Home / राष्ट्रीय / कांग्रेस: आगे बड़ी लड़ाई है ….

कांग्रेस: आगे बड़ी लड़ाई है ….

(राकेश अचल) कांग्रेस पर लगातार दूसरे दिन भी लिखने की जरूरत थी एइसलिए लिख रहा हूँ कि उदयपुर चिंतन के बाद कांग्रेस ने भले ही एक छोटी सी अंगड़ाई भले ही ली हो लेकिन उसके सामने बहुत बड़ी लड़ाई है ण्ये लड़ाई कांग्रेस किसके नेतृत्व में कैसे लड़ेगी एजब तक स्पष्ट नहीं हो जाता एतब तक ये कहना कठिन है कि राजनीति के मौजूदा लंकाकाण्ड में अपने प्रतिद्वंदी का मुकाबला करने में कांग्रेस समर्थ है. कांग्रेस के सामने एक से अधिक चुनौतियाँ हैं और सभी को लगभग चिन्हित किया जा चुका है. कांग्रेस आज भी सत्तापक्ष की तरह चिंतन कर…

Review Overview

User Rating: Be the first one !


(राकेश अचल)
कांग्रेस पर लगातार दूसरे दिन भी लिखने की जरूरत थी एइसलिए लिख रहा हूँ कि उदयपुर चिंतन के बाद कांग्रेस ने भले ही एक छोटी सी अंगड़ाई भले ही ली हो लेकिन उसके सामने बहुत बड़ी लड़ाई है ण्ये लड़ाई कांग्रेस किसके नेतृत्व में कैसे लड़ेगी एजब तक स्पष्ट नहीं हो जाता एतब तक ये कहना कठिन है कि राजनीति के मौजूदा लंकाकाण्ड में अपने प्रतिद्वंदी का मुकाबला करने में कांग्रेस समर्थ है.
कांग्रेस के सामने एक से अधिक चुनौतियाँ हैं और सभी को लगभग चिन्हित किया जा चुका है. कांग्रेस आज भी सत्तापक्ष की तरह चिंतन कर रही हैएविपक्षी दलों वाली आक्रामकता का उसके चिंतन में घोर अभाव है ण्कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक चिंतक दल आर्थिकएसामजिक और वैश्विक मसलों पर ऐसे प्रस्ताव लेकर आये हैं जैसे कांग्रेस को कल ही दिल्ली की सत्ता सम्हालना है ण्कांग्रेस को पता है कि जन अपेक्षाएं क्या हैं एलेकिन कांग्रेस ये नहीं बता पा रही है कि उसके पास इन जन आकांक्षाओं को पूरा करने का जरिया क्या है घ्
बीते एक दशक में कांग्रेस संगठनात्मक स्तर पर बहुत कमजोर हुयी है ण्संगठन में जिस नयी ऊर्जा की आवश्यकता है एउसे प्रस्फुटित करने में मौजूदा नेतृत्व की तमाम कोशिशों का अपेक्षित प्रतिफल सामने नहीं आया है ण्पार्टी से हताश लोगों के जाने का सिलसिला आज भी जारी है ण्पंजाब से स्वर्गीय बलराम जाखड़ के पुत्र का कांग्रेस छोड़ना इस भगदड़ का आखरी सिरा नहीं हैण् आम चुनावों से पहले अभी बहुत से नेता हैं जो कांग्रेस छोड़कर भागेंगे क्योंकि वे अभी भी पार्टी नेतृत्व की क्षमताओं को लेकर आश्वस्त नहीं हैं ण्
कांग्रेस के चिंतन शिविर में भाजपा के ऐसे ही आयोजनों जैसी चकाचौंध तो छोड़िये उत्साह की झलक तक नहीं है ण्कारण साफ है कि कांग्रेस संगठन के स्तर पर तो कमजोर हुई ही है साथ ही आर्थिक रूप से भी कमजोर हुयी हैण् कांग्रेस को मिलने वाला कारपोरेट का चन्दा भाजपा के मुकाबले बहुत कम हो गया हैण् भाजपा ने चन्दा देने वालों की मुश्कें इतनी जोर से बांधीं हैं कि वे कांग्रेस को चंदा देने का साहस ही नहीं कर पा रहे हैं वित्तीय वर्ष 2019.20 के दौरान 18 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉण्ड के ज़रिए कुल मिलाकर लगभग तीन हज़ार 441 करोड़ रुपये की राशि चंदे के तौर पर मिलीण् इस कुल राशि का क़रीब 75 प्रतिशत हिस्सा भाजपा के खाते में आयाण्
एक तरफ भाजपा को मिली राशि कई गुना बढ़ी हैए वहीं 2019.20 वित्तीय वर्ष में ही कांग्रेस को इलेक्टोरल बॉण्ड के ज़रिए केवल 318 करोड़ रूपए मिलेण् यह धनराशि उन 383 करोड़ रुपयों से 17 प्रतिशत कम थी जो पार्टी को 2018.19 में मिली थी और 2019.20 में इस माध्यम से जितना राजनीतिक चंदा दिया गया उसका सिर्फ़ नौ प्रतिशत ही कांग्रेस को मिल पायाण्इस विषम स्थिति में कांग्रेस के सामने एक ही रास्ता बचा है कि कांग्रेस व्यापक पैमाने पर जनता के बीच पहुंचकर संवाद स्थापित करे और जनधन से चुनाव लड़ेण्
पिछ्ला अनुभव बताता है कि भाजपा ने लगातार दो चुनावों में जिस तरह से पैसा पानी की तरह बहाया था उसके सामने कांग्रेस समेत तमाम दल मुंह ताकते रह गए थे ण्भाजपा को चूंकि पच्चीस साल तक सत्ता में रहने का अपना लक्ष्य पूरा करना है इसलिए आने वाले चुनावों में पैसा बहाने में कोई कंजूसी नहीं करना है ण्भाजपा के पास पैसे की कमी भी नहीं है और वो जिस तरीके से देश का सौदा कर रही है उसे देखते हुए भविष्य में भी भाजपा को पैसे की कमी होने वाली नहीं है ण्
कांग्रेस के चिंतन शिविर से बहुत सी बातें स्पष्टता की मांग कर रहीं हैंण् पार्टी के अध्यक्ष पद को तो आप छोड़ ही दीजिये ण्कांग्रेस में फिलहाल भाजपा की तर्ज पर पार्टी अध्यक्ष चुनने की कोई संभावना नहीं हैण् कांग्रेस के पास आरएसएस जैसा भी कोई संगठन नहीं है जो पीछे से अध्यक्ष का नाम आगे कर दे ण्इसलिए कांग्रेस को अभी गांधी से मुक्ति नहीं मिलने वाली ऐसे में क्या कांग्रेस अपने आपको इस स्थिति में ला पाएगी कि आने वाले दिनों में देश के तमाम राजनीतक दलों को साथ लेकर वो भाजपा के खिलाफ निर्णायक महासंग्राम का नेतृत्व करने का दावा कर सके ण्
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भाजपा का एकमात्र विकल्प कांग्रेस के नेतृत्व में ही तैयार हो सकता है एलेकिन कांग्रेस की सेना में न राम दिखाई दे रहे हैं और न हनुमान ण्नल..नील और जामवंत की तो बात ही जाने दीजिये ण्राजनीति के लंकाकाण्ड में श् रावण रथीएविरथ रघुवीरा श् जैसी स्थिति है ण्कांग्रेस के तमाम विभीषण पहले ही कांग्रेस का साथ छोड़ गए हैं इसलिए कांग्रेस के राम को विरथ देखकर अधीर होने वाले भी अब कम ही बचे हैं ण्कांग्रेस को देवी.देवता तो अपने रथ भेजने वाले नहीं हैं इसलिए ये भी साफ़ होना चाहिए कि कांग्रेस आखिर कैसे भाजपा का मुकाबला करने वाली है ण्
भाजपा ने साढ़े सात साल में अपनी सोने की लंका बना ली हैण्उसमको अपनी अशोक वाटिका में सत्ता की सीता मन मसोस कर बैठी है लेकिन कोई उसकी सुध लेने ही नहीं आ रहा ण्सत्ता की सीता को भाजपा की लंका से मुक्त करना इतना आसान नहीं है जितना को कांग्रेस समझ रही है ण्भाजपा की टीम अपने लक्ष्य के लिए दिन.रात मेहनत करती है ण्उसके पास समयबद्ध कार्यक्रम भी हैं और वे दिखाई भी देते हैं एलेकिन कांग्रेस के पास यदि कुछ है तो वो दिखाई नहीं दे रहा एइसी वजह से जनता निराश है ण्
कांग्रेस तो केवल एक भ्र्ष्टाचार के मुद्दे पर सत्ता से बाहर कर दी गयी थी लेकिन भाजपा के खिलाफ तो देश को बेचने जैसा प्रचंड मुद्दा हैण् मंहगाई एबेरोजगारी है सो लग लेकिन इन मुद्दों को लेकर जिस आक्रामकता की जरूरत महसूस की जाती है वो अलभ्य है ण्जनता को आंदोलित करने का माद्दा कांग्रेस समेत किसी दल में दिखाई ही नहीं देता ण्उदयपुर का चिंतन शिविर भी इस मामले में बहुत ज्यादा आश्वास्त नहीं करता ण्भले ही कांग्रेस के शुभचिंतक कांग्रेस को अगली लड़ाई के लिए अंगड़ाई लेते हुए देखने का भ्रम पाले हुए हों ण्
कांग्रेस के पास इस समय श् करो या मरो श् के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं हैण् इस आंदोलन को खड़ा करने के लिए नेताओं की मनोदशा भी नहीं हैण् राजीव गांधी के जमाने की टीम ये सब कर नहीं सकती और राहुल के जमाने की टीम को ये सब करने का मुक्तहस्त मिल नहीं रहा है ण्राहुल के पास नेतृत्व के सभी गुण हैं सिवाय इसके कि वे अपनी पीढ़ी की क्षमताओं को लेकर देश को आश्वस्त नहीं कर पा रहे हैं ण्कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा ये हमारी चिंता नहीं है हमारी जिज्ञासा में ये है कि जो भी कांग्रेस का नेता होगा वो क्या भाजपा के तिलिस्मी नेतृत्व का मुकाबला तिलिस्मी तरीके से कर पायेगा घ्अब तिलिस्म को तिलिस्म से ही काटा जा सकता है ण्जिस दल के पास जितना बड़ा तिलिस्म होगा वो ही सत्ता की सीता का वरण कर पायेगा.

(राकेश अचल) कांग्रेस पर लगातार दूसरे दिन भी लिखने की जरूरत थी एइसलिए लिख रहा हूँ कि उदयपुर चिंतन के बाद कांग्रेस ने भले ही एक छोटी सी अंगड़ाई भले ही ली हो लेकिन उसके सामने बहुत बड़ी लड़ाई है ण्ये लड़ाई कांग्रेस किसके नेतृत्व में कैसे लड़ेगी एजब तक स्पष्ट नहीं हो जाता एतब तक ये कहना कठिन है कि राजनीति के मौजूदा लंकाकाण्ड में अपने प्रतिद्वंदी का मुकाबला करने में कांग्रेस समर्थ है. कांग्रेस के सामने एक से अधिक चुनौतियाँ हैं और सभी को लगभग चिन्हित किया जा चुका है. कांग्रेस आज भी सत्तापक्ष की तरह चिंतन कर…

Review Overview

User Rating: Be the first one !

About Dheeraj Bansal

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

x

Check Also

दत्तात्रेय होसबाले फिर बने आरएसएस के सरकार्यवाह, 2027 तक होगा कार्यकाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने एक बार फिर सरकार्यवाह के पद के ...