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बाबुल तेरा नैहर छुटोई जाये…

भाजपा के सांसद और बंगाल के ख्यातिनाम युवा कलाकार बाबुल सुप्रियो ने राजनीति से सन्यास देने की घोषणा कर दी है .राजनीति से मोहभंग होने की किसी कलाकार की ये पहली घटना तो नहीं है लेकिन इससे ये प्रमाणित हो गया है कि राजनीति की टेढ़ी-मेढ़ी और निर्लज्ज पगडंडियों पर कोई भावुक और जमीरदार व्यक्ति तो ज्यादा दिन नहीं चल सकता .बाबुल सुप्रियो का दिल कब और कैसे टूटता ये बताने की जरूरत नहीं है,लेकिन बाबुल ने समझ लिया है कि उन्होंने राजनीति में सात साल रहकर न सिर्फ अपना वक्त ज्या किया बल्कि कला और संस्कृति का भी बड़ा…

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भाजपा के सांसद और बंगाल के ख्यातिनाम युवा कलाकार बाबुल सुप्रियो ने राजनीति से सन्यास देने की घोषणा कर दी है .राजनीति से मोहभंग होने की किसी कलाकार की ये पहली घटना तो नहीं है लेकिन इससे ये प्रमाणित हो गया है कि राजनीति की टेढ़ी-मेढ़ी और निर्लज्ज पगडंडियों पर कोई भावुक और जमीरदार व्यक्ति तो ज्यादा दिन नहीं चल सकता .बाबुल सुप्रियो का दिल कब और कैसे टूटता ये बताने की जरूरत नहीं है,लेकिन बाबुल ने समझ लिया है कि उन्होंने राजनीति में सात साल रहकर न सिर्फ अपना वक्त ज्या किया बल्कि कला और संस्कृति का भी बड़ा नुक्सान किया.
कुल 51 साल के बाबुल ने नौवें दशक में पार्श्व गायन के क्षेत्र में कदम रखा और हिंदी,बंगाली तथा उड़िया फिल्मों के लिए खूब गायन किया .अपने दो दशकों के कॅरियर में करीब 11 भाषाओँ में गाना गाने वाले बाबुल खानदानी गवैये हैं.उन्होंने दो शादियां की ,और 2014 में भाजपा उनकी लोकप्रियता भुनाने के लिए उन्हें भाजपा में शामिल करने में कामयाब रही..बाबुल ने भाजपा को आसनसोल सीट जीत कर दी तो नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपनी सरकार में मंत्री तक बना दिया .2019 में बाबुल ने फिर से आसनसोल सीट भाजपा के कहते में डाली,बदले मने उन्हें फिर मंत्री बनाया गया .दो बार लोकसभा चुनाव जीतने बाले बाबुल सुप्रियो हाल के बंगाल विधानसभा चुनाव में टॉलीगंज विधानसभा सीट से अप्रत्याशित तरिके से चुनाव हार गए .
बाबुल सुपरयो इतनी जल्द अपना राजनितिक नैहर छोड़ जायेंगे ,इसकी कल्पना किसी को नहीं थी.वे निश्चित रूप से हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाए जाने से आगत हुए होंगे,लेकिन ऐसा उन्होंने कभी कहा नहीं .वे कलाकारा है और भावुक हैं इसलिए भाजपा के साथ भाजपा के टिकिट पर जीती आसनसोल लोकसभा सीट से भी इस्तीफा दे रहे हैं ,इससे जाहिर है कि वे भाजपा से सौदेबाजी भी नहीं करना चाहते,.बाबुल यदि सात साल में राजनीति के सभी गुर सीख गए होते शायद विधानसभा चुनावों में अपनी पराजय के बाद अपने अच्छे दिन वापस आने का इन्तजार कार सकते थे ,लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया .
भाजपा ने बाबुल को कम समय में बहुत ज्यादा सम्मान और अवसर दिए लेकिन वे सत्ता प्रतिष्ठान से अपने हटाए जाने को अपना अपमान समझ बैठे और उन्होंने भावुलता में अपना स्तीफा दे दिया .हम बाबुल के इस्तीफे की तारीफ़ कर सकते हैं,क्योंकि आज की घ्रणित राजनीति के दौर में एक भरोसा पैदा करता है कि अभी भी राजनीति में बाबुल जैसे लोग भी हैं,अन्यथा मौजूदा लोकसभा में भी आधे से ज्यादा आरोपी अपराधी शान से बैठे हुए हैं .बाबुल ने अपमानित होने के बाद भाजपा और लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया या बंगाल में विधानसभा चुनाव हारने के बाद राजनीति छोड़ने का मन बनाया ये अभी बहुत स्पष्ट नहीं हुआ है ,क्योंकि खुद बाबुल ने इस बार में कुछ कहा नहीं है .वे भाजपा छोड़जार किसी दल में शामिल होने नहीं जा रहे हैं.
देश की संसद में अपने जमीर से पूछकर इस्तीफा देने वाले आजकल मूर्ख माने जाते हैं लेकिन बाबुल औरों से अलग हैं.बहुत अलग हैं बाबुल हालाँकि भाजपा में थे लेकिन मुझे प्रिय थे,क्योंकि हमारे देश की संसद में ज्यादातर सांसदों की पीठ पर अपराधों के मुकदमे लाडे होते हैं,उनकी भाषा कनकनी होती होती है जबकि कलाकार चेहे वे किसी भी दल में हों औरों से थोड़ा अलग होते हैं.
देश की संसद में दोनों सदनों में अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े कलाकार चुनाव जीतकर भी आते हैं और उन्हें नामजद भी किया जाता है. कुछ का नसीब अच्छा होता है तो उन्हें बाबुल सुप्रियो की तरह मंत्री भी बनाया जाता था .कलाकारों को राजनीतिन में आज भी दुर्भाग्य से ‘ आइटम ‘ ही समझा जाता है .वे या तो सदन में जाते नहीं हैं और यदि गाहे-ब-गाहे चले भी गए तो मूक दर्शक बनकर बैठे रहते हैं ,जनता के सरोकारों पर बोलने का या तो उनमने साहस नहीं होता या फिर उन्हें बोलने नहीं दिया जाता .बेहतर हो कि देश की संसद में बैठने वाले ऐसे तमाम सांसदों को बाबुल सुप्रियो का अनुशरण करते हुए अपने-अपने क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए या फिर पूरी गंभीरता से सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेना चाहिए .
इस समय बाबुल अपमानित है,भयभीत और कुंठित भी हैं ,इसलिए वे सहानुभूति के पात्र हैं . गंदगी से अटी पड़ी राजनीति से सुप्रियो जैसे युवा और प्रतिभाशाली कलाकार का सन्यास दुखद है ,इसे टाला या रोका जा सकता था ,लेकिन लगता है कि भाजपा हाईकमान अपने एक संवेदनशील सांसद के मन की बात समझ नहीं पाया .हकीकत ये है कि आज राजनीति को सुप्रियो जैसे एक नहीं अनेक कलाकारों कि जरूरत है .राजनीति में कलाकारों की उपस्थिति राजनीति को सड़ने से बचाती है ,राजनीति में एक ताजगी भर्ती है .राजनीति में हेमा मालनी जैसी मशहूर अदाकाराएं हैं लेकिन वे व्यावसायिक हैं और अपनी कीमत से वसूलना जानते /जानती हैं
@ राकेश अचल

भाजपा के सांसद और बंगाल के ख्यातिनाम युवा कलाकार बाबुल सुप्रियो ने राजनीति से सन्यास देने की घोषणा कर दी है .राजनीति से मोहभंग होने की किसी कलाकार की ये पहली घटना तो नहीं है लेकिन इससे ये प्रमाणित हो गया है कि राजनीति की टेढ़ी-मेढ़ी और निर्लज्ज पगडंडियों पर कोई भावुक और जमीरदार व्यक्ति तो ज्यादा दिन नहीं चल सकता .बाबुल सुप्रियो का दिल कब और कैसे टूटता ये बताने की जरूरत नहीं है,लेकिन बाबुल ने समझ लिया है कि उन्होंने राजनीति में सात साल रहकर न सिर्फ अपना वक्त ज्या किया बल्कि कला और संस्कृति का भी बड़ा…

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