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(राकेश अचल)
अमृतसर रेल हादसे के बाद भी इस देश में राजनितिक,सामाजिक और प्रशासनिक सन्नाटा नहीं टूटा.सब हादसे के लिए एक-दुसरे पर दोषारोपण करने में लगे हुए हैं क्योंकि जानते हैं की हिन्दुस्तान में आम आदमी की जान ही सबसे ज्यादा सस्ती है ,अन्यथा ये हादसा तो राष्ट्रीय शोक की वजह ही है .
रामलीला के अंतिम एपीसोड में रावण और उसके वंशजों का पुतला जलते देखने के लिए रेल पटरी पर जमा हुए लोग खुद पालक झपकते पुतलों में तब्दील हो गए लेकिन किसी को भी अफ़सोस नहीं,रेल मंत्री मौके पर जाने के बजाय गोवा में अपनी पार्टी की सरकार बचने में व्यस्त रहे,प्रधान जी ट्वीट कर फुरसत पा लिए और बाक़ी के बारे में कहना ही क्या,क्योंकि हमारे यहां आम आदमी की जान बेहद सस्ती है .
सवाल ये है की हमारे देश में छोटे कानूनों का सम्मान करने की आदत कब डाली जाएगी.क़ानून है की रेल पटरी पार परना और उस पर बैठना क़ानून जुर्म है लेकिन क्यों लोग उस पटरी पर जमा हुए,क्यों नहीं आरपीएफ ने आयोजन स्थल के पास बिछी रेल पटरियों पर से लोगों को नहीं खदेड़ा /शायद इसलिए क्योंकि मामला आस्था का था.हम आस्था के नाम पर क़ानून हो,विधि-विधान हो या और कुछ,सभी की कुर्बानी देने के आदी जो हो गए हैं हमारे यहां क़ानून तोड़ने की आजादी है और कानून तोड़ते हुए शहीद होने पर मृतकों के परिजनों को मनमाना मुआवजा देने का प्रावधान ..इससे मृतकों की आत्मा को शांति और सरकारों को पुण्य मिलता है .
हमारा देश हादसों के लिए अभिशप्त नहीं बल्कि अभ्यस्त है.हमारे यहां भगदड़ में लोग मरते हैं,खराब बने पुलों,इमारतों के गिरने से मरते हैं,आंधी-तूफ़ान और बाढ़-सूखे से तो मरते ही हैं लेकिन हम सिवाय मुआवजा बांटने के कुछ नहीं करते .हमारे पास क़ानून के पालन और हादसों को टालने के लिए कोई मशीनरी है ही नहीं.हमारी सरकारें इसमें दिमाग लगना ही नहीं चाहतीं क्योंकि ऐसा करने में सरकारों का कोई फायदा नहीं है .सरकारें जनता का नहीं अपना फायदा देखतीं हैं
हादसों के लिए अभिशप्त?अभ्यस्त देश में खेल -तमाशों के लिए कोई क़ानून नहीं है और यदि है तो कोई उसके बारे में जानता नहीं है .सार्वजनिक समारोहों में बिना बुलाये कितने लोग पहुँच सकते हैं इसका कोई हिसाब किताब नहीं है .आप दुःसाहसी हैं और अपनी जान हथेली पर रखकर घर से बाहर निकल सकते हैं तो आराम से असुरक्षित समागमों का हिस्सा बन सकते हैं .इन समारोहों में बिना मनोरंजन कर का आनंद आपका और आनंद लेते में यदि आप मर जाएँ तो मुआवजा आपके आश्रितों का पक्का है .
अमृतसर रेल हादसे के बाद क्या आप कल्पना कर सकते हैं की इस अतयनयत जड़ हो रहे देश में बुलेट ट्रेन सुरक्षित तरीके से चलाई जा सकती है ?हमारे यहां गतिमान या शताब्दी रेलें भी भगवान के भरोसे चल रहीं हैं.इसलिए हमें रेल मंत्रालय का नहीं भगवान का धन्यवाद करना चाहिए .हम अपनी सुरक्षा पर फूटी कौड़ी खर्च करने के बजाय बाबाओं के मंदिरों पर एक दिन में दो करोड़ रुपये की दक्षिणा दे सकते हैं लेकिन सुरक्षा के लिए एक पैसा खर्च नहीं कर सकते .
रावण को जलते देखने की कोशिश में मारे गए लोगों पर मुझे दया आती है और उनके परिजनों के प्रति मेरा मन संवेदना से भरा है ,फिर भी मै चाहता हूँ की हमारी सरकारें मुआवजा बांटने के खेल को बंद कर लोकशिक्षण पर अधिक ध्यान दें ताकि ऐसे हादसे घटित ही न हों .यदि आप रेल पटरी पर बैठेंगे ही नहीं ,तो मरे कैसे जायेंगे ?मुझे नहीं लगता की हम इस मामले में बहुत जल्द सचेत होने वाले हैं,क्योंकि हमारा काम तो ट्वीट से चल रहा है .