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अब ना तो उंघने वाले अफसर चलेंगे और ना ही फाइल दबाकर बैठने वाले चलेंगे तो सिर्फ वही जो परफॉर्म करेंगे। केंद्र सरकार पहले से ही इस तरह की नीति पर चल रही है, लेकिन मध्य प्रदेश में विपक्ष का रोल निभा रही बीजेपी कांग्रेस सरकार की इस नीति पर क्या सोचती है।
सीएम कमलनाथ की सोच हमेशा से ही मॉडर्न रही है क्योंकि उनके छिंदवाड़ा मॉडल में इसकी झलक मिलती है। इतना ही नहीं सरकार में आने के बाद उन्होंने ये घोषणा कि थी कलेक्टर ही योजना की घोषणा करेंगे। विधानसभा चुनाव के दौरान तो उन्होने ये भी कहा था कि कलेक्टर नाम पुराना है, इसे बदला जाना चाहिए। यानी कमलनाथ जानते हैं कि मॉडर्न ब्यूरोक्रेसी ही प्रदेश का फ्यूचर है।
अब कमलनाथ नए विजन के तहत केंद्र की राह पर बढ़ना चाहते हैं, वो सिस्टम में पड़े अक्षम अफसरों को बाहर करना चाहते हैं। सरकार तो बदलती रहती है लेकिन ब्यूरोक्रेसी सिस्टम में परमानेंट रहती है और सरकारी नौकरी को लेकर वैसे भी कॉमन नजरिया ये है कि काम करो या ना करो, सैलरी तो मिलेगी ही लेकिन अब मध्य प्रदेश में ये चलने वाला नहीं है।