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शांति के लिए सियोल पुरस्कार 

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शांति के लिए सियोल पुरस्कार मिलने की खबर मोदमयी है .ये पुरस्कार मोदी की निजी उपलब्धि नहीं बल्कि पूरे देश की उपलब्धि है.कायदे से तो शांति के लिए भारत को अब तक नोबुल पुरस्कार मिल जाना चाहिए था लेकिन नहीं मिला तो नहीं मिला .इस गड़बड़ी के पीछे निर्णायकों की गलती हो सकती है दक्षिण कोरिया ने भारत को इस पुरस्कार के लिए चुना,ये रेखांकित करने वाली बात इसलिए है क्योंकि हमारे बिहार से भी छोटा दक्षिण कोरिया अपनी स्थापना से लेकर अब तक सदैव तनाव में रहा है.उसकी सीमाओं पर निशि-याम सेना का…

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शांति के लिए सियोल पुरस्कार मिलने की खबर मोदमयी है .ये पुरस्कार मोदी की निजी उपलब्धि नहीं बल्कि पूरे देश की उपलब्धि है.कायदे से तो शांति के लिए भारत को अब तक नोबुल पुरस्कार मिल जाना चाहिए था लेकिन नहीं मिला तो नहीं मिला .इस गड़बड़ी के पीछे निर्णायकों की गलती हो सकती है
दक्षिण कोरिया ने भारत को इस पुरस्कार के लिए चुना,ये रेखांकित करने वाली बात इसलिए है क्योंकि हमारे बिहार से भी छोटा दक्षिण कोरिया अपनी स्थापना से लेकर अब तक सदैव तनाव में रहा है.उसकी सीमाओं पर निशि-याम सेना का जमावड़ा रखना पड़ता है ,सेना ही देश में शान्ति की गारंटी है .भारत में भी 1947  से 2019  तक लगातार और कमोवेश ये ही हालात हैं .भारत ने आजादी के बाद के बाद के चार बड़े युद्धों में तो अपने असंख्य सैनिक गंवाए ही,बिना लड़े भी तीस साल में हजारों सैनिकों का बलिदान दिया .ये सब शान्ति के लिए ही तो है .
भारत ने शांति के लिए अपनी स्थापना के फौरन बाद से प्रयास शुरू कर दिए थे,पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का पंचशील का सिद्धांत और निर्गुट आंदोलन का बीजारोपण भी इसी शांति स्थापना का आगाज था .भारत ने सम्पूर्ण एशिया में शान्ति स्थापना के लिए अग्रणीय प्रयास किये हैं .युद्ध तभी लाडे जब उस पर थोपे गए ,इसलिए शांति के पुरस्कारों को पुरस्कृत करना कोई हैरानी की बात नहीं .ये पुरस्कार तो भारत को बहुत पहले मिल जाना चाहिए था .इस पुरस्कार के पीछे अकेले नरेंद्र भाई मोदी नहीं हैं बल्कि भारत की एक लम्बी परम्परा है .
.शांत सुबह की भूमि  दक्षिण  कोरिया ने भी भारत की तरह विभाजन का दंश झेला है और वो भी भारत की तरह अपने सहोदर उत्तर कोरिया के साथ उसी तरह युद्धरत है जैसे भारत पाकिस्तान के साथ .दक्षिण कोरिया ने भी तानाशाही झेली है और आज लोकतंत्र की हवा में सांस ले रहा है इसलिए यहां के लोग शांति के महत्व को जानते हैं और उन्होंने भारत के शांति प्रयासों का समुचित तथा सही मूल्यांकन किया है .दक्षिण कोरिया के पांवों में भी बिमाई फटी है,उसने भी युद्ध में अपने डेढ़ लाख सैनिकों के प्राणों की आहुति दी है .
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सियोल पुरस्कार समिति ने भारतीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में उनके योगदान को मान्यता देते हुए और अमीर और गरीब के बीच सामाजिक और आर्थिक विषमता को कम करने के लिए उनकी विशिष्ट आर्थिक नीतियां‘मोदीनॉमिक्स’को श्रेय देते और भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि, विश्व शांति, मानव विकास में सुधार और भारत में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए उनके योगदान को देखते हुए सियोल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।मोदी जी से तमाम असहमतियों के बावजूद हम उन्हें इस उपलब्धि के लिए बधाई देते हैं और अपेक्षा करते हैं की वे इस सम्मान का मान करते हुए भारत में असहिष्णुता की समाप्ति और तानाशही के लक्षणों की समाप्ति के लिए धरातलीय   प्रयास करें .
खुशी की बात ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पुरस्कार में मिली 1.30 करोड़ की रकम को उस नमामि गंगे प्रोजेक्ट के लिए देने का ऐलान किया है जो पहले से ही बदइंतजामी के कारण आलोचनाओं का शिकार है .उम्मीद की जाना चाहिए कि पुरस्कार में मिली रकम इस परियोजना को कुछ न कुछ गति अवश्य देगी
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शांति के लिए सियोल पुरस्कार मिलने की खबर मोदमयी है .ये पुरस्कार मोदी की निजी उपलब्धि नहीं बल्कि पूरे देश की उपलब्धि है.कायदे से तो शांति के लिए भारत को अब तक नोबुल पुरस्कार मिल जाना चाहिए था लेकिन नहीं मिला तो नहीं मिला .इस गड़बड़ी के पीछे निर्णायकों की गलती हो सकती है दक्षिण कोरिया ने भारत को इस पुरस्कार के लिए चुना,ये रेखांकित करने वाली बात इसलिए है क्योंकि हमारे बिहार से भी छोटा दक्षिण कोरिया अपनी स्थापना से लेकर अब तक सदैव तनाव में रहा है.उसकी सीमाओं पर निशि-याम सेना का…

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