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सींखचों के पीछे का अर्णव

********* रिपब्लिक भारत के सब-कुछ अर्णव गोस्वामी के बारे में लिखने का बिलकुल मन नहीं था लेकिन मित्रों का लगातार आग्रह टाल नहीं सका.दरअसल अर्णव उम्र में मुझसे बहुत छोटा लेकिन हैसियत में मुझसे बहुत बड़ा पत्रकार है .मात्र 47 साल का अर्णव असम से है,एक सेना के अधिकारी का बेटा है,उसकी स्कूली शिक्षा हमारे मध्य्प्रदेश के एक चर्च स्कूल में हुई है.दिल्ली से उसने स्नातक किया है ,उसके पास आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से सामाजिक विज्ञान में परास्नातक डिग्री भी है.अर्णव सिडनी के एक कालेज में अतिथि शिक्षक भी है,इस लिहाज से अर्णव एक पढ़ा-लिखा इंसान है . अर्णव 'दी टेलीग्राफ…

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रिपब्लिक भारत के सब-कुछ अर्णव गोस्वामी के बारे में लिखने का बिलकुल मन नहीं था लेकिन मित्रों का लगातार आग्रह टाल नहीं सका.दरअसल अर्णव उम्र में मुझसे बहुत छोटा लेकिन हैसियत में मुझसे बहुत बड़ा पत्रकार है .मात्र 47 साल का अर्णव असम से है,एक सेना के अधिकारी का बेटा है,उसकी स्कूली शिक्षा हमारे मध्य्प्रदेश के एक चर्च स्कूल में हुई है.दिल्ली से उसने स्नातक किया है ,उसके पास आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से सामाजिक विज्ञान में परास्नातक डिग्री भी है.अर्णव सिडनी के एक कालेज में अतिथि शिक्षक भी है,इस लिहाज से अर्णव एक पढ़ा-लिखा इंसान है .
अर्णव ‘दी टेलीग्राफ ‘ से चलकर रिपब्लिक भारत तक की यात्रा में लखपति से करोड़पति हो गया.इस बीच उसे फुरसत मिली तो उसने एक-दो किताब भी लिखी जैसे ‘कोमपेटीबल टेरिरिज्म, द लीगल चेलेंज ‘लेकिन अब वही अर्णव लीगल चैलेन्ज के सामने रोता दिखाई दे रहा है .अर्णव ने देश में चिघ्घाड़ने वाली पत्रकारिता को जन्म दिया है,जिसमें ऐंकर से लेकर रिपोर्टर भी चीख-चीखकर,अपनी बात रखता है,टेबिल पर हाथ पटकता है,कुर्सी से उठ-उठकर खड़ा हो जाता है .हमारी उम्र के लोग यदि इस तरह की पत्रकारिता करें तो चार दिन में अस्पताल के आईसीयू वार्ड में पहुँच जाएँ ,लेकिन अर्णव का कलेजा है कि वो ये सब कर लेता है .
अर्णव को एक आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया गया है .कहा जाता है की राज्य सरकार अर्णव की पत्रकारिता से आजिज आकर ये कार्रवाई करा रही है .यानि अर्णव की गिरफ्तारी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है ,लेकिन मुझे ऐसा लगता नहीं.मुमकिन ही कि आपको ऐसा लगता हो ,मुझे इस पर कोई आपत्ति भी नहीं है ,इसलिए आप भी मेरे विचार पर आपत्ति न करें तो कृपा हो .मामला पुराना है.कहते हैं बंद हो गया था ,लेकिन फिर खुला कैसे ? ये सब खोज का विषय है.केंद्र को इस मामले की जांच के लिए पहले असम की पुलिस भेजना चाहिए,फिर एसआईटी बनाना चाहिए और फिर सीबीआई को ये मामला देना चाहिए .ऐसा सरकार करती है .सुशांत के मामले में भी किया था .
अर्णव भला आदमी है ,वो किसी को आत्महत्या के लिए मजबूर कैसे कर सकता है ? ये मानने का अधिकार आपको है.आप मानिये.हम आपकी मान्यता का सम्मान करते हैं लेकिन अब मामला पुलिस और अदालत के बीच है इसलिए बिना कोई गागरोनी गाए हमें अदालत के फैसले का इन्तजार करना चाहिए .वैसे मेरा अपना तजुर्बा है कि यदि किसी मामले में खात्मा लगा दिया जाये तो उसे दोबारा खोलना आसान नहीं होता लेकिन असम्भव भी नहीं होता .अर्णव के खिलाफ दो साल पहले दर्ज मामले में भी यही हुआ. तत्कालीन सरकार ने अर्णव को बचा लिया था लेकिन मौजूदा सरकार ने लपेट लिया.
सरकारों का अपना नजरिया होता है .सरकार कहीं की भी हो एक जैसी होती है.किसी को भी लपेट सकती है,किसी को भी छोड़ सकती है .हमारे मध्यप्रदेश में पंद्रह साल रही भाजपा सरकार को एक कांग्रेसी विधायक द्वारा तालाब के कैचमेंट एरिया में किया गया अतिक्रमण सत्रहवें साल में नजर आया ,वो भी तब ,जब विधायक जी ने फ़्रांस की वारदात के बाद एक सभा कर दिखाई तब .यानि सरकार दो साल बाद ही नहीं सत्रह साल बाद भी चाहे तो कार्रवाई कर सकती है .
अर्णव की पत्रकारिता का मै कभी हामी नहीं रहा लेकिन मैंने उससे कभी नफरत नहीं की.नफरत करता भी क्यों ,लेकिन मैंने उसका सम्मान भी नहीं किया .अर्णव के घर जब पुलिस गयी तब भी मुझे बुरा लगा,मै यदि उसकी जगह होता तो पुलिस को अपने घर में घुसने ही न देता,खुद बाहर आकर पुलिस की गाडी में बैठ जाता .पुलिस को अपना काम करने देना अर्णव जैसे पढ़े-लिखे पत्रकार की ड्यूटी थी लेकिन अर्णव ने अनपढ़ों जैसा व्यवहार किया,बीबी के आँचल में छिपने की कोशिश की,सोफे को पकड़ कर बैठ गया .ये सब देखकर अर्णव के प्रति मेरे मन में तरस पैदा हुआ .आपके मन में करुणा उपजी हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं .लेकिन ‘जो जस करहि,सो तस फल चाखा ‘.
अर्णव साहब का मामला बॉम्बे हाईकोर्ट के पास है,कोर्ट अर्णव के साथ न्याय करेगा इसका मुझे तो पूरा भरोसा है,अर्णव को है या नहीं,मुझे नहीं मालूम ,लेकिन मै अर्णव की गिरफ्तारी के विरोध में न किसी प्रदर्शन में शामिल हो रहा हूँ और न धरने में ,क्योंकि मुझे अब भी लगता है कि ये मामला अभिव्यक्ति की आजादी से बाबस्ता है ही नहीं .होता तो हम उन लोगों में से हैं जो बिहार के प्रेस विधेयक के खिलाफ सबसे पहले सड़कों पर उतरे थे .बहरहाल अर्णव का साथ न देने के लिए यदि आप मुझे क्षमा कर सकते हैं तो अवश्य कर दें .मेरा तजुर्बा फिर कहता है कि भौंपू बनने या किसी की गोदी में बैठकर पत्रकारिता करने के खमियाजे तो भुगतना ही पड़ते हैं.इसके लिए कमर कसकर तैयार रहना चाहिए,बजाय चीखने-चिल्लाने के .
मुझे दरसल हंसी इसलिए आती है कि आज वे लोग अरांव के लिए टसुए बहा रहे हैं जो खुद पत्रकारिता को अपनी बांदी बनाने के आदी हैं ,जिन्हें अभिव्यक्ति की आजादी पुसाती ही नहीं है.जो बूंदगढ़ी में पत्रकारों को घुसने नहीं देते .जो देश में अर्णव की चीख-पुकार पत्रकारिता से पहले गोदी पत्रकारिता का आविष्कार करते हैं .लोकतंत्र में ये सब होता है.सब अपना-अपना काम कर रहे हैं .इसलिए जागते रहिये,जागते रहिये .अर्णव के लिए मत रोइये,उसके लिए अदालत है,क़ानून है,पैसा है .पार्टियां है, अर्णव किसी भी तरह अकेला नहीं है .एक हम या आप उसके साथ हों,न हों कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है .
@ राकेश अचल

********* रिपब्लिक भारत के सब-कुछ अर्णव गोस्वामी के बारे में लिखने का बिलकुल मन नहीं था लेकिन मित्रों का लगातार आग्रह टाल नहीं सका.दरअसल अर्णव उम्र में मुझसे बहुत छोटा लेकिन हैसियत में मुझसे बहुत बड़ा पत्रकार है .मात्र 47 साल का अर्णव असम से है,एक सेना के अधिकारी का बेटा है,उसकी स्कूली शिक्षा हमारे मध्य्प्रदेश के एक चर्च स्कूल में हुई है.दिल्ली से उसने स्नातक किया है ,उसके पास आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से सामाजिक विज्ञान में परास्नातक डिग्री भी है.अर्णव सिडनी के एक कालेज में अतिथि शिक्षक भी है,इस लिहाज से अर्णव एक पढ़ा-लिखा इंसान है . अर्णव 'दी टेलीग्राफ…

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