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स्मृतिशेष :नसीम रिफत, जाने क्या बात है पता ही नहीं …?

नसीम साहब अचानक रुखसत हो गए ,अभी एक पखवाड़े पहले ही तो उनसे मुलाक़ात हुई थी ग्वालियर मेले के मुशायरे में .उन्होंने वादा किया था की वे मेरे नए गजल संग्रह "शून्यकाल"की गजलों में नुक्ते लगाएंगे और उसे माँजेंगे ,लेकिन उनका वादा अधूरा ही रह गया ,नसीम साहब खामोशी के साथ एक अनंत यात्रा पर निकल गए. .देश के मशहूर,मकबूल शायरों में शुमार किये जाने वाले नसीम साहब न किसी गिरोह का हिस्सा बने और न उन्होंने किसी के हाथ में अपनी लगाम दी सो जितना घर बैठे मिल गया ले लिया लेकिन बेइंसाफी कभी बर्दाश्त नहीं की ,जरूरत पड़ी…

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नसीम साहब अचानक रुखसत हो गए ,अभी एक पखवाड़े पहले ही तो उनसे मुलाक़ात हुई थी ग्वालियर मेले के मुशायरे में .उन्होंने वादा किया था की वे मेरे नए गजल संग्रह “शून्यकाल”की गजलों में नुक्ते लगाएंगे और उसे माँजेंगे ,लेकिन उनका वादा अधूरा ही रह गया ,नसीम साहब खामोशी के साथ एक अनंत यात्रा पर निकल गए.
.देश के मशहूर,मकबूल शायरों में शुमार किये जाने वाले नसीम साहब न किसी गिरोह का हिस्सा बने और न उन्होंने किसी के हाथ में अपनी लगाम दी सो जितना घर बैठे मिल गया ले लिया लेकिन बेइंसाफी कभी बर्दाश्त नहीं की ,जरूरत पड़ी तो जमकर लड़े और जीते भी .नसीम साहब से मेरा रिश्ता शागिर्द और उस्ताद का नहीं था .
वे मेरे पिता की उम्र के थे लेकिन उनसे मेरी दोस्ती थी एक बेमेल दोस्ती .
बात उन दिनों की है जब मै कालेज का छात्र था और वाम संगठनों से मेरी निकटता थी.ग्वालियर में वामपंथी दोनों के दो दफ्तर नयी सड़क पर डिलाइट टाकीज के पीछे थे और इन्हीं के नीचे थी नसीम साहब की गुमटी .गुमटी में वे लजीज गोश्त और रोटी बेचते थे,उनका घर शायरी से नहीं इसी छोटी सी गुमटी से चलता था..उनकी गुमटी भले ही छोटी थी लेकिन दिल बहुत बड़ा और इसी बड़े दिल के कारण वे अपने समय के बड़े शायर भी थे .नसीम साहब उस्ताद शायर थे लेकिन उन्होंने कभी अपने ऊपर ये उस्तादी हावी नहीं दी .
उनकी लिखी गजलें देश के नामचीन्ह गायकों ने जाने-अनजाने गयीं और खूब शोहरत बटोरी ,पकडे गए तो नसीम साहब से माफी मांगी और शुक्राना देकर बच भी निकले,नसीम साहब ने  फराखदिली दिखाई और उन्हें माफ़ भी कर दिया .नसीम साहब दो महीने बाद शायद ८७ साल के हो जाते ,उनके बारे में हम लोगों ने कभी पड़ताल की ही नहीं की वे हैं कितने साल के?वे हमेशा युवा ही बने रहे ,उनके चेहरे से गुरबत और बीमारी के बावजूद मुस्कराहट कभी गायब नहीं हुई .
नसीम साहब को कोई बड़ा प्रकाशक नहीं मिला.वे  उर्दू में लिखते थे उनकी किताबें यदि हिंदी में आतीं तो मुझे लगता है की किसी भी दुसरे शायर के मुकाबले ज्यादा पढ़ी जातीं .नसीम साहब ने अपने पैसे से “अहसास का फूल” और “हम-तुम”नाम से दो किताबे प्रकाशित कीं हम-तुम के तो दो संस्करण आये ,लेकिन वे अनुपलब्ध हैं वे इंसानियत और मुहब्बत के शायर थे,उनकी शायरी में बुनावट थी लेकिन बनावट नहीं ,वे आम बोलचाल की भाषा में बड़ी सेबड़ी बात कहने में माहिर थे
मुझे याद आता है की 1985   में महाराज बाड़ा पर नसीम साहब के नाम से एक बड़ा मुशायरा आयोजित किया गया था जिसमें देश के उस समय के तमाम बड़े शायरों ने हिस्सा लिया था .मैंने जैसा पहले ही कहा की वे अभिमान रहित शायर थे और इसीलिए अखिल भारतीय ख्याति होते हुए भी वे  व्यापार मेले के स्थानीय मुशायरे में शामिल हो जाते थे जबकि उनका स्थान अखिल भारतीय मुशायरे का था .उन्होंने अपना अंतिम मुशायरा 29  जनवरी 2019  को ग्वालियर व्यापार मेले में पढ़ा .नसीम साहब को श्रृद्धांजलि देते हुए मै उनकी ही गजल को याद करना चाहता हूँ.वे कहते हैं-
जाने क्या बात है पता ही नहीं
खत मुझे उसने फिर लिखा ही नहीं
नसीम साहब सचमुच हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी लिखी गजलें जब तक गुनगुनाई जाती रहेंगी वे हमारे साथ ज़िंदा रहेंगे .
नसीम साहब अचानक रुखसत हो गए ,अभी एक पखवाड़े पहले ही तो उनसे मुलाक़ात हुई थी ग्वालियर मेले के मुशायरे में .उन्होंने वादा किया था की वे मेरे नए गजल संग्रह "शून्यकाल"की गजलों में नुक्ते लगाएंगे और उसे माँजेंगे ,लेकिन उनका वादा अधूरा ही रह गया ,नसीम साहब खामोशी के साथ एक अनंत यात्रा पर निकल गए. .देश के मशहूर,मकबूल शायरों में शुमार किये जाने वाले नसीम साहब न किसी गिरोह का हिस्सा बने और न उन्होंने किसी के हाथ में अपनी लगाम दी सो जितना घर बैठे मिल गया ले लिया लेकिन बेइंसाफी कभी बर्दाश्त नहीं की ,जरूरत पड़ी…

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