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काश ! भाषण जैसा ही हो शासन का काम 

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद का अभिभाषण सुनकर मन जुड़ा गया ,लेकिन अगले ही पल गरमी सी भी लगने लगी ,क्योंकि याद आ गया की सरकार राष्ट्रपति के मुंह से जो कहलवाती है उस पर अमल करती ही नहीं है ,अगर कार्ति तो देश पिछले 72  साल में जहां तक पहुंचा था उससे और दस कदम आगे निकल जाता लेकिन विकास की यात्रा ठिठकी हुई है । दरअसल  राष्ट्रपति ने जहाँ अपना अभिभाषण समाप्त किया,उन्हें उसकी शुरुवात वहीं से करना थी।उन्होंने  केरल के महान कवि श्री नारायण गुरु और बंगाल के महाकवि गुरुर रवीन्द्रनाथ टैगौर के हवाले से कहा की  'नए…

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राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद का अभिभाषण सुनकर मन जुड़ा गया ,लेकिन अगले ही पल गरमी सी भी लगने लगी ,क्योंकि याद आ गया की सरकार राष्ट्रपति के मुंह से जो कहलवाती है उस पर अमल करती ही नहीं है ,अगर कार्ति तो देश पिछले 72  साल में जहां तक पहुंचा था उससे और दस कदम आगे निकल जाता लेकिन विकास की यात्रा ठिठकी हुई है ।
दरअसल  राष्ट्रपति ने जहाँ अपना अभिभाषण समाप्त किया,उन्हें उसकी शुरुवात वहीं से करना थी।उन्होंने  केरल के महान कवि श्री नारायण गुरु और बंगाल के महाकवि गुरुर रवीन्द्रनाथ टैगौर के हवाले से कहा की  ‘नए भारत की यह परिकल्पना इन्ही के  सद्विचारों से प्रेरित है।नारायण गुरु कहते हैं की
“जाति-भेदम मत-द्वेषम एदुम इल्लादे सर्वरुम
सोदरत्वेन वाड़ुन्न मात्रुकास्थान मानित”
यानि आदर्श स्थान वह है जहां जाति और धर्म के भेदभाव से मुक्त होकर सभी लोग भाई-भाई की तरह रहते हैं।राष्टपति ने कहा की गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के आदर्श भारत के उस स्वरूप की ओर आगे बढ़ेगा जहां लोगों का चित्त भय-मुक्त हो, और आत्म-सम्मान से उनका मस्तक ऊंचा रहे।लेकिन असल सवाल यही है की क्या 30  मई 2019  के बाद का भारत सचमुच ऐसा है ?
सरकार ने  ;एक देश,एक चुनाव’,सेना को रेल और अपाचे दिलाकर उसका आधुनिकीकरण करने और विश्व पटल पर भारत की मजबूती और बढ़ाने का आश्वासन दिया है।सरकार अंतरिक्ष मिशन और प्रदूषण तथा गंगा सफाई मिशन पर भी ध्यान देना चाहती है ,सरकार ने 2022  तो 35  हजार किलोमीटर नेशनल हाइवे के उन्ननयन की बात भी कही है ।
  सरकार आर्थिक मोर्चे पर चुष्ट रहकर कर प्रणाली के सरलीकरण और कालेधन पर भी अपना ध्यान केंद्रित करना चाहती है ।सरकार नौकरियों के बजाय स्वरोजगार पर काम करना चाहती है,उसकी प्राथमिकता में महिलाओं का सशक्तिकरण और आयुष्मान योजना भी शामिल है सरकार ने किसानों की आय को दोगुना करने और छोटे-मझोले व्यापारियों को भी राहत देने की इच्छा जताई है ,सरकार का दावा है की ग्रामीण भारत को मजबूत बनाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया गया है। कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए, आने वाले वर्षों में 25 लाख करोड़ रुपए का और निवेश किया जाएगा। नए ‘जलशक्ति मंत्रालय’ का गठन, इस दिशा में एक निर्णायक कदम है जिसके दूरगामी लाभ होंगे। इस नए मंत्रालय के माध्यम से जल संरक्षण व प्रबंधन से जुड़ी व्यवस्थाओं को और अधिक प्रभावी बनाया जाएगा।’।
पिछली सरकार ने भी इसी तरह के अनेक लोक-लुभावन कार्यक्रम सामने रखे थे लेकिन हुआ उसका उलटा था।बीते पांच साल में एक भी ऐसी योजना सामने नहीं आयी जिससे जनता सीधे लाभान्वित हुई हो।नोटबंदी ने कमर तोड़ी,मंहगाई ,बेरोजगारी बढ़ी,काला धन वापस आया नहीं,विश्व मानचित्र पर अंधाधुंध विदेश यात्राओं के बावजूद न पड़ौसियों से रिश्ते सुधरे और न आतंकवाद कम हुआ,पुलवामा जरूर उपहार में मिला ।गंगा जैसी थी वैसी भी नहीं रहे,रफेल और अपाचे के बदले विवाद आये ,किसानों की हालत पहले से ज्यादा पतली हुई ,खुद भाजपा शासित राजयों में किसान पुलिस की गोली से मारे गए ,सफाई अभियान की हवा निकली सो अलग ।इस सबके बाद भी देश की जनता ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पर दूसरी बार भरोसा जताया है,इसलिए ये बहुत आवश्यक है की  नयी सरकार ने संसद के सामने जो भी कहा है उसे करकेभी  दिखाए ।
नयी सरकार ने देश को न जम्मू-कश्मीर के बारे में आश्वस्त किया,न मंदिर-मस्जिद  विवाद के बारे में ।महिला सशक्तिकरण की बात कही किन्तु महिलाओं से बाबस्ता पुराने विधेयकों का जिक्र तक नहीं किया ।पड़ौसी देशों की तो छोड़िये केंद्र -राज्य संबंधों में आ रही खटास को कम करने का संकेत तक नहीं दिया ,,रोजगार के मुद्दे पर भी सरकार पीठ दिखाती दिखाई दे रही है ,युवा शक्ति के लिए सरकार के पास कोई भरोसेमंद योजना है ही नहीं ,इसलिए ये आशंका बनी ही रहेगी की सरकार का वास्तविक एजेंडा क्या है और ‘हिडन’एजेंडा क्या है।इस समय देश को एक पारदर्शी सरकार की जरूरत है,जनादेश भी यही चाहता है ,और होना भी यही चाहिए अन्यथा आनंद नहीं आएगा ।देश को आश्वस्त किया जाना चाहिए था की अब सरकार अपनी नाकामी किसी और के सर न मढ़कर जिम्मेदारी खुद लेगी।
राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद का अभिभाषण सुनकर मन जुड़ा गया ,लेकिन अगले ही पल गरमी सी भी लगने लगी ,क्योंकि याद आ गया की सरकार राष्ट्रपति के मुंह से जो कहलवाती है उस पर अमल करती ही नहीं है ,अगर कार्ति तो देश पिछले 72  साल में जहां तक पहुंचा था उससे और दस कदम आगे निकल जाता लेकिन विकास की यात्रा ठिठकी हुई है । दरअसल  राष्ट्रपति ने जहाँ अपना अभिभाषण समाप्त किया,उन्हें उसकी शुरुवात वहीं से करना थी।उन्होंने  केरल के महान कवि श्री नारायण गुरु और बंगाल के महाकवि गुरुर रवीन्द्रनाथ टैगौर के हवाले से कहा की  'नए…

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