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आजकल नये नवेले भगवाधारी मदन कुशवाह भाई अपने अहंकार और घमंड में है। यह समझ से परे है कि आखिर उन्हें इतना अहंकार कैसे चढ़ गया। हालांकि ना वह कोई विधायक है और ना ही कोई मंत्री। ना ही किसी प्राधिकरण के अध्यक्ष है। बस वह महाराज साहब के नाम पर राजनीति चमका रहे है। जबकि महाराज साहब का उददेश्य सुशासन और विकास का है। महाराज साहब सबको जोड़ने और एक साथ लेकर चलने में विश्वास रखते है और यही निर्देश उनका अपने समर्थक और भाजपाईयों को है।
परंतु मजेदार बात तो यह है कि मदन भाई को ये बात समझ नहीं आता। उन्हें तो सिर्फ अपना रूतबा बनाये रखना है। अब महाराज साहब के दौरे के दौरान रेलवे स्टेशन पर आयोजित हुये एक रेल के ग्वालियर के स्टापेज के कार्यक्रम में मदन भाई फिर बिखर गये। जबकि मंच पर महाराज साहब बैठे थे। हुआ यूं कि रेलवे के कार्यक्रम में मंच के सामने डली कुर्सियों पर लोग बैठे थे। तभी सामने की कुर्सी पर बैठने के लिए मदन कुशवाह ने एक सज्जन को उठा दिया और खुद कुर्सी पर बैठ गये। जबकि पीछे ओर भी कुर्सियां खाली पड़ी थी। क्या ये उचित है किसी सज्जन व्यक्ति को कुर्सी से उठाकर खुद बैठ जाना। इससे जहां मदन की व्यक्तिगत इमेज पर बटटा लगा है, वहीं उस सज्जन भाई का भी मदन ने अपमान कर डाला। इससे क्षुब्ध वह सज्जन कार्यक्रम छोड़कर चले गये। आखिर मदन को चुनाव हारने के बाद भी सबक नहीं मिला है। चुनाव भी वह जब कांग्रेस में थे अपने अहंकार और घमंड के कारण ही ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा से भाजपा नेता भारत सिंह से हारे थे और आज भी उनका ये ही अहंकार उनकी व्यक्तिगत इमेज के सामने आ रहा है। खबर है कि उस सज्जन द्वारा महाराज साहब को मदन के कारनामे की सूचना दे दी गई है।