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ग्वालियर पर क्षुद्र ग्रहों का साया

एक लम्बे समय बाद प्रदेश की सरकार ने ग्वालियर की सुध ली है.प्रदेश की सरकार पर ग्वालियर का बड़ा कर्ज है. ग्वालियर की बगावत की वजह से ही प्रदेश में नयी सरकार बनी है ,लेकिन एक साल से सरकार को खुद अपनी सुध नहीं थी सो ग्वालियर की सुध कौन लेता ?अब सरकार को थोड़ी फुरसत मिली है .तो सरकार ग्वालियर पर मेहरबान होती दिखाई दे रही है . ग्वालियर का दुर्भाग्य है की मध्यप्रदेश बनने के बाद आजतक ग्वालियर से कोई नेता मुख्यमंत्री पद तक नहीं पहुंचा .न कांग्रेस के राज में और न भाजपा के राज में .मध्यप्रदेश…

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एक लम्बे समय बाद प्रदेश की सरकार ने ग्वालियर की सुध ली है.प्रदेश की सरकार पर ग्वालियर का बड़ा कर्ज है. ग्वालियर की बगावत की वजह से ही प्रदेश में नयी सरकार बनी है ,लेकिन एक साल से सरकार को खुद अपनी सुध नहीं थी सो ग्वालियर की सुध कौन लेता ?अब सरकार को थोड़ी फुरसत मिली है .तो सरकार ग्वालियर पर मेहरबान होती दिखाई दे रही है .
ग्वालियर का दुर्भाग्य है की मध्यप्रदेश बनने के बाद आजतक ग्वालियर से कोई नेता मुख्यमंत्री पद तक नहीं पहुंचा .न कांग्रेस के राज में और न भाजपा के राज में .मध्यप्रदेश में जितने भी खंड -प्रखंड हैं उनके हिस्से में मुख्यमंत्री पद आ चुका है छोड़ ग्वालियर को ,शायद इसीलिए ग्वालियर एक जमाने में नंबर एक होते हुए भी आज सबसे पीछे है .ग्वालियर में किंग रहते हैं वे किंग मेकर हैं लेकिन मुख्यमंत्री नहीं .ोरदेश में पहली संविद सरकार ग्वालियर की बगावत से बनी थी लेकिन ग्वालियर को मुख्यमंत्री पद नहीं मिला,दूसरी और ताजा बगावत भी ग्वालियर से हुई लेकिन मुख्यमंत्री फिर भी ग्वालियर को नहीं मिला .
ग्वालियर वासी होने के नाते कम से कम मेरी तो कसक ये हैं,किसी और की हो या न हो .एक जमाने में ग्वालियर के भाजपा नेता शीतला सहाय मुख्यमंत्री पद की होड़ में शामिल भी हुए लेकिन उन्हें महल की कृपा प्राप्त न होने के कारण इस दौड़ से बाहर कर दिया गया .कांग्रेस के जमाने में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को अचानक पंजाब भेजा गया तब माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने की बात चली लेकिन बात बनी नहीं. वे जिस नाम पर अड़े थे उसके हाथ में मुख्यमंत्री पद की रेखा थी ही नहीं ,आखिर मोतीलाल वोरा जी की लाटरी लग गयी थी .दिग्विजय सिंह कभी ग्वालियर की और झुके नहीं,वे मालवा के ही बने रहे ,गुना वैसे भी मालवा का प्रवेश द्वार है .ग्वालियर से गुना की अदावत भी बहुत पुरानी है.
मध्यप्रदेश में 2003 में जब भाजपा की सरकार बनी तब भी ग्वालियर का नंबर नहीं लगा .ग्वालियर के मनोहर नेता नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश अध्यक्ष पद से ही रिटायर कर दिए गए. डॉ नरोत्तम मिश्रा और प्रभात झा को भी सपने में मुख्यमंत्री पद दिखाई देता रहा लेकिन उनके सपने कभी साकार नहीं हुए .2018 में भाजपा को चित्त कर कांग्रेस की सरकार बनी भी तो मुख्यमंत्री का पद अंकल कमलनाथ ले भागे .और जब कांग्रेस की 18 माह की सरकार की अकाल मृत्यु हुई तो बाद में बनी भाजपा सर्कार कके मुखिया एक बार फिर मामा शिवराज सिंह ही बने.ग्वालियर अभागा था सो अभागा ही रहा ,और शायद यही वजह है की ग्वालियर में आज भी विकास की ‘विंडो शॉपिंग’ चल रही है .
ग्वालियर की ग्यारह माह बाद सुध लेने वाले मुख्यमंत्री ने भी ग्वालियर का विकास एक प्रदर्शनी में देखा और खुश हो लिए .मैदानी हकीकत से उनका कोई लेना देना नहीं रहा .ग्वालियर में विकास के एक नहीं दो-दो मसीहा हैं लेकिन वे भी ग्वालियर व्यापार मेला के उद्घाटन की बजाय उद्घोषणा कार्यक्रम से ही मुतमईन हो गए.सफाई कर्मी के घर खाना खाकर एक रस्म अदा कर ली गयी लेकिन ग्वालियर की साफ़-सफाई व्यवस्था के लिए स्थाई व्यवस्था की कोई बात नहीं हुई .हाँ विजन डाक्यूमेंट बनाने का ऐलान जरूर किया गया .ये जब तक बनेगा तब तक चुनाव आ जायेंगे .
इस बात से किसी को इंकार नहीं है की यदि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह,केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया मेहरबान हो जाएँ तो ग्वालियर के साथ बीते दो दशक में हुए अन्याय की भरपाई की जा सकती है .ग्वालियर को रोप वे चाहिए,ग्वालियर को नियोजित विकास चाहिए,ग्वालियर को बहुत कुछ चाहिए ,लेकिन केवल नकली स्मार्ट सिटी परियोजनाओं और पुराने महलों प् रुपया बहाने से ग्वालियर का विकास असम्भव है .ग्वालियर का पुनर्घनत्वीकरण बहुप्रतीक्षित है .ग्वालियर की नंगी पहाड़ियों की सुरक्षा और उनका सुनियोजित विकास प्रतीक्षित है,नया प्राणीउद्यान प्रतीक्षित है लेकिन कोई इन परियोजनाओं को लेकर गंभीर नहीं है .सब विकास को प्रदर्शनियों में खोज रहे हैं .
प्रदर्शनियों में विकास तलाशने वाले नेताओं को नए ग्वालियर यानि विशेष विकास क्षेत्र के विकास के नाम पर बीते दो दशकों से हो रहे भ्र्ष्टाचार के बारे में भी चिंता करना चाहिए .इसके लिए बनाया गया अभिकरण सफेद हाथी बना हुआ है. इसके अध्यक्ष पद पर बैठके सभी दलों के नेताओं को करोड़पति बनाने के अवसर दिए गए हैं लेकिन ग्वालियर के समग्र विकास को लेकर किसी का सर दर्द नहीं होता .साडा की ही तरह ग्वालियर विकास प्राधिकरण सफेद हाथी साबित हुआ है लेकिन इसे ठीक करने की आजतक कोई पहल नहीं हुई जबकि भोपाल और इंदौर ही नहीं उज्जैन विकास प्राधिकरण भी बहुत आगे निकल चुके हैं .ग्वालियर गांव था और गांव ही बना हुआ है.
बहरहाल मुख्यमंत्री के ग्वालियर को समय देने से 7 फरवरी को 505 करोड़ रूपये के विकास कार्यों का शिलान्यास,भूमि पूजन ,उद्घाटन हुआ है ,इसके लिए उनका आभार करना जरूरी है ,हालाँकि इससे चार गुना अधिक राशि के शिलान्यास विधानसभा उपचुनावों के समय किये गए थे जिनपर अब तक रत्ती भर काम शुरू नहीं हुआ है .ग्वालियर के विकास के लिए के बार ग्वालियर को मुख्यमंत्री पद मिलना चाहिए. भाजपा हाईकमान यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री नहीं बना सकती तो कम से कम नरेंद्र सिंह तोमर को ही मुक्यमंत्री बना दे और तोमर की जगह सिंधिया को केंद्र में मंत्री बना दे .लेकिन हमारे लिखने या सोचने से तो ग्वालियर का भाग्य बदलने वाला नहीं है .ग्वालियर को राहु और केतु दोनों ने बुरी तरह से जकड़ रखा है. जब तक इन क्षुद्र ग्रहों को शांत नहीं किया जाएगा ,ग्वालियर गांव ही बना रहेगा .
@ राकेश अचल

एक लम्बे समय बाद प्रदेश की सरकार ने ग्वालियर की सुध ली है.प्रदेश की सरकार पर ग्वालियर का बड़ा कर्ज है. ग्वालियर की बगावत की वजह से ही प्रदेश में नयी सरकार बनी है ,लेकिन एक साल से सरकार को खुद अपनी सुध नहीं थी सो ग्वालियर की सुध कौन लेता ?अब सरकार को थोड़ी फुरसत मिली है .तो सरकार ग्वालियर पर मेहरबान होती दिखाई दे रही है . ग्वालियर का दुर्भाग्य है की मध्यप्रदेश बनने के बाद आजतक ग्वालियर से कोई नेता मुख्यमंत्री पद तक नहीं पहुंचा .न कांग्रेस के राज में और न भाजपा के राज में .मध्यप्रदेश…

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