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(राकेश अचल)
मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह के ऊपर कर्नाटक,उत्तराखंड और गुजरात में हुए नेतृत्व परिवर्तन का खौफ साफ़ दिखाई देने लगा है. शिवराज सिंह अचानक अपने रौद्र रूप में आ गए हैं. वे अपना निजाम सुधरने के लिए हाथ में डंडा लेकर घूम रहे हैं .अब सार्वजनिक मंचों से ही सरकारी अधिकारियों के निलंबन की कार्रवाई की जा रही है .भाजपा शासित तीन राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन का मनोवैज्ञानिक असर दीगर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर भी हुआ है. मध्यप्रदेश में तो ये असर साफ़ दिखाई दे रहा है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पिछले एक हफ्ते में अपने सार्वजनिक कार्यक्रमों में जन शिकायतें मिलने के बाद मंच से ही अधिकारियों को निलंबित करने का श्रीगणेश कर दिया है .पृथ्वीपुर में एक तहसीलदार को सबसे पहले मंच से ही निलंबित करने का ऐलान किया ,फिर निबाड़ी में तीन अधिकारी निलंबित कर दिए मुख्यमंत्री अब कहने लगे हैं की जांच के बाद दोषी अधिकारियों को जेल भी भेजा जाएगा .
कहने को ये एक समान्य बात है लेकिन गुजरात में मुख्यमंत्री विजय रूपानी को हटाए जाने के बाद इस कार्रवाई का होना बता रहा है कि शिवराज सिंह चौहान तनाव में हैं .चौहान भले ही प्रदेश में चौथी बार मुख्यमंत्री बनाये गए हैं किन्तु उनके हिस्से में भी रूपाणी जैसी ही नाकामी और कमजोरी दर्ज है. 2018 के चुनाव में भाजपा शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही सत्ताच्युत हुई थी..ये तो उनकी खुशनसीबी है कि प्रदेश में डेढ़ साल पहले सत्तारूढ़ हुई कांग्रेस में अंदरूनी कलह की वजह से कांग्रेस में बड़े पैमाने पर हुए दलबदल ने भाजपा को दोबारा सत्तारूढ़ होने का अवसर दे दिया .
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को तमाम नेताओं के दावों को दरकिनार करते हुए 23 मार्च 2020 को चौथी बार मुख्यमंत्री बनाया गया था .पिछले डेढ़ साल में मुख्यमंत्री जी अपने पिछले तीन कार्यकालों जैसा परिणाम अभी तक नहीं दे पाए हैं .भाजपा में सत्ता में आने के बाद विधानसभा के उपचुनाव में पराजय के साथ ही प्रशासन में शीर्ष स्तर पर भ्र्ष्टाचार और क़ानून -व्यवस्था के मोर्चे पर पहले जैसी बात अब मध्य्प्रदेश में नहीं है ,
मध्यप्रदेश के नेतृत्व में भय और आशंका की वजह ये है कि इन दिनों प्रधानमंत्री की जुबान पर सबसे ऊपर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम है,शिवराज सिंह का नहीं .मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अब अपने पांवों चलने वाले मुख्यमंत्री नहीं रह गए हैं. उन्हें सरकार चलाने के लिए केंद्र्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया की बैशाखियों का सहारा लेना पड़ रहा है .प्रदेश में डेढ़ साल की सत्तावधि बीतने के बावजूद अभी तक पार्टी नेताओं को उपकृत करने के लिए निगम-मंडलों में जिस रफ्तार से नियुक्तियां की जाना थीं वे भी नहीं हो पायीं हैं .
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू किये गए डंडाराज से प्रशासनिक नौकरशाही भी नाखुश है.नौकरशाही तो पहले से ही दो पालों में विभाजित है .प्रदेश में नौकरशाही के साथ मुख्यमंत्री का तालमेल भी पहले जैसा नजर नहीं आ रहा है .अभी भी आईएएस और प्रमोटी आईएएस का टकराव जारी है .अनेक सम्भाग और जिले अभी भी प्रमोटी आईएएस अफसरों के हाथों में है .प्रदेश की माली हालत तो पहले से ही खराब है ही .
रेखांकित करने वाली बात ये है कि प्रदेश में 18 महीने के छोटे से कार्यकाल में प्रदेश में राज्यपालों को बदलने का सिलसिला जारी है. लालजी टंडन के निधन के बाद श्रीमती आनंदी बेन पटेल के साथ मुख्यमंत्री की पटरी नहीं बैठी तो फिर मंगूभाई पटेल को मध्यप्रदेश भेजना पड़ा .ख़ास बात ये है कि नौकरशाही के हाथ खींच लेने के बाद से मध्यप्रदेश पर हर महींने होने वाली पुरस्कारों की बरसात भी थम गयी है .यानि कि मध्यप्रदेश फिलहाल हर तरह की सुर्ख़ियों से बाहर है .
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद सबसे लम्बी अवधि तक मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान अपने नाम करने वाले शिवराज सिंह के साथ प्रदेश पार्टी इकाई के साथ भी पहले जैसी जुगलबंदी नहीं है. पार्टी के एक दर्जन से अधिक नेता मुख्यमंत्री के खिलाफ गोलबंद हैं और अवसरों की तलाश में हैं .पार्टी नेताओं के असंतोष ने भी मुख्यमंत्री को हाथ में डंडा लेने के लिए मजबूर कर दिया है .मुख्यमंत्री के रौद्र स्वरूप से प्रदेश की नौकरशाही का व्यवहार बदले और जनता लाभान्वित हो तो इससे बेहतर क्या हो सकता है लेकिन ऐसा हो तो सही .