Review Overview
(राकेश अचल)
जैसे को तैसा मिल जाए तो मजा आ जाता है . कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने फिर कहा कि देश को आजादी दिलाने में भाजपा- संघ नेताओं के घर से एक कुत्ता भी नहीं मरा। इससे पहले फरवरी 2017 में खड़गे ने लोकसभा में कहा में यही बात कही थी। खड़गे का ब्यान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के उस चर्चित बयान की टक्कर का है जिसमें उन्होंने कहा था की गाड़ी के नीचे यदि कुत्ते का पिल्ला भी आकर मर जाता है तो दुःख होता है
महाराष्ट्र में जलगांव के फैजपुर में कांग्रेस की जन संघर्ष यात्रा के दौरान खड़गे ने यह बात कही ,फैजपुर में ही कांग्रेस ने 1936 में पहले ग्रामीण सम्मेलन का आयोजन किया था। इसमें महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू समेत तमाम बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया था।तब के फैजपुर और आज के फैजपुर में केवल इतना फर्क है की तबके भाषणों में कुत्ते -पिल्लै नहीं थे ,आज हैं और आगे पता नहीं और कौन-कौन से चौपाये इसमें शामिल हों .
भाषणों की गरिमा कम करने का आरोप किसी एक नेता के सर नहीं मढ़ा जा सकता ,श्रीमती सोनिया गांधी और नरेंद्र मोदी से लेकर हमारे जुम्मन मियाँ तक इसके लिए जिम्मेदार हैं .अब तो जिसके मुंह में जो आता है सो कह गुजरता है,नेताओं को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की उनके भाषणों से किस के दिल पर क्या गुजरती है ?कसैले भाषणों के इस युग में कौन,कितना ज्यादा कसैला हो सकता है ,इसकी होड़ मची हुई है .
चुनाव के इस मौसम में कसैली खड़गे फिर से सक्रिय होंगी ,इनसे कोई मरे या नहीं लें घायल जरूर हो जाता है .कसैले भाषणों के बारे में सभी दलों के पास एक से बढ़कर एक विद्वान हैं.कोई स्नातक,तोई पारा स्नातक तो कोई पीएचडी उपाधि धारक ,कोई किसी से कम नहीं और किसी को अपने कसैलेपन से कोई गम नहीं .गनीमत है की इस विषय को लेकर अभी तक कोई समझदार या ना समझ व्यक्ति अदालत नहीं गया है,यदि गया होता तो मुझे पूरा यकीन है की इस अपील पर सबसे बड़ी अदालत की पांच सदस्यों की पीठ भी आसानी से फैसला न ले पाती और ये मामला भी राम मंदिर मामले की तरह अनंतकाल तक चलता रहता,चलता रहता .
दरसल ऐसे बे-सिरपैर के मुद्दे ही सियासत के लिए संजीवनी का काम करते हैं जैसे ‘गरीबी’के मुद्दे ने कांग्रेस को आठवें दशक तो रेस में बनाये रखा और बीते 38 साल से भाजपा राम मंदिर मुद्दे को लेकर रेस में है और पता नहीं कब तक रेस में रहेगी[मोदी जी तो कम से कम 2024 तक रेस में बने रहने के लिए कमर कैसे खड़े हुए हैं ]दरअसल ये कुर्सी दौड़ के लिए आवश्यक पकरण हैं और शमत-समय पर इनका रूप बदलता रहता है,कभी किसी को कामयाबी मिलती है तो कभी किसी को .
तो मै बात कर रहा था खड़गे जी की वाक् खड्ग की,ये बजी तो संघमित्रों के पेट में मरोड़ उठने लगी ,उतनी भी चाहिए,अन्यथा खड़गे जी का खड्ग बजाना बेकार न हो जाएगा ?खड़गे जी पुराने खड्गबाज हैं ,मोदी जी और जाकिट शाह से भी पुराने ,उनकी खड्ग भी पुरानी है ,ये पुरानी खड्ग भले ही कम चलती हो लेकिन जब चलती है तो घातक वार करती है .अब खड़गे जी को जबाब देने कोई सामने नहीं आ रहा.आना भी नहीं चाहिए,हमारे यहां बुजुर्गों को जबाब देने का नहीं हाँ उन्हें मार्गदर्शक मंडल में डैम्प करने का प्रावधान जरूर है .
मै कपड़े का सांप नहीं बनाना चाहता इसलिए अब अपनी बात को विराम देना चाहता हूँ ,खड्ग चलाने का काम नेताओं का है,अपना काम तो कलम या की बोर्ड चलाने का है सो जब भी जरूरी होता है तब चला ही देते हैं .आप भी देखते रहिये की सबका काम कैसा चल रहा है.