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शिलालेखों पर खड़ी सियासत 

सियासत में शिलालेखों का बड़ा महत्व  है और आज से नहीं सदियों से है.हर व्यक्ति   इन शिलालेखों के जरिये अजर-अमर हो जाना चाहता है. हकीकत भी है की  यदि शिलालेख अच्छे पत्थर पर तरीके से उत्कीर्णन किये गए हों तो हजार-पांच सौ साल उनका कुछ नहीं बिगड़ता .सियासत में शिलालेखों के जरिये अमरत्व प्राप्ति के लिए हमारे शहर ग्वालियर में भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने है ग्वालियर में एक हजार विस्तर का अस्पताल बनाने का सपना बहुत पुराना है ,कोई 39  साल पुराना .तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने ग्वालियर को ये सपना दिखाया था  लेकिन इसे पूरा कोई नहीं कर सका.…

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सियासत में शिलालेखों का बड़ा महत्व  है और आज से नहीं सदियों से है.हर व्यक्ति   इन शिलालेखों के जरिये अजर-अमर हो जाना चाहता है. हकीकत भी है की  यदि शिलालेख अच्छे पत्थर पर तरीके से उत्कीर्णन किये गए हों तो हजार-पांच सौ साल उनका कुछ नहीं बिगड़ता .सियासत में शिलालेखों के जरिये अमरत्व प्राप्ति के लिए हमारे शहर ग्वालियर में भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने है
ग्वालियर में एक हजार विस्तर का अस्पताल बनाने का सपना बहुत पुराना है ,कोई 39  साल पुराना .तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने ग्वालियर को ये सपना दिखाया था  लेकिन इसे पूरा कोई नहीं कर सका. पंद्रह साल लगातार राज करने वाली भाजपा भी केवल ले-आउट बनाती,बिगाड़ती रही .अब कांग्रेस इस अस्पताल के निर्माण कार्यों का नया शिला लेख लगाना चाहती है.भाजपा इसका विरोध कर रही है .भाजपा के मुरैना के सांसद अनूप मिश्रा ने कहा है की वे गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को हजार अस्पताल के निर्माण कार्यों का शिलालेख नहीं लगाने देंगे ,क्योंकि इस परियोजना का शिलान्यास उनकी सरकार के समय वे खुद कर चुके हैं .
शिलालेखों की सियासत हमेशा से प्रशासन के लिए सिरदर्द और जनता के लिए तमाशा होती आयी है. सूबे के हर इलाके में शिलालेखों की सियासत होती आयी है ,इसमें अनेक अवसरों  पर तो सीधे रिश्ते तक आड़े आ जाते हैं .सवाल ये है की शिलालेखों की सियासत होना चाहिए या इस पर रोक लगना चाहिए ?चाचा को भतीजों से लड़ते आप कभीं भी देख सकते हैं .शिलालेखों के विवाद के असंख्य किस्से आपको अपने आसपास मिल जायेंगे .
मेरा विषय चूंकि पुरातत्व रहा है इसलिए मेरी दिलचस्पी शिलालेखों में आरम्भ से रही है. एक ज़माने में मायने शिलालेखों   के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया था ,इसके बावजूद मेरे देखते  -देखते शहर से अनेक शिला लेख या तो गायब हो गए या नष्ट कर दिए गए .शिलालेखों का हश्र अक्सर यही होता है .वे अनंत काल तक गवाही नहीं दे पाते ,एक न एक दिन उन्हें समाप्त होना ही पड़ता है. हमारे शहर में ऐसे अनेक बदनसीब शिलालेख हैं जो लगाए तो गए लेकिन बाद में उनकी बिना बताये अंत्येष्टि कर दी गयी .
मेरा अनुभव है की वे शिलालेख भाग्यशाली होते हैं जो अपने ऐश्वर्य को प्राप्त हो पाते हैं .ग्वालियर में गोला का मंदिर पर एक अस्पताल बनाने के लिए देश के दिग्गजों ने शिलालेखों पर अपने नाम अंकित कराये किन्तु आज अनेक दशक बाद भी ये परियोजना पूर्ण नहीं हुई .शिलालेख भी अब नदारद हैं. हमारा शहर युगों से ग्वालियर दुर्ग तक जाने के लिए रोप-वे की प्रतीक्षा कर रहा है लेकिन उसका शिलालेख शायद अभागा है जो आजतक ये परियोजना पूरी नहीं हुई .ग्वालियर दुर्ग की तलहटी में ग्वालियर विकास प्राधिकरण ने एक प्रियदर्शनी पार्क बनाने के लिए शिलान्यास कराया था ,आज न उस पार्क का पता है और न उस शिलालेख का .
जनता जानती है की अब तो शिलालेखों का स्तर भी काफी गिर गया है. अब चुनावों   के पहले सामूहिक शिलालेख लगाए जाते हैं .शिलान्यास के बाद इन शिलालेखों को उठाकर भण्डार में रखा जाता है,वहां अधिकाँश की अकाल मौत हो जाती है और जो सौभाग्यशाली होते हैं वे जैसे-तैसे दीवार पर चस्पा कर दिए जाते हैं .बीते चार दशक में अपने पत्रकारिता के जीवन में मैंने ऐसे अनेक शिलालेख लगते देखे हैं जिनको कभी मोक्ष नहीं मिला .वे या तो अकाल मौत मर गए या फिर बिसरा दिए गए .कोई शोध छात्र चाहे तो इन लापता शिलालेखों पर शोध कर डॉक्टरेट की उपाधि हासिल कर सकता है .
मेरे मन में अक्सर सवाल आता है की शिलालेखों की सियासत का युग आखिर कब समाप्त होगा ?होगा भी या नहीं होगा ?ग्वालियर के फूलबाग में रियासत के जमाने के अनेक सुंदर शिलालेख मैंने लगे देखे थे लेकिन इनमें से अधिकाँश आज गायब हैं .केवल एक -दो शिलालेख हैं जो सौभाग्यवश बच गए हैं .शिलालेखों के प्रति हमारा मोह अब लगातार समाप्त हो रहा है,अन्यथा एक ज़माने में स्वर्ण रेखा पर जलबिहार के समीप बने पुल का मरमरी शिलालेख आप देख लें तो तबियत खुश हो जाये .ऐतिहासिक दुर्गों पर आज भी अनेक शिलालेख अपने अतीत की गवाही देते हैं ,क्या हमारी सरकारी परियोजनाओं के शिलालेखों को ये सम्मान मिल सकता है ?
अनुभव बताता है की जब तो हमारी सियासत शिलालेखों के फेर में पड़ी रहेगी ,तब तक न शहर का विकास होगा और न सियासत में शुचिता आएगी .ग्वालियर के ही नहीं बल्कि समूचे पदेश के विकास के लिए सियासत को शिलालेखों से ऊपर उठना पडेगा तभी बात बनेगी नहीं तो ऐसे ही नाटक होते रहेंगे जैसे हो रहे हैं .
@ राकेश अचल
सियासत में शिलालेखों का बड़ा महत्व  है और आज से नहीं सदियों से है.हर व्यक्ति   इन शिलालेखों के जरिये अजर-अमर हो जाना चाहता है. हकीकत भी है की  यदि शिलालेख अच्छे पत्थर पर तरीके से उत्कीर्णन किये गए हों तो हजार-पांच सौ साल उनका कुछ नहीं बिगड़ता .सियासत में शिलालेखों के जरिये अमरत्व प्राप्ति के लिए हमारे शहर ग्वालियर में भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने है ग्वालियर में एक हजार विस्तर का अस्पताल बनाने का सपना बहुत पुराना है ,कोई 39  साल पुराना .तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने ग्वालियर को ये सपना दिखाया था  लेकिन इसे पूरा कोई नहीं कर सका.…

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