Review Overview
पांच साल पहले भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए जिस आक्रामकता के साथ नरेंद्र मोदी को आगे कर आम चुनाव में अप्रत्याशित विजय हासिल की थी आज पांच साल बाद उन्हीं मोदी को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए देश के दो दर्जन से अधिक छोटे-छोटे राजनीतिक दल एक बड़ा गठबंधन करने की दिशा में आगे बढ़ गए हैं ,सवाल ये है की क्या ये गठबंधन नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने से रोक पायेगा ?
पिछले आम चुनाव में मोदी के नाम की ऐसी आंधी चली थी की कांग्रेस जैसे प्रधान राजनीतिक दल के साथ ही सपा और बसपा जैसे अनेक क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के तम्बू पूरी तरह से उखड़ गए थे .भाजपा देश को कांग्रेस विहीन बनाने के नारे के साथ आगे बढ़ी थी लेकिन कुछ ही दिनों बाद नरेंद्र मोदी का जादू फीका पड़ने लगा .बेघर हुए राजनीतिक दलों ने साथ-साथ लड़ना शुरू किया तो पहले भाजपा को उप चुनावों में मुंह की खाना पड़ी और बाद में धीरे-धीरे अनेक राज्य उसकी मुठ्ठी से निकलने लगे. पहले दिल्ली गया फिर बिहार और फिर पंजाब .
फीकी पड़ते जादू के बावजूद भाजपा इधर गंवाती रही और उधर कमाती भी रही,पूरब में भाजपा ने वाम और अन्य क्षेत्रीय दलों को सत्ताच्युत किया लेकिन उत्तर में हाल ही में एक साथ तीन राज्यों से सत्ताच्युत भी हो गयी हड़बड़ाई हुई भाजपा का गठबंधन भी इस पराजय से शिथिल हो रहा है,उसके अपने सहयोगी दल भी उसे आँखें दिखा रहे हैं ,ऐसे में 23 विभिन्न दलों का गठबंधन भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनौती बन सकता है .
मोदी के खिलाफ विपक्ष का गठबंधन ठीक वैसा ही है जैसा की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ हुआ करता था .इंदिरा गांधी भी 1977 में तब सत्ताच्युत हुईं थीं जब पूरा विपक्ष एक हो गया था,ऊपर से उनके पीछे आपातकाल का भूत लगा हुआ था .आज मोदी जी भी इंदिरा गांधी की ही तरह चौतरफा घिरे नजर आ रहे हैं.नोटबंदी के बाद से उनके एक के बाद एक अनेक कदम ऐसे पड़े जो उनके गले की फांस बन गए. उनके खिलाफ विपक्ष में ही नहीं पार्टी के भीतर भी बगावत शुरू हो गयी.पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का कोलकाता की विपक्ष की रैली में दहाड़ना इस बात का ताजा प्रमाण है .
हमारा अनुभव है की किसी भी दल को तब तक किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता जब तक की जनता उसके साथ हो लेकिन जिस दिन जनता और उस जनता को समेटने वाले स्थानीय दल संगठित होने लगते हैं तो सीराजा बिखरने ही लगता है .आज उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक भाजपा के खिलाफ कोई न कोई खड़ा है .देश को सबसे ज्यादा सांसद देने वाले हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा की हालत अब पहले जैसी नहीं रही है.इनमें से तीन राज्यों में से तो हाल ही में भाजपा के हाथों से सत्ता गयी है.उत्तर प्रदेश में भी सपा-बसपा गठबंधन हो चुका है.तेलंगाना और उड़ीसा को छोड़ अनेक राज्यों के क्षेत्रीय दल मोदी के खिलाफ लामबंद हो चुके हैं
भाजपा के सामने अपनी कुर्सी बचाये रखने के साथ ही मोदी युग को भी बचाये रखने की चुनौती है .भाजपा राम मंदिर समेत अपने अनेक पुराने वादों को पूरा करने में नाकाम रही है,मजबूरी में उसे सरणं आरक्षण का नया जुमला उछालना पड़ा है लेकिन इस एक अकेले लालीपाप से उसे कितना लाभ होगा ये कहना कठिन है “हकीकत ये है की प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जाने-अनजाने देश में घृणा के पात्र बनते जा रहे हैं.उनके देह की भषा ही नहीं जुबान भी अब जनता को कटखनी लगने लगी है “.इसलिए अप्रैल २०१९ में होने वाले चुनाव घृणा और मोहब्बत के बीच होने वाले हैं दिलचस्प ये है की इस बार आम चुनाव में एक तरफ ताली पीटने वाले मोदी जी हैं तो दूसरी और आँख मिचकाने वाले राहुल गांधी.बाकी सब इन दोनों के के आगे-पीछे हैं.
**
@राकेश अचल
achal .rakesh @gmail .com