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आशंकाएं अनुभवों के कन्धों पर सवार होतीं हैं,इसलिए इन्हें दूर तक का दिखाई देता है.भविष्य की सुरक्षा के लिए आशंकाओं की अनदेखी कभी नहीं करना चाहिए,ऐसा कारण कभी-कभी बहुत भारी पड़ जाता है.पाकिस्तान की कैद से रिहा हुए विंग कमांडर अभिनंदनके मामले में भी मैंने जो आशंकाए प्रकट की थी वे अब मूर्त रूप ले रहीं हैं ,और इन्हें अच्छा नहीं कहा जा सकता .
विंग कमांडर अभिनंदन का साहस अदम्य है,अनुकरणीय है और गौरवान्वित करने वाला है किन्तु दुर्भाग्य से उसे बाजार की नजर लग गयी है. अभिनंदन के शौर्य को भुनाने के लिए सिनेमा से लेकर साड़ी बाजार तक ही नहीं सियासत की जीभ तक लपलपा रही है .खबर आयी है कि 20 फिल्म निर्माता अभिनंदन पर सिनेमा बनाने के लिए शीर्षक पंजीयन करने में लगे हैं,3 बायोपिक बनाना चाहते हैं और सूरत के अदि निर्माताओं ने तो दो कदम आगे जाकर अभिनंदन प्रिंट की साड़ियां तक बाजार में उतार दी हैं,
अभिवंदन को बेचना इतना आसान होगा इसकी आशंका मैने पूर्व में ही जतायी थी तो मुझे मेरे घर वालों समेत असंख्य भक्तों ने देशद्रोही करार दे दिया था ,दुर्भाग्य ये है कि आज अभिनंदन सियासत के लिए भी बिकाऊ माल हो गए हैं. देश के एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल ने साड़ी वालों की तरह अपने पंत प्र्धान की तस्वीरों के साथ विंग कमांडर अभिनंदनकी तस्वीरों वाले होर्डिंगों से सड़कों को पाटना शुरू कर दिया है,बाकायदा चुनाव रथ सड़कों पर उतार दिए गए हैं
अभिनन्द की सहोदरा ने इस पूरे मामले पर तमिल में एक टिप्पणी की थी लेकिन उसकी ज्यादा चर्चा नहीं हो पायी,उसका कहना था कि- वीरता,शौर्य अमेजॉन पर आर्डर देने से नहीं मिलता ,पर आप नंगी आँखों से देख लीजिये ,वीरता और शौर्य कितनी बेशर्मी से बिक रहा है .देश में इससे पहले पिछले साल हुई पहली “सर्जिकल स्ट्राइक” का भी इसी तरह सियासी इस्तेमाल किया गया था किन्तु समझदार जनता ने इसे अनदेखा कर दिया और केंद्र में सत्तारूढ़ दल को तीन राज्यों के उप चुनावों तथा अनेक उप चुनावों में इसकी कीमत अदा करना पड़ी ,आगे क्या होगा अभी कहना कठिन है लेकिन जो हो रहा है वो दुर्भाग्यपूर्ण है.
एक टीवी चैनल के विचार-विमर्श कार्यक्रम में आये प्र्धानमंत्री से देश इस बारे में स्पष्ट गारंटी चाहता था किन्तु उन्होंने इस बारे में एक शब्द तक नहीं कहा ,इससे जाहिर है कि इस घृणित अभियान को लेकर ऊपर से लेकर नीचे तक मौन स्वीकृति पहले ही दी जा चुकी थी मुझे लगता है कि दीगर राजनीतिक दल इस मामले में खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं,उनके रणनीतिकार अभिनंदन का शौर्य भुनाने में चूक गए .
भारत के परिपक्व लोकतंत्र में असल मुद्दों को ताक पर रखकर भावनात्मक विषयों को बेचने की परम्परा नयी नहीं है .इससे पहले दूसरे रूप में ऐसे प्रयोग हो चुके हैं और उसके प्रतिफल भी मिले हैं.अभिनंदन का जिक्र करते हुए मुझे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद अयोध्या में विवादास्पद ढांचा गिराते हुए पुलिस की गोली से मरे गए लोगों की तस्वीरों के इस्तेमाल का स्मरण भी हो आता है .सवाल ये है कि आखिर ये सब कब तक होगा ?क्या सचमुच राष्ट्रवाद हमारे लिए एक बिकाऊ जिंस है?
मुझे लगता है कि मेरा ये आलेख पढ़ने के बाद आप मुझे गरियाने के बजाय इस विषय पर सोचने के लिए विवश होंगे की अभिनंदन को लेकर देश में जो कुछ हो रहा है वो सब ठीक है क्या ?क्या इसे होते रहने देना चाहिए,,या इसे रखा जाना चाहिए और इसकी पहल आखिर कहाँ से होना चाहिए ?चूरू की एक चुनावी रैली में पुलवामा के शहीदों के चित्र मंच पर लगाकर इस देश को सम्बोधित किया जा चुका है ,क्या इस गलती के लिए जिम्मेदार लोगों को खेद व्यक्त करते हुए शहीदों के परिजनों से क्षमा याचना नहीं करना चाहिए ?
विडंबना ये है कि पिछले कुछ दशकों से सियासत मुद्दों को नजरअंदाज कर जनता को भ्रमित करने की हो गयी है.कांग्रेस हो या भाजपा या अन्य बड़े क्षेत्रीय दल सबके सब मुद्दों से दूर भागते हैं.कोई जाति बेचता है तो कोई धर्म,कोई मंदिर बनता है कोई मस्जिद ,देश की चिंता किसी को नहीं.सबको रोजी,रोटी,कपड़ा,मकान,दवा ,रोजगार जैसे मुद्दों पर कोई बात नहीं करना चाहता .एक दूसरे की विफलताएं गिनकर सब अपनी वैतरणी पार कर लेना चाहते हैं .दुर्भाग्य से अब सेना का शौर्य इसमें शामिल हो गया है.
यदि आपको लगता है की विंग कमांडर अभिनंदन का शौर्य सिनेमा बनाकर ,साड़ियां छापकर या चुनावी रथ बनाकर इस्तेमाल किये जाने लायक है तो मुझे कुछ नहीं कहना ,बल्कि मै अपने लिखे को भी सखेद निरस्त घोषित करने के लिए तैयार हूँ .मर्जी है आपकी,क्योंकि अभिनन्दन है आपका .