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ग्वालियर। कोरोना की दूसरी लहर में ही जयारोग्य अस्पताल समूह का स्वास्थ्य ढांचा बुरी तरह चरमरा गया। ऐसे में जब तीसरी लहर की चेतावनी बार-बार दी जा रही फिर स्वास्थ्य का क्या होगा। लगता नहीं कि अभी भी जयारोग्य तीसरी लहर को झेल पायेगा, क्योंकि आज भी वही अधीक्षक उसी सिस्टम को सम्हाले है जिसने बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतार दिया। संक्रमण के शिकार लोग उम्मीद से यहां आये थे और कफन ओढ़कर गये। साथ छोड़ गये अपने रोते बिलखते परिजनों का । जबकि अधीक्षक अपने सुविधायुक्त केबिन में बैठकर सिर्फ आंकडों में मीडिया को उलझाते रहे।
जहां तक जयारोग्य चिकित्सालय के स्वास्थ्य का आलम है वह किसी से छिपा नहीं है। आज भी जरूरी जीवनदायिनी वस्तुओं के लिए यहां मारामारी है। आक्सीजन की किल्लत आज भी कभी भी खड़ी हो जाती है। इंजेक्शन, बेड का भी वही हाल है। ओपीडी बंद पड़ी है। चिकित्सकों, नर्स और स्टाफ की कमी की समस्या भी जस की तस है। पता नहीं कौन मरीज को इंजेक्शन लगा रहा होता है और कौन आक्सीजन। पिछले दिनों यह भी देखने को मिला कि जिस मरीज को स्लो फ्लो में आक्सीजन देना था उसे हाई पर दिया गया, वहीं जिसे हाई पर देना था उसे स्लो पर इस कारण से भी कई जिंदगियां काल के गाल में समां गई। यह तो एक तरह से हत्या करना है, क्योंकि डाक्टर अपने मरीज का हाल अच्छे से जानता है कि उसे किस फ्लो में आक्सीजन देना है पर इतनी बड़ी गड़बड़ी कैसे? जिसने मरीज को ही मार डाला। इसलिए बार-बार जेएएच पर सवाल उठ रहा है कि कौन मरीज को देख रहा है वाकई डाक्टर है या कोई ओर। ऐसे में हर जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है । रोज मौतों के आंकड़ें ग्वालियर को डरा रहे है। भले ही केसेस कम है, पर मौत का कहर इस दम तोड़ते सिस्टम में बढ़ता ही जा रहा है।
आज सवाल यह भी उठता है कि कोरोना की दूसरी लहर में जब जेएएच समूह के स्वास्थ्य सिस्टम ने दम तोड़ दिया तो तीसरी लहर का सामना ये लचर, अव्यवस्थित, लापरवाह सिस्टम कैसे कर पायेगा? जब दूसरी लहर में ही लाशें बिछ गई तो तीसरी लहर से ये अधीक्षक का सिस्टम कैसे पार पायेगा। या फिर मौत का खेल फिर दोहरा जायेगा और मासूम जिंदगियां अपनों से बिछड़ जायेगी।