_छुपा मन का मीत_____

मेरे उद्देश्यों की सिद्धि में, मैं सफ़लता पाऊँ!
साधन गर तू हो, मैं साधिका बन जाऊँ।
कितने बन्दों में, कितने छन्दों में तुम समाओगे!
कितने ग्रंथों में, कितने पंथों में तुम पढ़े जाओगे।
तुम्हारी अनुपम गाथा है, जिसे मैंने हृदय से गाया है!
मेरे कवयित्री हृदय ने जिसे,सदा ही निरुपम चित्राया है।
तेरे सहज स्वरूप से, निखर गये मेरे छन्द और गीत!
तू अद्भुत मुखड़ा, अंतरा ; तू संपूर्ण श्रृंगार और मीत।
कितना चुपचाप सा था जीवन, कितने छुपकर आये आप!
कितना ठहर- ठहर कर, मेरे अधरों से निकली दो बात।
अनुपमा पटवारी “ख्याति”✍️
इंदौर , मध्यप्रदेश