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दुनिया बदल रही है लेकिन हमारे देश के धर्मगुरु बदलने को तैयार नहीं ।आम भाषा में धर्म गुरुओं को ‘कठमुल्ला’कहा जाता है ,क्योंकि ये काठ के बने होते हैं,इन्हें व्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता से कोई लेना-देना नहीं होता ।बंगाल से नवनिर्वाचित सांसद श्रीमती नुसरत जहां के मामले में भी देश के तमाम कठमुल्ले एक हो गए लेकिन देश की औरतें एक नहीं हो पायीं ।
नुसरत जहां जन्म से मुस्लिम हैं इसमें उनका कोई दोष नहीं।उन्होंने निखिल जैन से शादी कर ली ये उनका अपना फैसला है।वे अपने सौभाग्य[सुहाग]को प्रदर्शित करने के लिए सिन्दूर लगाएं या न लगाएं ये उनकी मर्जी लेकिन देश के इमामों और मौलवियों को इस पर आपत्ति है।वे नुसरत को फतवे जारी कर रहे हैं ,उसे धमकियां दी जा रहीं है। 72 साल पहले आजाद हुए देश में इस तरह की दकियानूसी बातें देश का सर शर्म से नीचा करने के लिए काफी हैं।कठमुल्ले कहते हैं की मुस्लिम लड़कियों को सिर्फ मुस्लिम युवकों से निकाह करना चाहिए लेकिन वे मुस्लिम युवकों से नहीं कहते की उन्हें केवल मुस्लिम युवतियों से निकाह करना चाहिए ?
व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के लिए हमारे देश के क़ानून कागजी हैं।वोट की राजनीति इन पर सदैव भारी पड़ती हैं ।नुसरत ने 19 जून को कारोबारी निखिल जैन से तुर्की में शादी की थी। वह पश्चिम बंगाल के बशीरहाट से सांसद हैं। वह 3।5 लाख वोटों से जीतीं। मुस्लिम धर्मगुरु असद वसमी ने कहा, ”जांच के बाद पता चला कि नुसरत ने जैन धर्म के युवक से शादी की है। इस्लाम कहता है कि मुस्लिम की शादी मुस्लिम से होनी चाहिए। नुसरत एक अभिनेत्री हैं और अभिनेता-अभिनेत्री धर्म की फिक्र नहीं करते। जो उनका मन करता है, वही करते हैं। इसी का प्रदर्शन उन्होंने संसद में किया।”
सवाल ये हैं कि कोई भी धर्म किसी महिला के ही खिलाफ खड़ा क्यों होता हैं किसी पुरुष के खिलाफ क्यों नहीं? धर्म की व्याख्या करने वाले आसमान से नहीं उतरे ,इसलिए वे धर्म को परिभाषित करने में पूरी तरफ समर्थ नहीं हैं ।कोई भी धर्म गुरु चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान या कोई और केवल महिला को ही पाबंद करना जानता हैं ,पुरुष उसके दायरे से हमेशा बाहर रहते हैं ।आप जानते हैं कि मै कभी किसी धार्मिक विवाद में आजतक नहीं पड़ा ,आगे भी नहीं पढ़ना चाहूंगा लेकिन जब कोई बात इंसानियत के खिलाफ होगी तो मै अवश्य बोलूंगा।मेरी हैसियत एक आम लेखक की हैं जो मुमकिन हैं किसी धर्मगुरु की हैसियत का पासंग भी न रखती हो लेकिन मुझे सुना जाएगा और पढ़ा जाएगा,ये मेरा विश्वाश हैं ।
नुसरत से पहले भी अनेक मुस्लिम महिलायें इस तरह के फतवों का शिकार बनीं लेकिन जिन्होंने इन नकली और फिजूल के फतवों की परवाह नहीं की वे आज भी समाज में बाहैसियत जी रहीं हैं,मै किसी एक मुस्लिम महिला का नाम उल्लेखित नहीं करना चाहता ,अनेक हिन्दू महिलाएं हैं जो मुस्लिम युवकों के साथ सुखी हैं कोई फतवा उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया यहना तक कि बजरंगी भी नहीं ,इसलिए बेहतर हो कि भारत जैसे देश में भी कठमुल्लों को अपनी सीमाओं में रहने की आदत डाल लेना चाहिए ।निजता और स्वतंत्रा सबसे मौलिक चीज हैं जो धर्म से पहले जन्मी हैं ।धर्म का सम्मान करना आवश्यक हैं लेकिन ये ऐच्छिक विषय हैं।कौन किस धर्म को माने या न माने ये निर्धारण करना किसी एक व्यक्ति का काम नहीं हैं ,हो भी नहीं सकता ।
हम नुसरत के सुखी जीवन की कामना करते हुए कहना चाहते हैं कि नुसरत हो संध्या सबको इस बात की आजादी हैं कि वे क्या खाएं,क्या पहने,कैसे रहें ?वैसे भी नुसरत का अर्थ सहायता, मदद, समर्थन, ताईद, पृष्ठ-पोषण, हिमायत हैं इसलिए पूरे देश को ,संसद को ,इमामों को ,नुसरत की हिमायत करना चाहिए न कि मुखालफत ।