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भागवत भरोसे न रहिये 

  (राकेश अचल) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने हाल ही में संघ को लेकर जो संवाद शुरू किया है उससे संघ को लेकर देश में व्याप्त भ्रांतियां अचानक से दूर होने वाली नहीं हैं ,क्योंकि इनकी जड़ें बहुत गहरी हैं और भागवत जी के वक्तव्य बहुत सतही हैं ,जो संघ को नहीं जानते वे थोड़ी देर के लिए भागवत को संघ का उदारवादी नेता मान सकते हैं लेकिन जो संघ और उसकी विरासत को जानते हैं उन्हें पता है की भागवत सच नहीं बोल रहे . दुर्भाग्य से मुझे संघ के पहले अध्यक्ष केशव बलिराम,…

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(राकेश अचल)
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने हाल ही में संघ को लेकर जो संवाद शुरू किया है उससे संघ को लेकर देश में व्याप्त भ्रांतियां अचानक से दूर होने वाली नहीं हैं ,क्योंकि इनकी जड़ें बहुत गहरी हैं और भागवत जी के वक्तव्य बहुत सतही हैं ,जो संघ को नहीं जानते वे थोड़ी देर के लिए भागवत को संघ का उदारवादी नेता मान सकते हैं लेकिन जो संघ और उसकी विरासत को जानते हैं उन्हें पता है की भागवत सच नहीं बोल रहे .
दुर्भाग्य से मुझे संघ के पहले अध्यक्ष केशव बलिराम, हेडगेवार और दूसरे अध्यक्ष श्री लक्ष्मण वामन परांजपे को सुनने का अवसर नहीं मिला,लेकिन मैंने इन दोनों महानुभावों को पूरे मनोयोग से पढ़ा ,परांजपे के बाद श्री माधव सदाशिव गोलवलकर,मधुकर दत्तात्रय देवरस ,श्री राजेंद्र सिंह,सशरी कुप्प सुदर्शन और श्री मोहन भागवत से मिलने और उन्हें सुनने का अवसर मुझे मिला है ,इसलिए मै पूरी जिम्मदारी से कह सकता हूँ की बीते ९२ साल में संघ के गणवेश के अलावा कुछ भी नहीं बदला है और न ही बदलने जा रहा है.संघ जैसा था वैसा ही है और शायद आने वाले दिनों में भी उसका चेहरा बदलने वाला नहीं है,जो ऐसा करने की कोशिश करेगा संघ उसे ही बदल देगा ,मोहन जी तो किस खेत की मूली हैं ?
हकीकत ये है की संघ दीक्षित भाजपा इस समय अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है ,इसलिए विवशता में सानघ  प्रमुख को सामने आना पड़ा है लेकिन ये सब साफ-सफाई और कांग्रेस की स्वाधीनता आंदोलन में मौजूदगी को स्वीकार करने की जरूरत संघ को भला क्यों पड़ती ,संघ के कारण अतीत में गठबंधन  की राजनीति को एक बड़ा झटका लग चुका है और उस घटना के बाद भाजपा को सत्ता में आने के लिए लंबा इन्तजार करना पड़ा था .संघ अब भूल कर भी इस भूल को दोहराना नहीं चाहता ,क्योंकि संघ निष्ठा के कारण ही देश को कांग्रेस विहीन करने का अभियान न तब पूरा हुआ था और न अब पूरा होता दिखाई दे रहा है ,होगा भी या नहीं,कहा नहीं जा सकता .
भागवत कहते हैं की उनके स्वयं सेवक किसी भी राजनितिक दल के सदस्य हो सकते हैं किन्तु हकीकत में क्या कोई शाखामृग किसी दूसरे राजनितिक दल में सदस्य्ता लेने आजतक गया ?संघ को दूसरे क ही नहीं पुसाते और दूसरों को संघ के लोग .संघ की मान्यताएं न बदलीं हैं और न बदलेंगीं.महिलाओं को लेकर संघ का दृष्टिकोण आज भी शताब्दी पुराना है.संघ अकेला ऐसा संगठन है जिसकी अपनी कोई महिला शाखा नहीं है ,जबकि शायद ही दुनिया में ऐसा कोई स्वयं सेवी संगठन होगा जिसकी महिला इकाई न हो .देश की आधी आबादी की उपेक्षा करने वाला संघ देश की  पूरी आबादी की उम्मीदों पर खरा कैसा उतर सकता है ?खासकर तब जब की पूरी दुनिया में महिलाएं बराबरी हासिल करती जा रहीं हैं .
भागवत जी ने कहा की उनका सियासत से कुछ लेना-देना नहींहै ,लेकिन इसपर भरोसा कौन करता है ?भाजपा की सियासत ही संघ की बैशाखी पर टिकी है,जब-जब भाजपा की नाव हिचकोले लेती है तब-तब संघ ही उसका बेडा पार करने के लिए आगे आता है ?भागवत जी किसी को ये बता पाए की क्या जरूरत होती है किसी राज्य में भाजपा के समानांतर सानघ के प्रचारकों की तैनाती की ?
बहरहाल संघ की भूमिका को लेकर जो लोग विचलित हैं,मै उनमें से नहीं हूँ.संघ अपने तरिके से काम करता है और उसे बदला भी नहीं जाना चाहिए,संघ से जीतने के लिए संघ की कार्यशायहैली विकसित करना पड़ेगी जो आज की तारीख में किसी भी अर्ध राजनितिक संगठन के बूते की बात नहीं है .कोई भी दल जीवनव्रती कार्यकर्ता तैयार नहीं करता ,बल्कि अधिकाँश दलों और संगठनों के कार्यकर्ताओं के के लिए सियासत जीवकोपार्जन का साधन होती है .
आने वाले चुनाव में संघ पहले से ज्यादा मुखर होकर सक्रिय नजर आएगा,फर्क सिर्फ इतना होगा की उसके चेहरे और मोहरे बदले हुए दिखाई देंगे ,ताकि उन्हने आसानी से पहचाना न जा सके. भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश में संघ की  मौजूदगी प्रश्नाकुल करती है क्योंकि देश का ताना-बाना सानघ की नीतियों से चटकता नजर आता है,अब इसमें कितनी हकीकत है और कितना अफ़साना ये वक्त बताएगा,हम नहीं.
  (राकेश अचल) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने हाल ही में संघ को लेकर जो संवाद शुरू किया है उससे संघ को लेकर देश में व्याप्त भ्रांतियां अचानक से दूर होने वाली नहीं हैं ,क्योंकि इनकी जड़ें बहुत गहरी हैं और भागवत जी के वक्तव्य बहुत सतही हैं ,जो संघ को नहीं जानते वे थोड़ी देर के लिए भागवत को संघ का उदारवादी नेता मान सकते हैं लेकिन जो संघ और उसकी विरासत को जानते हैं उन्हें पता है की भागवत सच नहीं बोल रहे . दुर्भाग्य से मुझे संघ के पहले अध्यक्ष केशव बलिराम,…

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