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ग्वालियर हमें माफ़ करना !

(राकेश अचल) मुद्दा एकदम स्थानीय है ,लेकिन है ऐसा कि जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. हमारे शहर की फ़िक्र में दुबले होने वाले काजी अब नहीं हैं,इसलिए मै लगातार शहर को लेकर फिक्रमंद रहता हूँ .फिक्रमंद तो हमारे शहर के लिए बने विकास के दो-दो मसीहा भी रहते हैं लेकिन उन्हें पूरा देश देखना पड़ता है इसलिए दिया तले अन्धेरा रह ही जाता है . बात है ग्वालियर में रेल सुविधाओं की. इस ग्वालियर से दस शहरों के लिए हवाई सेवाएं हाल ही में शुरू हुईं हैं लेकिन स्थानीय रेलवे स्टेशन से तमाम सुविधाएं एक-एककर गायब हो गयीं हैं.ग्वालियर…

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(राकेश अचल)
मुद्दा एकदम स्थानीय है ,लेकिन है ऐसा कि जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. हमारे शहर की फ़िक्र में दुबले होने वाले काजी अब नहीं हैं,इसलिए मै लगातार शहर को लेकर फिक्रमंद रहता हूँ .फिक्रमंद तो हमारे शहर के लिए बने विकास के दो-दो मसीहा भी रहते हैं लेकिन उन्हें पूरा देश देखना पड़ता है इसलिए दिया तले अन्धेरा रह ही जाता है .
बात है ग्वालियर में रेल सुविधाओं की. इस ग्वालियर से दस शहरों के लिए हवाई सेवाएं हाल ही में शुरू हुईं हैं लेकिन स्थानीय रेलवे स्टेशन से तमाम सुविधाएं एक-एककर गायब हो गयीं हैं.ग्वालियर देश का ऐतिहासिक शहर है. इस शहर ने न जाने कितने शासकों की हुकूमतें देखीं हैं. मुगलों ,अंग्रेजों और सिंधिया की तो देखी ही हैं. लेकिन जितने बुरे दिन ग्वालियर को अब देखना पड़ रहे हैं,उतने बुरे दिन ग्वालियर ने कभी नहीं देखे .
ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर सीढ़ियां चढ़ना -उतरना एक मजबूरी है. कहने को यहां दो-दो स्वचालित सीढ़ियां हैं ,लेकिन दोनों आपको नीचे से ऊपर ले जा सकतीं हैं,ऊपर से नीचे नहीं ला सकतीं. दुर्भाग्य से आजकल ये एकतरफा सेवा देने वाली स्वचालित सीढ़ियां भी खराब हैं .रेल का मंडल कार्यालय ग्वालियर से मात्र सौ किमी दूर झांसी में है लेकिन झांसी को ग्वालियर की सुनने की फुरसत नहीं है. वैसे भी दोनों शहरों में पुरानी अदावत है..
रेल स्टेशन पर अकेले सीढ़ियां ही समस्या नहीं हैं,यहां आपको न व्हील चेयर मिल सकती है और न बैटरी कार. यहां व्हील चेयर लिफ्ट डेढ़ साल से और स्वचालित सीढ़ियां बीस दिन से बीमार पड़ी हैं. बैटरी कार को भी बंद हुए तीन महीने हो गए हैं .आपको बता दें कि ग्वालियर का रेल स्टेशन इस अंचल का सबसे बड़ा स्टेशन है. कोरोना काल से पहले इस स्टेशन से होकर करीब 75 -75 रेलें आती-जातीं थीं.माल गाड़ियों की तो संख्या पूछिए ही मत .लेकिन सुविधाओं के नाम पर ग्वालियर झांसी मंडल के सबसे घटिया स्टेशनों में से एक है .
आपको जानकार ख़ुशी होगी कि ग्वालियर से केंद्रीय मंत्री मंडल में दो और राज्य मंत्रिमंडल में भी तीन मंत्री हैं .प्रभारी मंत्री हैं सो अलग.सांसद तो होते ही हैं ,लेकिन ग्वालियर को न रेल स्टेशन पर सुविधाएं हासिल हैं और न किले पर चढ़ने के लिए ‘रोप-वे ‘.जबकि भोपाल में एक टेकरी पर चढ़ने के लिए रोप वे है और सतना में माता सारदा के मंदिर पर चढ़ने के लिए भी रोप वे है. रोप वे के लिए ग्वालियर तीन दशक से कछुआ चाल से प्रयास कर रहा है लेकिन डबल इंजन की सरकार के अलावा महाबली नेताओं के होते हुए भी ग्वालियर इन छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए तरस रहा है .
ग्वालियर के मंत्री सार्वजनिक शौचालय और नाले साफ़ करने में तो दिलचस्पी लेते हैं लेकिन रेल स्टेशन पर सुविधाओं का अभाव उन्हें नहीं खटकता ,क्योंकि अधिकाँश का आना-जाना तो इन दिनों हवाई जहाजों से होता है .रेलों से तो केवल जनता जाती है .रेल का जनसम्पर्क अधिकारी भला आदमी है इसलिए हर समय शिकायत करने पर कहता है कि-सब ठीक हो जाएगा,जरा सब्र कीजिये .ग्वालियर सब्र करने के अलावा और कुछ कर भी क्या सकता है ?ग्वालियर को लगता है कि -सब्र का फल जरूर मीठा होता होगा !
दिल्ली से 213 और भोपाल से 257 मील दूर बसे ग्वालियर के पास तख्त पलटने की ताकत तो है लेकिन अपने लिए छोटी-छोटी सुविधाएं हासिल करने की कूबत नहीं है.ग्वालियर के पास राजमाता विजयाराजे सिंधिया के नाम का कृषि विश्व विद्यालय ही नहीं अपितु एक हवाई अड्डा भी है ,लेकिन इसे यदि आप देख लें तो आपको बुरा लगेगा कि इस हवाई अड्डे के साथ राजमाता का नाम क्यों जुड़ा है ? ये हवाई अड्डा भारतीय वायु सेना की अनुकम्पा पर चल रहा है .ये हवाई अड्डा किसी बस अड्डे से भी ज्यादा गया गुजरा है .
ग्वालियर के पास आजादी से पहले सब कुछ था,आज भी बहुत कुछ है लेकिन अधिकाँश दुरावस्था में है.ग्वालियर बीते 75 साल में अपने लिए एक नया जल स्रोत नहीं खोज पाया.ग्वालियर बीते अनेक वर्षों से श्योपुर से छीनी गयी रेल सेवा को बहाल नहीं कर पाया और तो और जिस ग्वालियर को तत्कालीन रेल मंत्री माधवराव सिंधिया ने गुना-इटावा तक के लिए तीसरी रेल लाइन दी थी उसके लिए पर्याप्त रेलें नहीं जुटा सका,फल स्वरूप इस लाइन के अनेक स्टेशन बंद कर दिए गए .
ग्वालियर संगीत की राजधानी है,ग्वालियर मध्यभारत की राजधानी थी,ग्वालियर स्वतंत्रता से पहले एक मजबूत रियासत का मुख्यालय था ,लेकिन आज ग्वालियर सिर्फ ग्वालियर है.एक उजड़ा ग्वालियर,एक उपेक्षित ग्वालियर. यहां न उद्योग धंधे हैं और न ग्वालियर का बोझ उठाने वाले मजबूत कंधे.नेता ही नेता हैं जो ग्वालियर को न भोपाल बना पा रहे हैं और न इंदौर .ये भी छोड़िये ग्वालियर को ग्वालियर भी तो नहीं रहने दिया जा रहा .ग्वालियर से जो ख्याति अर्जित करता है वो ग्वालियर छोड़ देता है,फिर चाहे उस्ताद अमजद अली खान हों,या अटल बिहारी बाजपेयी .सिंधियाओं की मजबूरी है ग्वालियर से बाबस्ता रहना,क्योंकि एक तो उनका यहां महल है दूसरे यहां की जनता से उनके ढाई सौ साल पुराने रिश्ते . हमारा रिश्ता तो आधी सदी का ही है.हम ग्वालियर को कुछ दे नहीं सकते,लेकिन क्षमा याचना कर सकते हैं.सो करते हैं,औरों में तो ये भी साहस शायद नहीं है. असहमत हों तो कृपया नाराज न हों .

(राकेश अचल) मुद्दा एकदम स्थानीय है ,लेकिन है ऐसा कि जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. हमारे शहर की फ़िक्र में दुबले होने वाले काजी अब नहीं हैं,इसलिए मै लगातार शहर को लेकर फिक्रमंद रहता हूँ .फिक्रमंद तो हमारे शहर के लिए बने विकास के दो-दो मसीहा भी रहते हैं लेकिन उन्हें पूरा देश देखना पड़ता है इसलिए दिया तले अन्धेरा रह ही जाता है . बात है ग्वालियर में रेल सुविधाओं की. इस ग्वालियर से दस शहरों के लिए हवाई सेवाएं हाल ही में शुरू हुईं हैं लेकिन स्थानीय रेलवे स्टेशन से तमाम सुविधाएं एक-एककर गायब हो गयीं हैं.ग्वालियर…

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