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नग्नता: देह का नहीं नयनों का रोग

नग्नता पर बहस नई नहीं है. उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री तीरथ रावत ने तो इसे केवल हवा दी है .और फुरसत में बैठे हम सब इस बहस में उलझकर दूसरे मुद्दों को दरकिनार कर देते हैं .जनमानस को असलमुद्दों से भटकाने की ये बचकानी कोशिशें हैं ,क्योंकि सत्ता चाहती कि जनता असल मुद्दों पर बहस करे ही नहीं . दुनिया जानती है कि हमाम में सब नंगे होते हैं .दुनिया की ऐसी कोई आँख नहीं है जो नग्नता से अपरचित हो .केवल सूरदास इसका अपवाद हो सकते हैं ,लेकिन उनकी तीसरी आँख भी नग्नता का अनुभव करती ही है .नग्नता…

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नग्नता पर बहस नई नहीं है. उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री तीरथ रावत ने तो इसे केवल हवा दी है .और फुरसत में बैठे हम सब इस बहस में उलझकर दूसरे मुद्दों को दरकिनार कर देते हैं .जनमानस को असलमुद्दों से भटकाने की ये बचकानी कोशिशें हैं ,क्योंकि सत्ता चाहती कि जनता असल मुद्दों पर बहस करे ही नहीं .
दुनिया जानती है कि हमाम में सब नंगे होते हैं .दुनिया की ऐसी कोई आँख नहीं है जो नग्नता से अपरचित हो .केवल सूरदास इसका अपवाद हो सकते हैं ,लेकिन उनकी तीसरी आँख भी नग्नता का अनुभव करती ही है .नग्नता को लेकर अक्सर बहस छेड़ने वाले वे लोग होते हैं जो तन से मन से और नयन से नंगे होते हैं. अर्धनग्न होकर सड़कों पर प्रदर्शन करने वाले लोगों को नए फैशन के कपड़े आपत्तिजनक लगते हैं ,जबकि नग्नता के हर विरोधी की चाहत में कहीं न कहीं नग्नता कुंडली मारे बैठी होती है .
दुनिया के हर देश में,हर सस्कृति में हर सभ्यता में नग्नता की अपनी-अपनी परिभाषा और मूल्य हैं.कहीं नग्नता सहज स्वीकार्य है तो कहीं नग्नता एक वर्जित विषय है .मेरे एक नेत्र रोग विशेषज्ञ का कहना था कि ‘ नग्नता ‘नेत्र रोग है ही नहीं ,ये मनोरोग है .इसलिए इसका इलाज भी मनोचिकित्स्कों के पास ही हो सकता है .
दुनिया के जिन देशों में नग्नता की वर्जित विषय नहीं है वहां भी सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शित करने की अनुमति नहीं है.लेकिन इंग्लैंड में कुछ हद तक बिना कपड़ों के सार्वजनिक स्थल जैसे बीच आदि पर महिलाओं. को ऊपर के कपड़ों को न पहनने या पहनने का अधिकार है। यह कानून 1986 में बनाया गया।मजे की बात ये है कि विरोध केवल नारी देह की नग्नता का होता है,पुरुष देह की नग्नता का नहीं. पुरुष की नग्नता पर कहीं कोई बहस सुनने में नहीं आती.
भारत जैसे देश में तो नग्नता के उपासकों का एक नहीं अनेक सम्प्रदाय ही हैं ,लेकिन उनकी नग्नता पूजनीय मानी जाती है .जाहिर है दोष नग्नता का नहीं नजरों का है. जो नेत्र एक नागा साधू ये किसी अन्य सम्प्रदाय के नग्न साधक को शृद्धा की दृष्टि से देखते हैं वे ही नेत्र एक रमणी की अर्धनग्नता पर लाल-पीले हो जाते हैं .विज्ञान कहता है कि जब यह नग्नता व्यक्ति की धारणा के प्रति घृणा घृणा या अत्याचार की भावनाओं से परे हो जाती है और भय या अतिरंजित भय बन जाता है, तो हमें जिमनोफोबिया के मामले का सामना करना पड़ सकता है.
नग्नता और कपड़े एक दूसरे से जुड़े हैं. जो पहनावा आपको पसंद नहीं है वो ही वस्त्र मुमकिन है कि दूसरे को पसंद हों,इसलिए कौन सी पोशाक नग्नता का प्रतीक है और कौन सी नहीं ये तय करने का कोई पैमाना हमारे पास नहीं है .मुझे याद है कि एक समय हमारे ही शहर के एक ख्यातिनाम कन्या महाविद्यालय में लड़कियों के जींस पहनने पर रोक लगाने की कोशिश का प्रबल विरोध हुआ तो प्रशासन को अपना आदेश वापस लेना पड़ा था .कौन क्या पहने और क्या खाये ये निजता का मामला अवश्य है लेकिन इसके समाजिक मूल्य भी हैं. इसका वाम या दक्षिण से कोई लेना देना नहीं है .
मै ऐसे अनेक वामपंथियों को जानता हूँ जो भारतीय संस्कृति के पोषक हैं और ऐसे अनेक दक्षिणपंथी भी मेरे सम्पर्क में हैं जिनके लिए नग्नता कोई मुद्दा ही नहीं है. आज लड़कियां और लड़के क्या पहनते हैं इसका निर्धारण करने वाले हम कौन हैं भाई ! ये निर्धारण बाजार करता है और आज पूरा समाज बाजार के हाथों में एक कठपुतली की तरह कैद है .बाजार जो पहनाता है हम पहनते हैं,बाजार जो खिलाता है हम खाते हैं ,नग्नता को लेकर हम बाजार से कोई शिकायत नहीं कर सकते,क्योंकि बाजार हमारे नियंत्रण से बाहर है .
रावत जी के प्रति मेरी पूरी सहनुभूति है लेकिन मै उनकी राय से इत्तफाक नहीं रखता. नाइत्तफाकी का मतलब ये भी नहीं है कि मै नग्नता का महिमा मंडन करता हूँ .मेरा मानना है कि जब नग्नता का प्रदर्शन करने वाले को लज्जा नहीं अनुभव होती तो आप लज्जा से क्यों गढ़े जा रहे हैं ? मै दो साल पहले अमेरिका में जिस अपार्टमेंट में रहता था ,वहां का स्विमिंग पूल मेरे कमरे की खिड़की के सामने खुलता था. पूल पर सुबह आठ बजे से देर रात तक अर्धनग्न क्या नब्बे फीसदी नग्न महिलाएं और पुरुष पूल पर पड़े रहते थे. शुरू में मुझे भी कुछ अटपटा लगा लेकिन बाद में आँखों ने नग्नता को अस्वीकार कर दिया .यानि दोष नग्नता का कम नयनों का ज्यादा था .पूल पार्टी में नब्बे फीसदी महलाएं अपने बच्चों और परिजनों के साथ ही हम जैसे नब्बे फीसदी कपड़ों में लिपटे लोगों की उपस्थिति में खाना कहते हुए शायद ज्यादा असुविधा अनुभव करतीं हों .
हकीकत ये है कि भारत में सभ्यता और संस्कृति में नग्नता के मूल्य लगातार बदले हैं. हर सदी में नग्नता के अलग मूल्य रहे हैं. यदि हम दसवीं,ग्यारहवीं सदी में नग्नता के मूल्य तलाशेंगे तो वे सोलहवीं और सत्रहवीं सदी के नग्नता के मूल्यों से सर्वथा अलग होंगे .वाबजूद इसके हमने नग्नता को कलात्मकता का नाम देकर संरक्षित ही किया है उसे तालिबानियों की तरह नष्ट नहीं किया.खजुराहो के मंदिर और असंख्य जैन मंदिर इसका प्रमाण हैं .जाहिर है कि नग्नता को लेकर हम न एक राय हैं और न एक राय हो पाएंगे. ये द्वन्द आदिकाल से चल रहा है और अनंतकाल तक चलता रहेगा .हम गरीबों की नग्नता पर करुणा दिखाएंगे और अमीरों की नग्नता पर विरोध जताएंगे .नग्नता को लेकर ये दुभांत अच्छी नहीं है .
जैसा कि मैंने आरम्भ में ही कहा था कि हमाम में हम सब लगने होते हैं इसलिए नग्नता को हमाम के बाहर स्वीकार नहीं करते जबकि हम जानते हैं कि नग्नता एक मनोभाव है. आप अपने मन से विकार निकाल दीजिये नग्नता आपको न चुभेगी और न उत्तेजित करेगी. दरअसल परेशानी नग्नता की नहीं बल्कि आपकी है. देह को खासकर नारी देह को देखकर उत्तेजना पर आपका ही नियनत्रण नहीं है. भारत में किसी नारी समाज ने तो पुरुषों की नग्नता पर सवाल खड़े नहीं किये,कोई मोर्चा नहीं खोला .तो आप भी नग्नता को उसके हाल पर छोड़ दीजिये.चिंतन,मनन के लिए भूख,प्यास,महंगाई,भ्र्ष्टाचार,अनैतिकता ,हिंसा,घृणा जैसे असंख्य मुद्दे हैं .हमारे यहां नग्नता के खिलाफ एक सुस्पष्ट क़ानून है.यदि आपको लगता है कि आपके आसपास की नग्नता इस क़ानून का उल्लंघन कर रही है तो न बयान दीजिये न भाषण ,सीधे पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराइये और यदि इतना साहस आपके पास नहीं है तो कृपाकर नग्नता को लेकर सियापा मत कीजिये .तीरथ कीजिये.

@ राकेश अचल

नग्नता पर बहस नई नहीं है. उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री तीरथ रावत ने तो इसे केवल हवा दी है .और फुरसत में बैठे हम सब इस बहस में उलझकर दूसरे मुद्दों को दरकिनार कर देते हैं .जनमानस को असलमुद्दों से भटकाने की ये बचकानी कोशिशें हैं ,क्योंकि सत्ता चाहती कि जनता असल मुद्दों पर बहस करे ही नहीं . दुनिया जानती है कि हमाम में सब नंगे होते हैं .दुनिया की ऐसी कोई आँख नहीं है जो नग्नता से अपरचित हो .केवल सूरदास इसका अपवाद हो सकते हैं ,लेकिन उनकी तीसरी आँख भी नग्नता का अनुभव करती ही है .नग्नता…

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