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वज्र से हौसलों का प्रतीक हैं बराबर की गुफाएं 

(@ राकेश अचल ) इंसान के हौसलों के आगे कोई टिक नहीं सकता,बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित बराबर की गुफाएं इस बात का साक्षात प्रमाण हैं .माना जाता है की पूरी दुनिया में ये पहली मानव निर्मित गुफाएं हैं और इनकी उम्र करीब इससे से 322  वर्ष पहले की है .आप कल्पना कर सकते हैं की कोई इंसान ग्रेनाइट जैसे वज्र पाषाण को काट कर विशाल गुफाओं का निर्माण कर सकता है ?लेकिन ऐसा हुआ जहानाबाद मुख्यालय से कोई 24  किमी दूर लाल पहाड़ी के अंचल में भीमकाय मगर मच्छों के आकार की दो अलग-अलग शिलाओं को काटकर बनाई…

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(@ राकेश अचल )
इंसान के हौसलों के आगे कोई टिक नहीं सकता,बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित बराबर की गुफाएं इस बात का साक्षात प्रमाण हैं .माना जाता है की पूरी दुनिया में ये पहली मानव निर्मित गुफाएं हैं और इनकी उम्र करीब इससे से 322  वर्ष पहले की है .आप कल्पना कर सकते हैं की कोई इंसान ग्रेनाइट जैसे वज्र पाषाण को काट कर विशाल गुफाओं का निर्माण कर सकता है ?लेकिन ऐसा हुआ
जहानाबाद मुख्यालय से कोई 24  किमी दूर लाल पहाड़ी के अंचल में भीमकाय मगर मच्छों के आकार की दो अलग-अलग शिलाओं को काटकर बनाई गयी इन गुफाओं में दो कक्ष हैं.एक कक्ष शायद साधना के लिए बनाया गया होगा और दूसरा बड़ा काश बैठने के लिए .मुझे लगता है की पत्थर की इन गुफाओं को बनाने के लिए औजारों के रूप में यहीं के नुकीले पत्थर इस्तेमाल किये गए होंगे क्योंकि ग्रेनाइट को सामान्य लोहे के औजारों से काटना सम्भव नहीं है ,चूंइक यहां के पत्थरों में लौह और मैगनीज अयस्क मिलता है इसलिए मुमकिन है की तत्कालीन साधकों ने इसके मार्क गुण को पहचानकर इन्हीं पत्थरों के जरिये ये असम्भव काम कर दिखाया हो .
यहां उत्कीर्णन पाली इबारत इस बात का प्रमाण है की ये गुफाएं मौर्यकाल की हैं और इनमें जैन साधक साधना करते थे और उन्हीं ने इन्हें   बनाया भी होगा.आजीवक जैन साधकों ने सिद्दार्थ के नौवें वर्षगांठ पर इन गुफाओं को समर्पित किया .इन गुफाओं से मिथक ज्यादा जुड़े हैं और प्रमाण सीमित हैं.यहां जो शिला लेख हैं वे ज्यादा कुछ नहीं बोलते,एक शिला लेख तो अब तक अबूझ है ,लेकिन जो प्रमाणित है वो है इन गुफाओं का वास्तु.इन गुफाओं के साधना काश में शब्द के अनुगूंज की अद्भुत व्यवस्था है.आप ॐ का नाद कीजिये और देर तक उसकी अनुगूंज सुनिए .
बराबर की गुफाएं मानव कौशल का अनुपम उदाहरण हैं. ग्रेनाइट की न गुफाओं की सतह को घिस कर इतना चिकना बनाया गया है की लगता है जैसे इन दीवारों पर आजकल में ही पालिश की गयी हो .एक डीएम चिकनी और मार्बल जैसी सतह की गुफा की दीवारें हतप्रभ कर देती हैं यहां गाइड का काम करने वाले राकेश प्रसाद का कहना है की ये गुफाएं बौद्धकालीन हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है की आजीवक सम्प्रदाय ने इन्हें बनाया .राकेश प्रसाद इतिहासकार नहीं हैं लेकिन उनकी अपनी मान्यताएं हैं ,वे कहते हैं की अंग्रेजों ने बराबर की गुफाओं को मारबार की गुफाएं कहा ,शायद वे हम बिहारियों के उच्चारण से भ्रमित   हो गए.
अंग्रेज लेखक ई.एम. फोर्स्टर की पुस्तक, ए पैसेज ऑफ इंडिया भी इसी क्षेत्र को आधारित कर लिखी गयी है, जबकि गुफाएं स्वयं पुस्तक के सांकेतिक मूल में एक महत्वपूर्ण, यद्यपि अस्पष्ट दृश्य के घटनास्थल के रूप में हैं। लेखक ने इस स्थल का दौरा किया था और बाद में अपनी पुस्तक में मारबार गुफाओं के रूप में इनका इस्तेमाल किया था।
बराबर पहाड़ी में चार गुफाएं शामिल हैं -इन गुफाओं का नामाकरण कब और किसने किया,कोई नहीं जानता .स्थानीय लोग इन गुफाओं को  करण चौपर, लोमस ऋषि, सुदामा और विश्व जोपरी. सुदामा और लोमस ऋषि गुफाओं के रूप में भी जानते हैं  जिनमें मौर्य काल में निर्मित वास्तुकला संबंधी विवरण मौजूद हैं .लोमस ऋषि गुफा : मेहराब की तरह के आकार वाली ऋषि गुफाएं लकड़ी की समकालीन वास्तुकला की नक़ल के रूप में हैं। द्वार के मार्ग पर हाथियों की एक पंक्ति स्तूप के स्वरूपों की ओर घुमावदार दरवाजे के ढांचों के साथ आगे बढ़ती है।
सुदामा गुफा :के बारे में कहा जाता है की  यह गुफा 261 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा समर्पित की गयी थी और इसमें एक आयताकार मण्डप के साथ वृत्तीय मेहराबदार कक्ष बना हुआ है।
करण चौपर (कर्ण चौपर): यह पॉलिश युक्त सतहों के साथ एक एकल आयताकार कमरे के रूप में बना हुआ है जिसमें ऐसे शिलालेख मौजूद हैं जो 245 ई.पू. के हो सकते हैं।
विश्व जोपरी : इसमें दो आयताकार कमरे मौजूद हैं जहां चट्टानों में काटकर बनाई गई अशोका सीढियों द्वारा पहुंचा जा सकता है।
इन गुफाओं तक पहुँचने के लिए करीब अस्सी सीढ़ियां पर करना पड़तीं हिन्.दुर्भाग्य ये है की इन गुफाओं के आसपास विकास और संरक्षण पर्याप्त नहीं है.इन गुफाओं से थोड़ा आगे एक पुराना शिव मंदिर होने के कारण यहां सावन में आने वाले असंख्य शृद्धालु यहां इतनी गंदगी छोड़ जाते हैं जो इन गुफाओं के असली पर्यटकों के लिए परेशानी का सबब बनी रहती है
मैंने भारत में एलोरा और चित्रकूट की गुफाएं भी देखीं है और विदेशों में भी अनेक प्राकृतिक गुफाओं के दर्शन किये हैं किन्तु बराबर की गुफाएं इन सबसे अलग और हैरान कर देने वाली हैं .बिहार सरकार यदि इन गुफाओं का सही ढंग से भारतीय पुरातत्व सर्वे के साथ मिलकर प्रचार करे तो ये स्थल दुनिया भर को आकर्षित कर सकता है बिहार सरकार ने हालांकि यहां विश्राम गृह बनाये हैं लेकिन वे उजाड़ पड़े हैं .देशी पर्यटक यहां सीमित मात्रा में आते हैं किंतु विदेशी पर्यटकों के लिए यहां कोई सुविधा नहीं है,उन्हें रात्रि विश्राम करना हो तो नहीं कर सकते.गुफाओं तक पहुँचने का आधा रास्ता उखड़ा पड़ा है हालांकि विजली का कोई संकट नहीं है
बिहार सरकार को यहां एक आधुनिक जनसुविधा केंद्र,सोविनियर शाप और रेटोरेन्ट के अलावा साफ़-सफाई,सुरक्षा तथा परिवहन की व्यवस्थाएं करना चाहिए .यहां तक पहुँचने के लिए सड़क के अलावा रेल लाइन भी है जो बाणाबर हालत पर आपको उतार देगी लेकिन स्टेशन से गुफाओं तक जाने के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है .बिहार सरकार ने जितना पैसा पटना में स्टेट म्यूजियम बनाने में खर्च किया है उसका यदि दशांश भाग बह बाराबर की गुफाओं पर खर्च किया जाए तो इसे विश्व स्तरीय पर्यटक   स्थल बनाया जा सकता है
{acha.rakesh@gmail.com}
(@ राकेश अचल ) इंसान के हौसलों के आगे कोई टिक नहीं सकता,बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित बराबर की गुफाएं इस बात का साक्षात प्रमाण हैं .माना जाता है की पूरी दुनिया में ये पहली मानव निर्मित गुफाएं हैं और इनकी उम्र करीब इससे से 322  वर्ष पहले की है .आप कल्पना कर सकते हैं की कोई इंसान ग्रेनाइट जैसे वज्र पाषाण को काट कर विशाल गुफाओं का निर्माण कर सकता है ?लेकिन ऐसा हुआ जहानाबाद मुख्यालय से कोई 24  किमी दूर लाल पहाड़ी के अंचल में भीमकाय मगर मच्छों के आकार की दो अलग-अलग शिलाओं को काटकर बनाई…

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