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हमारे भद्र देश में कुछ भद्र परम्पराएं हैं,इनमें एक है इस्तीफा देना ,या इस्तीफा मांगना .हर नाकामी और अपराध में संलिप्तता के बाद या तो लोग इस्तीफे की पेशकश करते हैं या उनसे इस्तीफा माँगा जाता है .इस्तीफा न हुआ जैसे किसी सल्तनत का पट्टा हुआ .2019 के आम चुनाव में कांग्रेस समेत अनेक दलों को पराजय का समाना करना पड़ा,नतीजे आते ही कांग्रेस अध्यक्ष समेत अनेक दलों के अध्यक्षों ने इस्तीफों की पेशकश कर दी .
इस्तीफा विधा में दक्ष लोग अपने इस्तीफे की पेशकश इतनी जोर से करते हैं कि बेचारा इस्तीफा भी दर्द के मारे कराहने लगता है.मजे की बात ये है कि पेशकश के बाद इस्तीफा आगे ही नहीं बढ़ता.लोग उसे आगे बढ़ने ही नहीं देते .चिरौरियाँ करने लगते हैं इस्तीफा की पेशकश करने वाले की .उन्हें लगता है कि जैसे इस्तीफा देने से कयामत आ जाएगी !.वैसे सब जानते हैं कि इस्तीफोब्न से कभी कयामत नहीं आती ,आ भी कैसे सकती है बेचारी ,उसका खात्मा न कर दिया जाएगा .
सियासत में इस्तीफा देने वाले और उसे देकर पीछ न हटने वाले कुछ ही ख़ास लोग हुए हैं .एक बार देश में हवाला काण्ड हुआ ,अनेक नामी-गिरामी लोगों का नाम उसमें आया लेकिन इस्तीफा देकर घर गए केवल एक रियासत के भावुक महाराजा .उनका इस्तीफा तबके पंत-प्रधान ने चुपचाप खीसे में रख लिया था ,एक बार भी नहीं मनाया था बेचारे को .
कोई मुझसे पूछे तो मै साफ़ बता दूँ कि मै इस्तीफे का घोर विरोधी हूँ .इस्तीफा देने की चीज होता ही नहीं है ,इस्तीफा देकर आप अपने अपराध से मुक्त नहीं हो सकते .इस्तीफा सिर्फ एक प्रहसन है और उसे प्रहसन की ही तरह लेना चाहिए .इस्तीफे से बेहतर है कि आप सन्यास लें ,सियासत छोड़ दें ,नए लोगों को आगे आने दें,उनके मार्गदर्शक बनें .जो लोग ऐसा नहीं करते उन्हें जबरन मार्गदर्शक मंडल में नामजद कर दिया जाता है .गनीमत है कि भाजपा के अलावा किसी अन्य दल ने अभी ऐसी इकाई का गठन नहीं किया है
आम चुनाव में ख़ास लोगों का हारना और आम लोगों का जीतना कोई नयी बात नहीं है ,ठीक उसी तरह इस्तीफा देना नयी बात नहीं है .इस्तीफा देकर आपका नाम शहीदों की लिस्ट में शामिल नहीं हो सकता .शहीद होने के लिए आपको कुछ और करना पड़ता है .अनेक दलों में शहादत देने की रिवायत ही नहीं है .इन दलों में लोह शहीद नहीं होते सिर्फ शहादत[गवाही]देते हैं इन दलों में माफीनामे की भी परम्परा है लेकिन इस्तीफे की नहीं
हमारे पुरखे कहते थे कि बहादुर लोग कभी इस्तीफा नहीं देते .इस्तीफा देना कायरता है .आपने कभी माया बहन को इस्तीफा देते सूना,अखिलेश को इस्तीफा देते देखा ,ठाकरे जी ने ये गलती कभी की ?ममता बहन तो इस बारे में जानती ही नहीं .इस्तीफा किसी मर्ज का इलाज नहीं है. इलाज है समीक्षा में,आत्म अवलोकन में .सो कोई करना नहीं चाहता .अपने अंदर झांकना इस्तीफा देने से भी कठिन काम है .दुर्भाग्य से कठिन काम किसी को नहीं पुसाता .
किसी जमाने में मै जिस संहठन का पदाधिकारी था ,उसके सदस्यों ने मुझसे अनेक अवसरों पर इस्तीफा माँगा लेकिन मैंने कभी इस्तीफा नहीं दिया और दो -ढाई दशक निर्बाध काम किया .जब लगा कि लोग मानेंगे ही नहीं तो मई पद के निकल लिया .राजनितिक दलों में भी जीवन पर्यन्त पद पर बने रहने का इंतजाम होता है फिर काहे को इस्तीफा देना भाई ?उठो काम करो और लाम पर जाने की तैयारी करो .हार-जीत तो एक सिलसिला है .कभी सच हारता है,कभी झूठ .कभी किसी का पलड़ा भारी तो कभी किसी का .
@ राकेश अचल