है कि ये तबादले आने वाले आम चुनावों के हिसाब से किये गए हैं,कुछ तबादलों में चुनाव आयोग की गाइड लाइन की ओट ली गयी तो बाक़ी को राजनीतिक स्केनर के जरिये जांच परख कर बदला गया .तबादलों में सबसे ज्यादा रूचि मुख्यमंत्री के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ली.ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपनी पसंद के अफसरों के तबादले कराये लेकिन उनकी सूची सबसे छोटी रही .
प्रशासनिक तबादले करने में हड़बड़ी का आलम ये रहा कि अनेक अफसरों को केवल पांच दिन में दोबारा बदल दिया गया.एक डीएसपी को तो बीते ढाई महीने में आठ बार तबादला आदेशों का सामना करना पड़ा ,लेकिन न कोई कहने वाला है और न कोई सुनने वाला क्योंकि पूरे कुएं में भांग पड़ी है मप्र के वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग कहते हैं कि -” सरकारें तबादले करके अफसरों को तो बदल सकती हैं, लेकिन दलालों और बिचौलियों को बदलना संभव नहीं होता है। वे हर सरकार को घेर लेते हैं और सरकार की जड़े काट देते हैं”.
सूत्रों का कहना है कि सरकार द्वारा किये गए व्यापक तबादलों का कांग्रेस को सियासी लाभ मिल पायेगा इसकी संभावना न के बराबर है क्योंकि इस फेरबदल से कर्मचारियों और अधिकारियों में व्यापक असंतोष है .कर्मचारियों-अधिकारियों का ये असंतोष आने वाले आम चुनाव में प्रस्फुटित भी हो सकता है ,लेकिन सरकार को इसकी बहुत ज्यादा फ़िक्र नहीं है .सरकार चलने वालों का मानना है कि सरकारी मशीनरी को साफ़-सुथरा बनाने का तबादलों के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है
प्रशासनिक कायाकल्प में सभी के साथ अन्याय हुआ   ऐसा भी नहीं कहा जा सकता,क्योंकि शीर्ष स्तर पर से ऐसे अफसरों को भी हटाया गया जो पांच से अधिक वर्षों से एक ही पद पर काबिज थे और एक तरह से कुछ ख़ास पदों पर इन अफसरों का एकाधिकार हो गया था .विवेक अग्रवाल और मोहम्मद सुलेमान जैसे अधिकारियों का उल्लेख इस बारे में किया जा कसता है .तबादलों की इस आंधी से बचने के लिए समझदार और जुगाड़ रखने वाले अनेक शीर्ष अफसर प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में चले गए और कुछ को दिल्ली से वापस बुला लिया गया
मुख्यमंत्री ने सेवनिवृति के बाद भी सरकार के लिए काम कर रहे अनेक अफसरों को उनके पदों से हटाया,इनमें प्रमुख नाम पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी का है .पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे जयादा भरोसेमंद माने जाने वाले एसके मिश्रा ऐसे ही अफसरों में शुमार थे जो सेवा निवृत्ति के बाद भी सरकार को संविदा पर एक पूर्णकालिक अफसर की तरह सेवाएं दे रहे थे .नए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पुरानी अमरबेलों को हटाया लेकिन नयी अमरबेलें श्यामलाहिल की हरयाली पर छोड़ भी दीं ,ये उनकी मजबूरी थी या जरूरत ये वे ही जानें .
कुल मिलकर नयी सरकार ने अपने वादों के मुताबिक़ कोई बड़ा काम किया हो या न किया हो लेकिन बिना कोई वादा किये सरकारी मशीनरी की पूरी ओव्हरहालिंग कर दी है.आम चुनाव के बाद यदि सरकारी मशीनरी सरपट न दौड़ी तो मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए समस्याओं का एक नया युग शुरू हो सकता है  जो जन असंतोष   का कारण भी बन सकता है.
मध्यप्रदेश में तबादलों की गंगा पूरे उफान पर है,आप कह सकते हैं कि खतरे के निशाँ तक आ पहुंची है लेकिन सर्कार है कि उसे इस उफान कि कोई फ़िक्र ही नहीं है .प्रदेश में नयी सरकार बनने के बाद 26  दिसंबर   2018  से शुरू हुआ तबादला परवाह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है.स्थिति ये बन गयी है कि अब प्रशासन और पुलिस का हर अधिकारी एक से अधिक बार तबादले का शिकार बन चुका है .         प्रदेश में पूरे 15 साल बाद सत्ता में आयी कांग्रेस के लिए सरकारी मशीनरी में तबादला करना…

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