Review Overview
प्रदेश में नयी सरकार बनने के सात माह बाद भी कोई तब्दीली न आने से निराशा हुई ,जो पता नहीं कब दूर होगी . शहर के भीतर पहले की ही तरह अराजक यातायात. पड़ाव, स्टेशन बजरिया, अचलेश्वर मंदिर जैसे चौराहों पर पूर्ववत जाम की स्थितियां बनी हुईं हैं .
ग्वालियर शहर को नयी पहचान दिलाने के लिए सबसे पहले यातायात सुधारने और गंदगी को दूर करने की आवश्यकता है लेकिन इस दिशा में शहर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सका.शहर में वर्षा काल के कारण हरियाली बढ़ी लेकिन नगर निगम का स्वास्थ्य विभाग पुराने पेड़ों की ट्रिमिंग भी नहीं करा पाया फलस्वरूप सड़कों पर अन्धेरा बढ़ रहा है और वाहनचालकों को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है .नगर निगम के उद्यान विभाग के पास यदि ज़रा सा सौंदर्यबोध हो तो समस्या चुटकियों में हल हो सकती है .
नगरनिगम के जिम्मे ही सफाई व्यवस्था भी है लेकिन शहर को गंदा करने वाले लोग भी नहीं सुधर रहे हैं,नगर निगम यदि सफाई व्यवस्था में जनता का सहकार बढ़ा ले और समय पर कूड़ा-कर्कट हटाने और उसका निष्पादन करने की व्यवस्था कर ले तो शहर की सूरत बदलने में ज़रा भी देर न हो .
शहर की सूरत बदलने के लिए यातायात को अराजकता से बचाना पहली शर्त है किन्तु दुःख के साथ कहना पड़ता है की हमारे शहर के युवा पुलिस कप्तान इस मोर्चे पर अपने पूर्ववर्ती अधिकारियों की तरह पूरी तरह नाकाम रहे हैं. उनकी यातायात पुलिस आज भी सड़कों पर दो पहिया वाहनचालकों के चालान करने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं सीख पायी है. पुलिस महकमा भी यातायात की इंजीनियरिंग में कोई सुधार नहीं कर पाया है ,प्रबंधन की हालत तो और भी खराब है. पड़ाव क्षेत्र में बने नए रोड ओव्हर ब्रिज का भी शहर को कोई लाभ नहीं मिल पाया है ,नतीजा वही ढाक के तीन पात .
शहर की सूरत सुधारने के लिए सभी को मिलजुलकर काम करना होता है.नए यातायात क़ानून बनने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार आएगा कहना कठिन है क्योंकि प्रवर्तन करने वाले लोग तो पुराने ही हैं,उनकी मानसिकता में तो कोई बदलाव आया ही नहीं .वाहनों को नियमानुसार चलाना,हेलमेट पहनना,सीट बैल्ट लगाना ,ओव्हर टेकिंग न करना तो जनता का काम है .यदि जनता इन कानूनों का पालन न करने के लिए ही बनी है तो फिर यातायात पुलिस भी जुर्माना वसूलने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकती .
जिला प्रशासन ने इन चार महीनों में सिरोल पहाड़ी को अतिक्रमणकर्ताओं के चंगुल से बचा लिया ये खुशी की बात है,ऐसा ही अगर दूसरे पहाड़ों को बचने के लिए किया जाए तो शहर की सूरत बदल सकती है .इन पहाड़ों से पर्यावरण और शहर की सुंदरता जुड़ी है,इनके लिए कोई बृहद योजना बनाना चाहिए .महाराज बाड़ा की समस्या में कोई ख़ास सुधार नहीं हो पाया है ,इस दिशा में सख्त कार्रवाई के अलावा कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं .यहां बनी चुनिंदा बड़ी इमारतों के इर्दगिर्द से शत-प्रतिशत अतिक्रमण हटाकर वहां पैदल चलने की व्यवस्था सुनिश्चित किये बिना कुछ नहीं होगा ,इस इलाके को वाहन फ्री जोन बनाना ही होगा और ये तब तक नामुमकिन है जब तक की आसपास पार्किनिग की समुचित व्यवस्था न हो .
चेमबर की तरह पत्र लिखने से भी शहर की सूरत नहीं बदलेगी इसके लिए सभी संस्थाओं ,जन प्रतिनिधियों,और प्रशासन को मिलजुल कर एक दीर्घजीवी योजना बनाकर काम करना पडेगा .संयोग से इस समय हमारे पास हर क्षेत्र में एक युवा और कर्मठ टीम है उसे केवल राजनितिक और सामाजिक संरक्षण तथा समर्थन की आवश्यकता है ,यदि ये हो जाए तो हम नया ग्वालियर बना सकने में समर्थ हो सकते हैं .हमारे सड़क किनारे बने यात्री प्रतीक्षालय भी तभी काम आ सकते हैं जब हम कम से कम चारों दिशाओं में पचास-पचास किमी बसें चला सकें .सड़क की सूरत बिगाड़ने वाले छोटे सार्वजनिक यात्री वाहनों को हटाए बिना ये नामुमकिन है
@Dheeraj Bansal