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प्रत्याशियों की घोषणा की संहिता 

देश में आम चुनावों की घोषणा के साथ ही प्रत्याशियों के नाम की घोषणा भी होना चाहिए ,इस बारे में चुनाव आयोग का हस्तक्षेप अब तक नहीं हुआ है .'मोदी है तो मुमकिन है'में आस्था रखने वालों  के युग में ये असम्भव काम भी सम्भव है.एक रिवाज  बन गया है कि राजनितिक दल अपने प्रत्याशी ऍन अंतिम क्षणों तक घोषित करते हैं ,जबकि सबको पता होता है कि चुनाव कब होना है . प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के लिए चुनाव आयोग को कम से कम छह माह पहले की बाध्यता डालना चाहिए ताकि मतदाता को अपने प्रतिनिधि के बारे…

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देश में आम चुनावों की घोषणा के साथ ही प्रत्याशियों के नाम की घोषणा भी होना चाहिए ,इस बारे में चुनाव आयोग का हस्तक्षेप अब तक नहीं हुआ है .’मोदी है तो मुमकिन है’में आस्था रखने वालों  के युग में ये असम्भव काम भी सम्भव है.एक रिवाज  बन गया है कि राजनितिक दल अपने प्रत्याशी ऍन अंतिम क्षणों तक घोषित करते हैं ,जबकि सबको पता होता है कि चुनाव कब होना है .
प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के लिए चुनाव आयोग को कम से कम छह माह पहले की बाध्यता डालना चाहिए ताकि मतदाता को अपने प्रतिनिधि के बारे में जानकारी हासिल करने और निर्णय करने में सहूलियत हो ,नयी आचार संहिता के मुताबिक़ प्रत्याशियों को अपने आपराधिक रिकार्ड की आम घोषणा भी करना पड़ती है ,ये सब होता है लेकिन इतनी जल्दी में होता है कि मतदाता न कोई सूचना ढंग से पढ़ पाता है और न ही उसकी विवेचना   कर पाता है.
मुझे याद है कि 1984 -85  के आम चुनाव में कांग्रेस ने नामांकन के पपांडरः मिनिट पहले तक अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर न सिर्फ सबको चौंकाया था बल्कि एक सम्भरम की स्थिति पैदा कर दी थी,बाद में सभी राजनितिक दलों ने इसे अपना लिया .प्रत्याशियों के नामों की घोषणा ताश के खेल की तरह हो गयी .यानि सब अपनी तुरुप छिपाकर कहने के आदी हो गए हैं ,इस खेल में मतदाता ठगा जाता है ,उसे अपने भावी जनप्रतिनिधि के बारे में जांच-पड़ताल का समय ही नहीं मिल पाता .
लोकतंत्र की मजबूती और चुनाव प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने के लिए आवश्यक है कि सभी राजनीतक दल हर चुनाव से कम से कम छह माह पहले प्रत्येक क्षेत्र के लिए अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करें ताकि एक तो प्रत्याशी को बहुसंख्यक मतदाता तक पहुँचने का अवसर मिल सके और मतदाता को भी अपने प्रतिनिधि के बारे में फैसला करने का समय मिल पाए .अभी स्थिति ये है कि नाम वापसी के बाद किसी भी प्रत्याशी को मतदाताओं तक पहुँचने के लिए बामुश्किल एक पखवाड़े का समय मिल पाता है ,इतने कम समय में मतदाता अपने बीच खड़े प्रत्याशियों के चेहर-मोहरे तक नहीं पहचान पाते .
समय के साथ जन प्रतिनिधित्व कानों में संशोधन होते रहे हैं,इस आम चुनाव के बाद एक संशोधन प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के बारे में भी होना चाहिए.बेहतर तो ये हो कि चुनाव आयोग प्रत्याशियों का भी पंजीयन चुनाव से छह माह पूर्व कराये और इस अवधि में अपने स्तर पर भी पड़ताल करे .केवल हलफनामों से काम नहीं चलता .चुनाव आयोग कभी भी किसी भी प्रत्याशी से उसकी आय के बारे में नहीं जान पाता ,उसके पास इतना समय भी नहीं होता कि प्रत्याशी द्वारा दिए गए तथ्यों की पड़ताल की जा सके  .नतीजा चुनाव बाद याचिकाओं का ढेर लग जाता है ,इसे नए नियम बनाकर टाला जा सकता है .
चुनाव कानूनों में संशोधन न हो पाने के कारण आज भी हमारी चुनाव प्रक्रिया में अनेक विसंगतियां हैं. न हम चुनाव को जातिवाद से मुक्त करा पाए हैं और न प्रत्याशी के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता ही तय करा पाए हैं.हम बार-बार लोकतंत्र की झूठी दुहाई देकर इससे बचते रहते हैं ..नतीजा ये होता है कि हमारे चुने हुए जन प्रतिनिधि कभी-कभी तो शपथ तक नहीं पढ़ पाते,,मुख़्यमंत्रियों के सन्देश तक नौकरशाहों को पढ़ना पड़ते हैं .पढ़े-लिखे लोगों के चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने से लोकतंत्र कमजोर नहीं बल्कि मजबूत ही होता है .
भारत की चुनाव प्रक्रिया एक तरह की प्रयोगशालाओं से गुजरती रहती है ,अनेक बार इसके सुफल मिलते हैं तो अनेक बार दुष्परिणाम भी सामने आते हैं .कभी विश्वास मजबूत होता है तो कभी डगमगा जाता है .हमारी वोटिंग मशीने चाहे जब अविश्वसनीय कही जाने लगतीं है. हालानिक बेचारी पूरी ईमानदारी से काम करती नजर आती हैं .मै तो कहता हूँ कि आने वाले दिनों में मतदान के लिए आन लाइन व्यवस्था भी चुनाव आयोग को करना चाहिए,क्योंकि जब चुनाव आयोग मतदाता सूची में नाम जुड़वाने और हटवाने के लिए आम आदमी को आन लाइन सुविधा देता है तो मतदान के लिए इसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया जासकता ?जब हम मुद्रा का विनिमय आन लाइन कर सकते हैं तो अपना मतदान भी ान लाइन करने से वंचित क्यों रखे जा रहे हैं.जो सावधानियां बैंकें अपना रहीं हैं उन्हें चुनाव आयोग भी अपना सकता है .मतदान का विकल्प मतदाता के हाथ में होना चाहिए कि उसे मतदान बूथ पर जाकर मतदान करना है या घर बैठकर ?
(@ राकेश अचल)
देश में आम चुनावों की घोषणा के साथ ही प्रत्याशियों के नाम की घोषणा भी होना चाहिए ,इस बारे में चुनाव आयोग का हस्तक्षेप अब तक नहीं हुआ है .'मोदी है तो मुमकिन है'में आस्था रखने वालों  के युग में ये असम्भव काम भी सम्भव है.एक रिवाज  बन गया है कि राजनितिक दल अपने प्रत्याशी ऍन अंतिम क्षणों तक घोषित करते हैं ,जबकि सबको पता होता है कि चुनाव कब होना है . प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के लिए चुनाव आयोग को कम से कम छह माह पहले की बाध्यता डालना चाहिए ताकि मतदाता को अपने प्रतिनिधि के बारे…

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